भारत का विकास स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में ऐतिहासिक परिवर्तन का अवसर
नई दिल्ली, 31 अक्तूबर। विश्वप्रसिद्ध मेडिकल पत्रिका ‘द लैंसेट’ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत अपनी तेज़ आर्थिक प्रगति और तकनीकी क्षमता के बल पर अब कोयले पर निर्भरता घटाकर स्वच्छ और सस्ती अक्षय ऊर्जा की दिशा में बड़ा परिवर्तन कर सकता है।
लैंसेट काउंटडाउन की कार्यकारी निदेशक डॉ. मरिना बेलन रोमानेलो ने कहा कि यदि भारत इस दिशा में ठोस निवेश करे तो यह न केवल प्रदूषण से होने वाली मौतों को घटा सकता है, बल्कि लाखों नागरिकों के स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता को भी सुधार सकता है।
स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण : एक राष्ट्रीय आवश्यकता
रोमानेलो ने एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि भारत के पास तकनीकी नवाचार, स्थानीय इंजीनियरिंग और स्टार्टअप्स की शक्ति के कारण यह परिवर्तन करने की पूर्ण क्षमता है।
उन्होंने कहा, “कोयला न केवल महंगा है बल्कि अत्यधिक प्रदूषणकारी भी। भारत यदि नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश को बढ़ाए, तो वह वैश्विक स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा नेतृत्वकर्ता बन सकता है।”
भारत सरकार पहले से ही सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और हरित हाइड्रोजन जैसे क्षेत्रों में कदम बढ़ा रही है, लेकिन रोमानेलो का मानना है कि इन प्रयासों को और मज़बूत और वित्तीय सहायता से समर्थित करने की आवश्यकता है।
प्रदूषण से हर साल लाखों मौतें
लैंसेट काउंटडाउन की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 में भारत में प्रदूषण से 17 लाख से अधिक मौतें हुईं। यह 2010 की तुलना में 38 प्रतिशत अधिक है।
रिपोर्ट में बताया गया कि जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuel) से होने वाले प्रदूषण का योगदान कुल मौतों का लगभग 44 प्रतिशत है, जबकि सड़क परिवहन में पेट्रोल के उपयोग से 2.69 लाख मौतें हुईं।
यह आँकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि प्रदूषण अब केवल पर्यावरण का नहीं, बल्कि स्वास्थ्य का गहन संकट बन चुका है।
वैज्ञानिक मॉडल और अध्ययन विधियाँ
रोमानेलो ने स्पष्ट किया कि मृत्यु और प्रदूषण के इन आँकड़ों को उन्नत वैज्ञानिक तरीकों से तैयार किया गया है।
उन्होंने बताया, “हम वास्तविक प्रदूषण स्तर, ईंधन के स्रोत, सड़क परिवहन के प्रकार और घरेलू ईंधन के उपयोग जैसी जानकारी को एक वैश्विक मॉडल में जोड़ते हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर सटीक अनुमान लगाया जा सके।”
यह मॉडल उन क्षेत्रों में भी काम करता है जहाँ पर्याप्त वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणाली नहीं है, जिससे भारत जैसे बड़े देशों में स्थानीय स्तर पर प्रदूषण के प्रभावों का मूल्यांकन संभव होता है।
सरकारी दृष्टिकोण पर सवाल
संसद में जुलाई 2024 में राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने कहा था कि “देश में ऐसे ठोस आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं जो यह सिद्ध करें कि मौतें केवल प्रदूषण के कारण हुईं।”
इस पर रोमानेलो ने कहा कि यह विज्ञान के विपरीत बयान है। उन्होंने कहा, “विश्वभर में अनेक अध्ययन यह साबित कर चुके हैं कि वायु प्रदूषण हृदय, फेफड़ों और तंत्रिका संबंधी रोगों का प्रमुख कारण है।”
उनका कहना था कि इनकार की नीति केवल नुकसान बढ़ाती है—यह न केवल स्वास्थ्य को प्रभावित करती है बल्कि अर्थव्यवस्था और श्रमिक उत्पादकता को भी कम करती है।
अस्थायी समाधानों से स्थायी लाभ नहीं
क्लाउड सीडिंग जैसी अस्थायी तकनीकों पर टिप्पणी करते हुए रोमानेलो ने कहा कि ये केवल क्षणिक उपाय हैं। उन्होंने कहा, “ऐसे प्रयोग प्रदूषण के स्रोतों को नहीं रोकते। हमें जड़ तक पहुँचने की आवश्यकता है—यानी गंदे ईंधनों के उपयोग को समाप्त करना।”
उनके अनुसार, भारत यदि नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार में बड़े पैमाने पर निवेश करे, तो इससे लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है और देश की अर्थव्यवस्था को भी स्वच्छ दिशा मिल सकती है।
भविष्य की दिशा : ऊर्जा और स्वास्थ्य का संतुलन
भारत की ऊर्जा नीति यदि ‘स्वच्छ ऊर्जा + सार्वजनिक स्वास्थ्य’ के संतुलन पर आधारित हो, तो यह आने वाले दशक में विश्व के लिए एक मॉडल राष्ट्र बन सकता है।
रोमानेलो ने कहा, “प्रदूषण पर काबू पाने से न केवल स्वास्थ्य सुधरेगा, बल्कि आर्थिक उत्पादकता और सामाजिक स्थिरता भी बढ़ेगी। भारत को अब निर्णायक कदम उठाने होंगे।”
भारत के पास अवसर है कि वह कोयले की कालिमा से निकलकर हरित ऊर्जा की उजली राह पर आगे बढ़े। यह केवल पर्यावरण का प्रश्न नहीं, बल्कि जनस्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और आने वाली पीढ़ियों के जीवन का भी सवाल है।
स्वच्छ ऊर्जा की ओर यह संक्रमण भारत के भविष्य को न केवल हरित बनाएगा, बल्कि वैश्विक मंच पर उसकी पहचान को भी मज़बूती देगा।
यह समाचार पीटीआई(PTI) के इनपुट के साथ प्रकाशित किया गया है।
 
            

 
                 Asfi Shadab
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