भारत में बनेगा एसजे-100 विमान : आत्मनिर्भर भारत की दिशा में ऐतिहासिक उड़ान
नई दिल्ली, 28 अक्टूबर (पीटीआई)।
भारत और रूस के बीच गहरी होती रणनीतिक साझेदारी के तहत अब एक ऐतिहासिक पहल सामने आई है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और रूस की सार्वजनिक संयुक्त स्टॉक कंपनी यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन (पीजेएससी-यूएसी) ने मिलकर एक दो इंजन वाले, संकीर्ण शरीर वाले नागरिक विमान — एसजे-100 (SJ-100) — के निर्माण का करार किया है। यह समझौता मॉस्को में सोमवार को हस्ताक्षरित हुआ।
🇮🇳 भारत में पहली बार नागरिक विमान निर्माण का आरंभ
यह भारत के इतिहास में पहली बार होगा जब देश के भीतर किसी नागरिक यात्री विमान का निर्माण किया जाएगा। अब तक 200 से अधिक एसजे-100 विमान बनाए जा चुके हैं, जिन्हें दुनिया की 16 से अधिक वाणिज्यिक एयरलाइन कंपनियाँ संचालित कर रही हैं।
एचएएल ने कहा, “एसजे-100 भारत में उड़ान (UDAN) योजना के तहत छोटे मार्गों की हवाई कनेक्टिविटी में परिवर्तनकारी भूमिका निभाएगा। इस परियोजना के तहत एचएएल को भारतीय ग्राहकों के लिए विमान निर्माण के अधिकार प्राप्त होंगे।”
भारत-रूस की प्रौद्योगिकी साझेदारी का नया अध्याय
यह समझौता न केवल तकनीकी सहयोग का प्रतीक है, बल्कि भारत-रूस के आपसी विश्वास और दीर्घकालिक साझेदारी का प्रमाण भी है। एचएएल के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डी.के. सुनील तथा पीजेएससी-यूएसी के महानिदेशक वादीम बादेखा की उपस्थिति में हुए इस समझौते को दोनों देशों की मित्रता का ‘नया अध्याय’ कहा जा रहा है।
एचएएल ने अपने वक्तव्य में कहा, “भारत में एसजे-100 का निर्माण भारतीय विमानन उद्योग के इतिहास में एक नया अध्याय खोलेगा। यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ के सपने को साकार करने की दिशा में एक ठोस कदम है।”
रोजगार और निजी क्षेत्र को मिलेगा प्रोत्साहन
विमान निर्माण से देश के निजी क्षेत्र को सशक्त करने के साथ ही बड़े पैमाने पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार अवसर भी सृजित होंगे। अनुमान के अनुसार आने वाले दस वर्षों में भारत के विमानन क्षेत्र को लगभग 200 ऐसे जेट विमानों की आवश्यकता होगी जो क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा दें, जबकि भारतीय महासागर क्षेत्र में पर्यटन और अंतरराष्ट्रीय मार्गों के लिए अतिरिक्त 350 विमानों की जरूरत होगी।
आत्मनिर्भर विमानन की दिशा में ऐतिहासिक मोड़
यह परियोजना एचएएल के लिए किसी नागरिक विमान के संपूर्ण निर्माण का पहला अवसर होगी। इससे पहले, एचएएल ने एव्रो एचएस-748 विमान का निर्माण किया था, जो 1961 में प्रारंभ हुआ और 1988 में समाप्त हुआ। वह विमान मुख्य रूप से भारतीय वायुसेना द्वारा उपयोग में लाया गया था।
इस सहयोग से न केवल देश में नागरिक विमानन तकनीक का विकास होगा बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की विमान निर्माण क्षमता को भी नई पहचान मिलेगी।
आत्मनिर्भर भारत से वैश्विक मंच तक
विशेषज्ञों का मानना है कि यह परियोजना भारत को न केवल विमान निर्माण में आत्मनिर्भर बनाएगी, बल्कि भविष्य में देश को नागरिक विमानन निर्यातक के रूप में भी स्थापित कर सकती है। यह समझौता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ नीति को भी मजबूती प्रदान करेगा।
भारत और रूस के इस संयुक्त विमान निर्माण समझौते से भारतीय विमानन उद्योग के एक नए युग की शुरुआत होगी। यह केवल तकनीकी साझेदारी नहीं, बल्कि एक ऐसी उड़ान है जो भारत को वैश्विक स्तर पर आत्मनिर्भरता के शिखर तक पहुँचाने में सहायक बनेगी।
यह समाचार पीटीआई(PTI) के इनपुट के साथ प्रकाशित किया गया है।