संघ स्थापना का उद्देश्य भारत को विश्वगुरु बनाना – डॉ. मोहन भागवत
Mohan Bhagwat RSS News: नई दिल्ली।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला “100 वर्ष की संघयात्रा – नए क्षितिज” का शुभारंभ मंगलवार को हुआ। इस अवसर पर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने संघ की स्थापना के उद्देश्य और इसकी कार्यप्रणाली पर विस्तार से प्रकाश डाला।
डॉ. भागवत ने अपने उद्घाटन संबोधन में कहा कि संघ की स्थापना भारत को केंद्र में रखकर की गई थी और इसकी सार्थकता तभी है जब भारत विश्वगुरु बने। उन्होंने कहा कि संघ के कार्य की प्रेरणा “भारत माता की जय” के उद्घोष से मिलती है।
Mohan Bhagwat RSS News: राष्ट्र की अवधारणा सत्ता पर आधारित नहीं
डॉ. भागवत ने स्पष्ट किया कि भारत में राष्ट्र की परिभाषा सत्ता पर आधारित नहीं है। अंग्रेज़ी का “नेशन” शब्द “स्टेट” से जुड़ा हुआ है, लेकिन भारत में राष्ट्र की अवधारणा सत्ता से परे है। उन्होंने कहा, “हम गुलाम थे तब भी राष्ट्र अस्तित्व में था।”
स्वतंत्रता आंदोलन और विचारधारा
Mohan Bhagwat RSS News: उन्होंने कहा कि 1857 का स्वतंत्रता संग्राम भले ही असफल रहा हो, लेकिन उसने नई चेतना जगाई। स्वामी विवेकानंद और स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महापुरुषों ने समाज को मूल विचारों की ओर लौटने का संदेश दिया। इसी क्रम में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में संघ की स्थापना की और पूरे हिंदू समाज को संगठित करने का लक्ष्य सामने रखा।
‘हिंदू’ का अर्थ सर्वसमावेशक
डॉ. भागवत ने स्पष्ट किया कि “हिंदू” शब्द केवल धार्मिक पहचान नहीं है, बल्कि यह सर्वसमावेशी दृष्टिकोण और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि हिंदू कहना “हिंदू बनाम अन्य” नहीं है, बल्कि “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना है।
भारत का स्वभाव समन्वय का
उन्होंने कहा कि भारत की एकता का रहस्य उसके भूगोल, संसाधन और आत्मपरीक्षण की परंपरा में है। भारत संघर्ष नहीं, बल्कि समन्वय को अपना स्वभाव मानता है।
Mohan Bhagwat RSS News – संघ की कार्यपद्धति
डॉ. भागवत ने कहा कि संघ का काम दो मार्गों से होता है—
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व्यक्ति का विकास
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उन्हीं व्यक्तियों से समाज का कार्य
उन्होंने बताया कि संघ बाहरी स्रोतों पर निर्भर नहीं है। गुरुदक्षिणा की परंपरा के माध्यम से स्वयंसेवक संगठन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं।
संघ का मूल उद्देश्य
अपने संबोधन के अंत में सरसंघचालक ने कहा कि संघ का उद्देश्य किसी के विरोध में नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज के उत्थान और राष्ट्र को विश्वगुरु बनाने की दिशा में निरंतर कार्य करना है।