सिंधु जल संधि के निलंबन के बाद भारत ने जल संसाधनों के उपयोग में एक नया अध्याय शुरू किया है। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में दुलहस्ती स्टेज-II जलविद्युत परियोजना को हरी झंडी दे दी है। यह परियोजना 260 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता वाली है और इससे न केवल क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति मजबूत होगी, बल्कि भारत की ऊर्जा सुरक्षा में भी अहम योगदान मिलेगा।
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब 23 अप्रैल 2025 से सिंधु जल संधि प्रभावी रूप से निलंबित हो गई है। इस निलंबन ने भारत को पश्चिमी नदियों, खासकर चिनाब, झेलम और सिंधु पर अधिक स्वतंत्रता प्रदान की है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भारत की जल सुरक्षा और ऊर्जा उत्पादन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगा।
सिंधु जल संधि और भारत की नई रणनीति
1960 में हस्ताक्षरित सिंधु जल संधि के तहत भारत और पाकिस्तान के बीच छह नदियों का जल बंटवारा तय किया गया था। इस समझौते के अनुसार, पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों पर अधिकार था, जबकि भारत को रावी, ब्यास और सतलुज नदियों का उपयोग करने की छूट मिली थी। हालांकि, पाकिस्तान द्वारा इस संधि का बार-बार राजनीतिक इस्तेमाल किए जाने और सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने के कारण भारत ने इस संधि को निलंबित करने का निर्णय लिया।
संधि के निलंबन के बाद अब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में कई बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाने का फैसला किया है। इनमें सावलकोटे, रतले, बुरसर, पाकल दुल, क्वार, किरु और किर्थई-I एवं II जैसी परियोजनाएं शामिल हैं। इन परियोजनाओं के जरिए भारत न केवल अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेगा, बल्कि क्षेत्रीय विकास को भी गति देगा।
दुलहस्ती स्टेज-II परियोजना की खासियत
दुलहस्ती स्टेज-II परियोजना मौजूदा 390 मेगावाट की दुलहस्ती स्टेज-I जलविद्युत परियोजना का विस्तार है। नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एनएचपीसी) द्वारा 2007 में शुरू की गई यह परियोजना सफलतापूर्वक संचालित हो रही है। अब स्टेज-II में 260 मेगावाट की अतिरिक्त क्षमता जोड़ी जाएगी, जिससे कुल उत्पादन 650 मेगावाट हो जाएगा।
इस परियोजना की योजना के तहत स्टेज-I पावर स्टेशन से निकलने वाले पानी को 3,685 मीटर लंबी और 8.5 मीटर व्यास वाली एक अलग सुरंग के माध्यम से डायवर्ट किया जाएगा। इस सुरंग से घोड़े की नाल के आकार का एक तालाब बनाया जाएगा, जो स्टेज-II के लिए जल आपूर्ति सुनिश्चित करेगा।
परियोजना में एक सर्ज शाफ्ट, प्रेशर शाफ्ट और भूमिगत पावरहाउस का निर्माण किया जाएगा। पावरहाउस में दो 130 मेगावाट की इकाइयां लगाई जाएंगी, जिससे कुल स्थापित क्षमता 260 मेगावाट होगी। इससे वार्षिक ऊर्जा उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि होगी, जो क्षेत्र की बिजली जरूरतों को पूरा करने में मददगार साबित होगी।
भूमि अधिग्रहण और स्थानीय प्रभाव
दुलहस्ती स्टेज-II परियोजना के लिए कुल 60.3 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता अनुमानित है। इसमें से 8.27 हेक्टेयर निजी भूमि किश्तवाड़ जिले के बेंजवार और पालमार गांवों से ली जाएगी। सरकार ने भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को पारदर्शी और न्यायसंगत बनाने के लिए स्थानीय लोगों के साथ विचार-विमर्श किया है।
यह परियोजना क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा करेगी और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती देगी। बिजली उत्पादन से न केवल जम्मू-कश्मीर बल्कि पूरे उत्तर भारत को लाभ होगा। इसके अलावा, यह परियोजना सिंचाई और पेयजल आपूर्ति में भी सुधार लाने में सहायक होगी।
पाकिस्तान की बढ़ती चिंताएं
सिंधु जल संधि के निलंबन और भारत द्वारा चिनाब बेसिन में बड़ी परियोजनाओं को मंजूरी देने से पाकिस्तान की चिंताएं बढ़ गई हैं। पाकिस्तान लंबे समय से इस समझौते का राग अलापता रहा है और भारत पर पानी रोकने के आरोप लगाता रहा है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि भारत अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार ही इन परियोजनाओं को आगे बढ़ा रहा है।
सिंधु जल संधि के निलंबन के बाद भारत को पश्चिमी नदियों पर अधिक नियंत्रण मिल गया है, जिससे वह अपनी जरूरतों के अनुसार जल संसाधनों का उपयोग कर सकता है। यह कदम भारत की जल सुरक्षा और ऊर्जा स्वतंत्रता की दिशा में महत्वपूर्ण है।
जम्मू-कश्मीर में जलविद्युत क्षमता का दोहन
जम्मू-कश्मीर में भारी जलविद्युत क्षमता मौजूद है, लेकिन अब तक इसका पूरी तरह से दोहन नहीं हो पाया था। केंद्र सरकार ने अब इस क्षेत्र में कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को शुरू करने का निर्णय लिया है। दुलहस्ती स्टेज-II इस व्यापक रणनीति का एक अहम हिस्सा है।
इन परियोजनाओं से न केवल बिजली उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि क्षेत्र का समग्र विकास भी होगा। रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे, बुनियादी ढांचे में सुधार होगा और स्थानीय लोगों के जीवन स्तर में बदलाव आएगा।
ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में भारत का कदम
भारत ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर जोर दे रहा है। जलविद्युत इनमें से एक प्रमुख स्रोत है। दुलहस्ती स्टेज-II जैसी परियोजनाएं भारत को ऊर्जा में आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेंगी।
इसके अलावा, जलविद्युत परियोजनाएं पर्यावरण के अनुकूल भी होती हैं। ये कार्बन उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। भारत ने 2030 तक अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है और जलविद्युत इस लक्ष्य को हासिल करने में एक अहम कड़ी है।
सिंधु जल संधि के निलंबन के बाद दुलहस्ती स्टेज-II परियोजना को मंजूरी देना भारत की दूरदर्शी सोच और रणनीतिक योजना को दर्शाता है। यह परियोजना न केवल जम्मू-कश्मीर बल्कि पूरे देश के लिए ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण योगदान देगी। भारत अब अपने जल संसाधनों का बेहतर उपयोग कर रहा है और आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ रहा है।