Kashmir Terrorism: कश्मीर में अंसार गजवात-उल-हिंद की फिर वापसी की आशंका
कश्मीर घाटी में एक बार फिर आतंक की परछाइयां गहराती दिख रही हैं। जाकिर मूसा की मौत के बाद खत्म माने गए आतंकी संगठन अंसार गजवात-उल-हिंद (एजीएच) के पुनरुत्थान के संकेत मिलने लगे हैं। हाल में गिरफ्तार किए गए डॉ. आदिल और डॉ. मुजम्मिल की गिरफ्तारी ने सुरक्षाबलों को सतर्क कर दिया है। दोनों ही उच्च शिक्षित होने के बावजूद इस्लामी कट्टरपंथ से प्रभावित होकर आतंक के रास्ते पर चले गए।
सफेदपोश आतंक का नया चेहरा
एनसीआर और उत्तर प्रदेश में हुई गिरफ्तारियों से यह बात सामने आई है कि एजीएच अब पुराने ढांचे के बजाय एक सफेदपोश नेटवर्क के रूप में काम कर रहा है। ये लोग धार्मिक कट्टरता की आड़ में नई पीढ़ी को प्रभावित कर रहे हैं। पुलिस सूत्रों के अनुसार, डॉक्टरों जैसे शिक्षित वर्ग का इस तरह आतंक से जुड़ना इस प्रवृत्ति के नए खतरनाक आयाम को दर्शाता है।
जाकिर मूसा से प्रेरित थे दोनों डॉक्टर
डॉ. आदिल और डॉ. मुजम्मिल दोनों ही आतंकवादी जाकिर मूसा और जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर से प्रेरित बताए गए हैं। दोनों पर आरोप है कि वे ऑनलाइन माध्यम से जिहादी विचारधारा फैलाने में सक्रिय थे। उनके मोबाइल और लैपटॉप से कई संदिग्ध संदेश, वीडियो और धार्मिक उकसावे वाली सामग्री बरामद की गई है।
मूसा का सफर और संगठन की स्थापना
जाकिर मूसा ने हिजबुल मुजाहिदीन से अलग होकर जुलाई 2017 में अंसार गजवात-उल-हिंद की स्थापना की थी। त्राल निवासी मूसा ने आतंक को पाकिस्तानी परस्ती से अलग कर शरियत की स्थापना से जोड़ दिया था। उसने कश्मीर के हुर्रियत नेताओं को भी धमकी दी थी, जो राजनीतिक हलकों में हलचल का कारण बना। मूसा ने अल-कायदा से आधिकारिक रूप से नाता जोड़ा, और उसके मुखपत्र अल हूर पर इसकी पुष्टि हुई।
अल-कायदा के नेटवर्क से जुड़े तार
मूसा के संगठन के तार न केवल कश्मीर, बल्कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और सीरिया तक फैले थे। मई 2019 में मूसा के मारे जाने के बाद उसके सहयोगी हमीद ने कमान संभाली, पर वह भी कुछ महीनों में मारा गया। इसके बाद तत्कालीन पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने एजीएच के सफाए की घोषणा की थी।
पुलिस की सतर्कता और पुराने प्रयास
Kashmir Terrorism: मूसा की मौत के बाद भी कई बार इस संगठन के पुनर्जीवित होने के प्रयास हुए। जुलाई 2021 में उत्तर प्रदेश में दो एजीएच आतंकी पकड़े गए थे। जनवरी 2022 में गाज़ीपुर में हुए ग्रेनेड हमले के प्रयास ने भी इसी नेटवर्क के होने के संकेत दिए थे। अप्रैल 2021 में कश्मीर में सात आतंकियों के मारे जाने के बाद पुलिस ने एक बार फिर एजीएच के सफाए की घोषणा की थी, लेकिन अब एक बार फिर इसके नए रूप में लौटने की आशंका गहराने लगी है।
कट्टरपंथी विचारधारा की नई चुनौती
कश्मीर में शिक्षित वर्ग का आतंक से जुड़ना सुरक्षा एजेंसियों के लिए नई चुनौती है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह मानसिक ब्रेनवॉश का परिणाम है जो सोशल मीडिया और धार्मिक मंचों के जरिए फैलाया जा रहा है। ऐसी विचारधाराएं न केवल युवा पीढ़ी को भ्रमित कर रही हैं, बल्कि घाटी में अमन की कोशिशों को भी कमजोर कर रही हैं।
सुरक्षा एजेंसियों की रणनीति
जम्मू-कश्मीर पुलिस और खुफिया एजेंसियां अब ऐसे “वाइट कॉलर” आतंकियों की पहचान पर फोकस कर रही हैं जो शिक्षा और पेशे की आड़ में आतंक के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। केंद्रीय एजेंसियां भी इन मामलों में समन्वय बना रही हैं ताकि किसी बड़े नेटवर्क को पनपने से रोका जा सके।
एजीएच की संभावित वापसी इस बात का संकेत है कि आतंकवाद का चेहरा अब बदल रहा है। बंदूक और ग्रेनेड से ज्यादा खतरनाक अब विचारधारा का जहर बन चुका है। ऐसे में देश की सुरक्षा व्यवस्था को न केवल हथियारों के खिलाफ, बल्कि मानसिक ब्रेनवॉश के खिलाफ भी मजबूती से लड़ना होगा।