दिल्ली मेट्रो पर 3.8 लाख रुपये का जुर्माना: प्रदूषण नियंत्रण नियमों के उल्लंघन पर एमसीडी की सख्ती

Delhi Pollution: दिल्ली मेट्रो पर 3.8 लाख का जुर्माना, प्रदूषण नियम उल्लंघन पर कार्रवाई
Delhi Pollution: दिल्ली मेट्रो पर 3.8 लाख का जुर्माना, प्रदूषण नियम उल्लंघन पर कार्रवाई (File Photo)
एमसीडी ने महरौली-बदरपुर रोड पर निर्माण स्थलों पर प्रदूषण नियंत्रण नियमों के उल्लंघन पर डीएमआरसी पर 3.8 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। धूल नियंत्रण, बैरिकेडिंग और वेस्ट मैनेजमेंट में कमियां पाई गईं। डीएमआरसी ने सीमित अधिकार क्षेत्र और स्थानीय कचरा फेंकने की समस्या को जिम्मेदार बताया।
नवम्बर 22, 2025

कंस्ट्रक्शन कार्यों में प्रदूषण नियंत्रण को लेकर दिल्ली में बढ़ी सख़्ती

दिल्ली प्रदूषण संकट कोई नई समस्या नहीं है। शीतकाल आते ही राजधानी की हवा दमघोंटू स्तर पर पहुंच जाती है, और सरकारी एजेंसियां धूल नियंत्रण से लेकर कचरा प्रबंधन तक हर स्तर पर विशेष निगरानी शुरू कर देती हैं। इसी शृंखला में दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने राजधानी के महरौली-बदरपुर (एमबी) रोड पर चल रहे निर्माण कार्यों में आवश्यक पर्यावरणीय मानकों के उल्लंघन को लेकर दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (डीएमआरसी) के खिलाफ बड़ा कदम उठाया है। शिकायतों और निरीक्षणों के आधार पर शुक्रवार को एमसीडी ने डीएमआरसी को कुल 3 लाख 80 हजार रुपये का चालान जारी किया है।

निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण उपायों में लापरवाही का आरोप

एमसीडी द्वारा जारी की गई जानकारी के अनुसार, डीएमआरसी को प्रदूषण नियंत्रण उपायों में गंभीर कमी का दोषी पाया गया। नियमों के मुताबिक निर्माण स्थलों पर धूल को रोकने के लिए वाटर स्प्रिंकलिंग, निर्माण सामग्री को ढककर रखना, बैरिकेडिंग करना और कचरे का व्यवस्थित निस्तारण आवश्यक है। रिपोर्टों के अनुसार, एमबी रोड पर निरीक्षण के दौरान पाया गया कि इन मानकों का पालन प्रभावी ढंग से नहीं किया जा रहा था।
स्टाफ द्वारा धूल नियंत्रण के प्रयास नाकाफी पाए गए। इसके अतिरिक्त निर्माण सामग्री खुले में पड़ी मिली, जिसे सही तरीके से ढका नहीं गया था। वहीं, बैरिकेडिंग के अभाव या अनुचित व्यवस्था के चलते सड़क पर यातायात और पैदल यात्रियों के लिए भी खतरे के हालात बने रहे, जो मानकों का सीधा उल्लंघन माना जाता है।

एनजीटी और सॉलिड वेस्ट नियमों के उल्लंघन में 28 चालान

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार एमसीडी ने केवल इस एक मामले तक अपने कदम सीमित नहीं रखे। दक्षिण और मध्य दिल्ली जोन ने डीएमआरसी के खिलाफ कुल 28 चालान जारी किए। इनमें राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के दिशा-निर्देशों और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट नियमों के उल्लंघन के मामले शामिल हैं। इस कार्रवाई में कई प्रमुख बिंदु दर्ज किए गए:
• निर्माण कचरे का खुले में फेंकना
• निर्माण स्थल पर उचित बैरिकेडिंग का अभाव
• धूल नियंत्रण के लिए आवश्यक उपकरण और तकनीक का उपयोग न होना
• ऑन-साइट हाउसकीपिंग में कमी
इन सभी बिंदुओं को सीधे तौर पर पर्यावरणीय प्रावधानों और प्रदूषण नियंत्रण कानूनों का गंभीर उल्लंघन माना गया।

डीएमआरसी का बचाव: सीमित क्षेत्राधिकार और कम संसाधन

एमसीडी की कार्रवाई के जवाब में डीएमआरसी ने अपने पक्ष में विस्तृत बयान जारी किया। उनके अनुसार, एमबी रोड पर जहां निर्माण चल रहा है, वह डीएमआरसी के अधिकार क्षेत्र में केवल 6.58 किलोमीटर हिस्सा आता है। इस हिस्से में सड़क के किनारे फुटपाथ ही मौजूद नहीं हैं और अधिकांश क्षेत्र कच्ची ज़मीन पर आधारित है। डीएमआरसी का कहना है कि निर्माण कार्य सड़क के मध्य में बने बैरिकेड्स के भीतर ही किए जा रहे हैं।
इसके अतिरिक्त, डीएमआरसी ने यह भी कहा कि यातायात और पैदल आवाजाही को आसान बनाने के लिए कई स्थानों पर बैरिकेड्स को खोला गया है। एजेंसी के अनुसार, इन विशेष परिस्थितियों के चलते कई बार सभी नियमों को पूरी तरह और सतत रूप में लागू करना संभव नहीं हो पाता।

स्थानीय निवासियों पर जिम्मेदारी का आरोप

डीएमआरसी ने एमसीडी के आरोपों पर यह भी दावा किया कि निर्माण स्थल पर कचरे की स्थिति का एक बड़ा कारण स्थानीय निवासी और राहगीर हैं, जो नियमित रूप से सड़क किनारे कचरा और मलबा फेंक देते हैं। एजेंसी का कहना है कि उनकी साइट पर नगर निगम द्वारा उपलब्ध कराए गए डस्टबिनों की कमी है। इस कारण कई बार राहगीर कचरा सड़क पर फेंकते हैं, जिसे हटाने में संबंधित स्थानीय निकाय सक्रिय नहीं है।
डीएमआरसी का यह बयान इस विवाद में जिम्मेदारी के मुद्दे को और जटिल बनाता है। क्योंकि पर्यावरणीय निगरानी और सफाई में स्थानीय निकायों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, वही निर्माण एजेंसियों को अपने क्षेत्र में पर्यावरण सुरक्षा को किसी भी स्थिति में प्राथमिकता देनी होती है।

प्रदूषण नियंत्रण के लिए व्यापक समन्वय की आवश्यकता

इस विवाद ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया कि दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण केवल नियम बनाने या कार्रवाई करने का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक समन्वित प्रयास की मांग करता है। निर्माण एजेंसियां, स्थानीय निकाय, निवासी, यातायात प्रबंधक, सभी को इसमें समान रूप से योगदान देना होगा।
धूल प्रदूषण राजधानी की वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक है। यदि निर्माण स्थलों पर मानकों का पालन कठोरता से न किया जाए, तो संपूर्ण वायु गुणवत्ता प्रभावित होगी। यह स्थिति सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सीधा खतरा बनकर उभरती है।

Rashtra Bharat
Rashtra Bharat पर पढ़ें ताज़ा खेल, राजनीति, विश्व, मनोरंजन, धर्म और बिज़नेस की अपडेटेड हिंदी खबरें।