अक्टूबर में वायु प्रदूषण के हालात चिंताजनक
नई दिल्ली। अक्टूबर 2025 में जारी सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) की रिपोर्ट ने देश की वायु गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली देश का छठा सबसे प्रदूषित शहर रही, जबकि हरियाणा का धारूहेड़ा सबसे अधिक प्रदूषित पाया गया।
धारूहेड़ा सबसे प्रदूषित, दिल्ली छठे स्थान पर
रिपोर्ट में कहा गया है कि धारूहेड़ा में पीएम 2.5 का औसत स्तर 123 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया। यह स्तर 77 प्रतिशत दिनों में राष्ट्रीय सीमा से ऊपर था। दिल्ली का पीएम 2.5 स्तर 107 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंचा, जो सितंबर की तुलना में तीन गुना अधिक था।
एनसीआर के कई शहरों में बिगड़ी वायु गुणवत्ता
टॉप-10 प्रदूषित शहरों की सूची में एनसीआर के कई शहर शामिल हैं। इनमें धारूहेड़ा, रोहतक, गाजियाबाद, नोएडा, बल्लभगढ़, दिल्ली, भिवाड़ी, ग्रेटर नोएडा, हापुड़ और गुरुग्राम शामिल हैं। इनमें से हरियाणा और उत्तर प्रदेश के चार-चार शहर शीर्ष 10 में रहे।
पराली नहीं, अन्य स्रोत रहे प्रमुख कारण
रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में अक्टूबर में पराली जलाने का योगदान छह प्रतिशत से भी कम रहा। बावजूद इसके, वायु प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ा। इससे साफ है कि वाहनों, औद्योगिक गतिविधियों और निर्माण कार्य जैसे स्रोत प्रमुख जिम्मेदार रहे।
शिलांग रहा सबसे स्वच्छ शहर
जहां एक ओर उत्तर भारत के शहर वायु प्रदूषण से जूझ रहे हैं, वहीं मेघालय की राजधानी शिलांग ने राहत दी। शिलांग में पीएम 2.5 स्तर केवल 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा, जिससे वह देश का सबसे स्वच्छ शहर बना। शीर्ष 10 स्वच्छ शहरों में कर्नाटक के चार, तमिलनाडु के तीन और सिक्किम व छत्तीसगढ़ के एक-एक शहर शामिल थे।
देशभर में वायु गुणवत्ता में गिरावट
सीआरईए की रिपोर्ट के अनुसार, देश के 249 शहरों में से 212 शहरों में पीएम 2.5 का स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से कम रहा। केवल छह शहर ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के सुरक्षित स्तर (15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) को पूरा कर पाए।
श्रेणीवार स्थिति चिंताजनक
अक्टूबर में ‘अच्छी’ वायु गुणवत्ता वाले शहरों की संख्या 179 से घटकर 68 हो गई। ‘संतोषजनक’ श्रेणी वाले शहर 52 से बढ़कर 144 हुए। ‘मध्यम’ श्रेणी में चार से बढ़कर 27 शहर आए। नौ शहर ‘खराब’ श्रेणी में और एक शहर ‘बहुत खराब’ श्रेणी में पहुंच गया।
दीर्घकालिक उपायों की जरूरत
रिपोर्ट में कहा गया है कि मौसमी उपाय जैसे ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) पर्याप्त नहीं हैं। लगातार बढ़ते उत्सर्जन स्रोतों पर दीर्घकालिक नियंत्रण के लिए नीति, निगरानी और जनभागीदारी जरूरी है।विशेषज्ञों की चेतावनी
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर वर्तमान रफ्तार जारी रही तो सर्दियों में वायु गुणवत्ता और खराब होगी। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बच्चों, बुजुर्गों और अस्थमा रोगियों को सावधानी बरतने की सलाह दी है।