प्रदूषण से जंग में दिल्ली की हार की कहानी
Delhi Air Pollution: दिल्ली, जो देश की राजधानी है, आज प्रदूषण के नासूर से कराह रही है। बीते दो दशकों में कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन हवा में ज़हर और घनी धुंध में कोई फर्क नहीं आया। सुप्रीम कोर्ट की बार-बार की चेतावनियों के बावजूद दिल्ली की सरकारें आज तक इस समस्या की जड़ तक नहीं पहुंच पाईं।
वाहन और जाम बने सबसे बड़ी वजह
दिल्ली में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण वाहनों से निकलने वाला धुआं और लगातार बढ़ते जाम हैं। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था अब भी कमजोर है। कभी कांग्रेस, कभी आम आदमी पार्टी या अब भाजपा की सरकार—हर दौर में बसों की संख्या घटती गई और निजी वाहन सड़कों पर बढ़ते गए। नतीजा यह कि दिल्ली की हवा पहले से भी ज़्यादा दूषित हो गई।
सरकारों के हवा में तीर
Delhi Air Pollution: सरकारों ने प्रदूषण से निपटने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए, लेकिन अधिकतर योजनाएं केवल प्रयोग तक सीमित रह गईं। आम आदमी पार्टी की सरकार ने स्मॉग टावर, बायोडीकंपोजर और ड्रोन से मिस्ट स्प्रे जैसे उपाय अपनाए, वहीं भाजपा सरकार ने क्लाउड सीडिंग जैसी महंगी लेकिन नाकाम योजना लागू की। जनता की गाढ़ी कमाई हवा में उड़ गई, पर हवा साफ नहीं हुई।
मिस्ट स्प्रे योजना—आनंद विहार में फ्लॉप प्रयोग
2024 में आनंद विहार में ड्रोन से मिस्ट स्प्रे का ट्रायल किया गया था। उद्देश्य था प्रदूषण कम करना, लेकिन परिणाम उल्टा रहा। जिस दिन ड्रोन उड़ा ही नहीं, उस दिन हवा अपेक्षाकृत साफ मिली। विशेषज्ञों ने साफ कहा कि ड्रोन से प्रदूषण कम करना तकनीकी रूप से असंभव है, क्योंकि यह केवल निगरानी के लिए ही उपयुक्त है। फिर भी, इस प्रयोग पर लाखों रुपये खर्च किए गए।
Delhi Air Pollution: स्मॉग टावर—सफेद हाथी साबित हुआ
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 2021 में दिल्ली में दो स्मॉग टावर लगाए गए — एक कनाट प्लेस में और दूसरा आनंद विहार में। लगभग 23 करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद, ये टावर केवल सीमित क्षेत्र में ही कारगर साबित हुए।
आईआईटी-बॉम्बे और आईआईटी-दिल्ली के अध्ययन के अनुसार, स्मॉग टावर केवल 50 मीटर के दायरे में 70 से 80 प्रतिशत हवा को शुद्ध कर पाया, जबकि 300 मीटर के बाद इसका असर नगण्य था। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने भी इसे अप्रभावी बताते हुए संग्रहालयों में बदलने की सिफारिश की।
बायो डीकंपोजर—कागज़ी प्रयोग
Delhi Air Pollution: पराली जलाने से रोकने के लिए आप सरकार ने पूसा बायो डीकंपोजर घोल का छिड़काव शुरू किया। दावा था कि यह पराली को खाद में बदल देगा, परंतु इसका असर सीमित रहा। हर साल लगभग 40 लाख रुपये खर्च हुए, लेकिन किसानों ने इसे अपनाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। नतीजा वही—सर्दियों में दिल्ली की हवा धुएं से भर गई।
फंड का सही उपयोग नहीं
दिल्ली को राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत जो अनुदान मिला, उसका भी आधा हिस्सा खर्च ही नहीं हो पाया। पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क से जमा राशि का उपयोग भी अधूरा है। यानी समस्या की जड़ पर काम करने की बजाय दिखावे में अधिक ध्यान दिया गया।
Delhi Air Pollution: जनता अब भी सांसें गिन रही है
हर साल अक्टूबर-नवंबर में जब हवा भारी और ठंडी होती है, तो दिल्ली गैस चैंबर में तब्दील हो जाती है। स्कूल बंद, निर्माण रुकावटें, परिजनों की अस्पतालों में भीड़ — यह अब दिल्ली की सच्चाई बन चुकी है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक वाहनों की संख्या पर नियंत्रण, सार्वजनिक परिवहन का विस्तार और क्षेत्रीय सहयोग (दिल्ली-एनसीआर) नहीं बढ़ेगा, तब तक हवा नहीं बदलेगी।