नई दिल्ली। ऑपरेशन सिंदूर के छह महीने पूरे होने के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद फिर से सक्रिय होने की आशंका बढ़ गई है। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और सेना ने अमेरिका के साथ अपने बेहतर संबंधों का लाभ उठाकर जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों को पुनः सक्रिय करने का प्रयास शुरू कर दिया है।
आतंकवाद पर आईएसआई का पुनरुत्थान प्रयास
आपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सुरक्षा बलों ने जैश, लश्कर और हिज्बुल मुजाहिदीन के कई ठिकानों को ध्वस्त कर दिया था। इस कार्रवाई से इन संगठनों को गंभीर क्षति हुई थी और उनके कई प्रमुख नेता सुरक्षित स्थानों में ही छिप गए। आईएसआई अब अपने आतंकियों को पुनः सक्रिय करने के लिए रणनीति पर काम कर रही है।
आतंकवादी सरगना मसूद अजहर और हाफिज सईद ज्यादातर समय अपने सुरक्षित घरों में ही रहे। भारतीय खुफिया एजेंसियों का कहना है कि ये नेता भारतीय हमले के डर से बाहर नहीं निकल रहे हैं, परंतु आईएसआई ने उन्हें आश्वासन दिया है कि अमेरिका-पाकिस्तान संबंध मजबूत हैं और किसी भी भारतीय कार्रवाई में अमेरिकी हस्तक्षेप संभव है।
जैश और लश्कर की रणनीति
आईएसआई ने अपने आतंकवादी सरगनाओं को भारत विरोधी भाषण देने और कैडरों को सक्रिय करने के लिए कहा है। अजहर और सईद ने लाहौर में आईएसआई अधिकारियों के साथ कई बैठकें की हैं। अजहर मसूद ने सार्वजनिक रूप से संक्षिप्त उपस्थिति दर्ज करवाई और इसके बाद जैश के चैनलों पर उनके संदेश प्रसारित होने लगे।
आतंकवादी संगठन धीरे-धीरे सक्रिय हो रहे हैं और जम्मू-कश्मीर में हिंसा फैलाने की योजना बना रहे हैं। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने इस खतरे को देखते हुए सीमा क्षेत्रों में सतर्कता बढ़ा दी है।
भारत की कड़ी चेतावनी
भारतीय अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान की किसी भी गलत हरकत का सीधा जवाब दिया जाएगा। भारत ने यह भी कहा है कि वह किसी भी बाहरी ताकत की ओर नहीं देखेगा, और आतंकवादी गतिविधियों को युद्ध के रूप में माना जाएगा।
सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी में पाकिस्तान के कब्जेवाले गुलाम जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) में 80 से अधिक आतंकी लॉन्च पैड शामिल हैं। हाल ही में भारतीय बलों ने कई घुसपैठ के प्रयासों को विफल किया। यह दिखाता है कि आतंकवादियों की योजना गंभीर है और उन्हें रोकना आवश्यक है।
भविष्य की चुनौतियाँ
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद का पुनरुत्थान सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है। आतंकवादी संगठन केवल स्थानीय स्तर पर नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग के जरिए सक्रिय हो रहे हैं। भारतीय खुफिया एजेंसियां लगातार इन मॉड्यूल्स पर निगरानी रख रही हैं। इस स्थिति में केवल सशस्त्र बलों का ही नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक निगरानी का भी योगदान महत्वपूर्ण होगा।
आतंकवाद के इस पुनरुत्थान से यह स्पष्ट होता है कि भारत को सुरक्षा और खुफिया तंत्र को और मजबूत करने की आवश्यकता है। राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर सतर्कता बनाए रखना समय की मांग है।