नई दिल्ली। भारतीय राजनीति में विचारों की विविधता के बीच कभी-कभी ऐसे क्षण देखने को मिल जाते हैं, जब सियासी मतभेदों से ऊपर उठकर किसी नेता के वक्तव्य की सराहना की जाती है। ऐसा ही एक दृश्य तब सामने आया जब कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस भाषण की प्रशंसा की, जिसमें भारत को 2035 तक मैकाले की मानसिकता से पूरी तरह मुक्त करने का संकल्प दोहराया गया। यह टिप्पणी न केवल राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बनी, बल्कि यह संकेत भी देती है कि राष्ट्रीय हित से जुड़े मुद्दों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देने की परंपरा अभी भी जीवित है।
मुख्य भाषण और उसका संदर्भ
पीएम मोदी का संकल्प: भारत को मानसिक गुलामी से मुक्ति दिलाने की पुकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को आयोजित छठे रामनाथ गोयनका व्याख्यान में देश के विकास और मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता पर जोर दिया। अपने संबोधन में उन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान थोपे गए मैकाले मॉडल की शिक्षा और सोच के प्रभाव को आज भी एक बाधा बताते हुए कहा कि अगली एक सदी का भारत केवल आर्थिक मजबूती से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आत्मविश्वास से भी परिभाषित होगा।
उन्होंने यह स्पष्ट किया कि 2035 तक भारत को पश्चिमी आकलनों पर आधारित मानसिकता से निकालकर एक स्वाभिमानी राष्ट्र के रूप में खड़ा करना सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है।
शशि थरूर की उपस्थिति और प्रतिक्रिया
दिलचस्प बात यह रही कि इसी कार्यक्रम में दर्शकदीर्घा में कांग्रेस सांसद शशि थरूर भी मौजूद थे। शशि थरूर, जो लंबे समय से ऐतिहासिक, भाषाई और सांस्कृतिक विमर्श पर अपना महत्वपूर्ण दृष्टिकोण रखते रहे हैं, पीएम मोदी के विचारों से प्रभावित दिखे।
कार्यक्रम के बाद उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट लिखकर प्रधानमंत्री के भाषण की तारीफ की। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी देश को गुलामी की मानसिकता से बाहर निकालने के लिए सार्थक प्रयास कर रहे हैं और यह कि भारत अब केवल उभरती अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि विश्व के लिए एक प्रेरक मॉडल बन चुका है।
मैकाले मॉडल पर थरूर की टिप्पणी
शशि थरूर ने अपने पोस्ट में लिखते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मैकाले की दो सौ साल पुरानी विरासत के प्रभाव पर जो प्रहार किया गया, वह भाषण का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु था।
उनके अनुसार, भारतीय भाषाओं, ज्ञान-परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत को नए सिरे से संवारने की प्रधानमंत्री की अपील एक दीर्घकालिक दृष्टि को दर्शाती है। थरूर ने उल्लेख किया कि यह पहल केवल शिक्षा सुधार तक सीमित नहीं, बल्कि भारतीय समाज के आत्मविश्वास को पुनर्जीवित करने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है।
स्वास्थ्य असुविधा के बावजूद भागीदारी
थरूर ने यह भी साझा किया कि खांसी-जुकाम जैसी असुविधा के बावजूद वह कार्यक्रम में उपस्थित हुए और इसे अपने लिए सौभाग्यपूर्ण क्षण बताया। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के विमर्श भारतीय लोकतंत्र में वैचारिक संवाद को मजबूत बनाते हैं और यह आवश्यक है कि सभी पक्ष विचारों के आदान-प्रदान में भागीदारी निभाएं।
राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का दौर
थरूर की इस टिप्पणी के बाद राजनीतिक हलकों में हलचल बढ़ गई है। एक ओर उनके समर्थक इसे परिपक्व राजनीतिक दृष्टिकोण बता रहे हैं, वहीं विपक्षी खेमे में यह चर्चा तेज है कि थरूर लगातार पीएम मोदी और केंद्र सरकार के नीतिगत बिंदुओं की सराहना क्यों कर रहे हैं।
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब थरूर ने प्रधानमंत्री के किसी पहलू या निर्णय को सकारात्मक बताया हो। इससे पहले भी कई मौकों पर वह सरकार की कुछ नीतियों को सही दिशा में उठाया गया कदम कह चुके हैं।
दर्शकदीर्घा में नेता एक साथ
कार्यक्रम के दौरान एक और बात ने लोगों का ध्यान खींचा। शशि थरूर के बगल में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और दूसरी ओर पूर्व कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद बैठे दिखाई दिए। यह दृश्य राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के बीच व्यक्तिगत संबंधों और औपचारिक मर्यादाओं की झलक भी प्रस्तुत करता है।
भविष्य की राह और विमर्श की दिशा
प्रधानमंत्री के इस भाषण और थरूर की प्रतिक्रिया से यह स्पष्ट होता है कि भारत की शिक्षा, संस्कृति और मानसिकता के पुनर्निर्माण पर राष्ट्रीय स्तर पर गंभीर चर्चा चल रही है। यह विमर्श केवल सत्ता पक्ष या विपक्ष तक सीमित नहीं, बल्कि बौद्धिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी नई बहस को जन्म दे रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाते हैं, तो भारत अगले दशक में न केवल आर्थिक रूप से बल्कि वैचारिक रूप से भी एक मजबूत वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में उभर सकता है।