जम्मू-कश्मीर विधानसभा में आप विधायक की गिरफ़्तारी पर बवाल
श्रीनगर, 27 अक्तूबर 2025 — जम्मू-कश्मीर विधानसभा का सोमवार का सत्र उस समय तीखे हंगामे में बदल गया जब आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक मेहराज मलिक को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (Public Safety Act – PSA) के तहत हिरासत में लिए जाने का मुद्दा उठाया गया। विपक्षी दलों ने इस कार्रवाई को लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत बताते हुए सरकार पर कड़ा प्रहार किया।
विपक्ष का आरोप — “जनप्रतिनिधियों की आवाज़ दबाने की कोशिश”
नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के विधायक सज्जाद शहीन ने इस मुद्दे पर एक घंटे की चर्चा की मांग करते हुए कहा कि “जब एक निर्वाचित प्रतिनिधि को बिना न्यायिक प्रक्रिया के हिरासत में लिया जा सकता है, तो लोकतंत्र की भावना पर प्रश्न उठता है।”
उन्होंने कहा कि सरकार और प्रशासन लोगों की आवाज़ को दबाने का प्रयास कर रहे हैं।
इस पर भाजपा के विधायक आर.एस. पाठानिया ने कहा कि PSA लागू करने का निर्णय जिला मजिस्ट्रेट (DM) के अधिकार क्षेत्र में आता है। उनके इस वक्तव्य पर विपक्षी बेंचों में तीखी प्रतिक्रियाएँ देखने को मिलीं और कई सदस्य अपनी सीटों से उठ खड़े हुए।
स्पीकर ने दी अनुशासन बनाए रखने की चेतावनी
हंगामे के बीच विधानसभा अध्यक्ष अब्दुल रहीम राथर ने सदन में व्यवस्था बहाल करने की कोशिश की। उन्होंने कहा,
“कृपया कोई भी सदस्य सदन की मर्यादा न तोड़े। अगर आप किसी सदस्य की बात से असहमत हैं, तो भी उसे अपनी बात पूरी करने दें।”
उन्होंने स्वतंत्र विधायक शब्बीर कुल्ले को सदन के वेल में जाने से भी रोका और स्पष्ट किया कि न्यायालय में लंबित मामलों पर चर्चा सदन में नहीं की जा सकती।
क्या प्रशासन संविधान से ऊपर है? – नज़ीर अहमद गुरेज़ी का सवाल
NC विधायक नज़ीर अहमद खान गुरेज़ी ने सरकार और प्रशासन पर तीखा सवाल दागा,
“क्या अब राज्य डीसी और डीएम के आदेशों से चलेगा? अगर आज मलिक को गिरफ़्तार किया जा सकता है, तो कल कोई और विधायक भी निशाने पर आ सकता है।”
उन्होंने कहा कि अगर मेहराज मलिक ने कोई राष्ट्रविरोधी गतिविधि की है, तो कानूनी प्रक्रिया के तहत साक्ष्य प्रस्तुत किए जाएँ, लेकिन बिना सुनवाई के हिरासत लोकतंत्र का अपमान है।
उन्होंने यह भी प्रस्ताव दिया कि एक विधानसभा समिति गठित की जाए जो यह जाँच करे कि मलिक की गिरफ़्तारी वाजिब थी या नहीं।
पीपुल्स कॉन्फ्रेंस ने PSA को “काला कानून” बताया
पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (PC) के विधायक साजिद लोन ने PSA की आलोचना करते हुए कहा कि यह अधिनियम नागरिक स्वतंत्रता के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।
उन्होंने कहा, “मेहराज मलिक पर PSA लगाना अन्यायपूर्ण और असंवैधानिक कदम है। इस कानून का दुरुपयोग दशकों से होता आया है और अब यह राजनीतिक असहमति को कुचलने का औज़ार बन गया है।”
स्पीकर का अंतिम निर्णय – न्यायालय में लंबित मामलों पर चर्चा वर्जित
विधानसभा अध्यक्ष ने अंत में स्पष्ट किया कि “यदि मामला न्यायालय के विचाराधीन है, तो उस पर सदन में चर्चा नहीं की जा सकती।”
उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधियों को कानूनी प्रक्रिया का सम्मान करना चाहिए और सदन को ऐसी चर्चाओं में नहीं उलझना चाहिए जो न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करें।
जनसुरक्षा अधिनियम (PSA) क्या है?
जम्मू-कश्मीर का सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (Public Safety Act) एक प्रतिरोधात्मक हिरासत कानून है, जिसके तहत राज्य सरकार किसी भी व्यक्ति को दो वर्ष तक बिना मुकदमे के हिरासत में रख सकती है।
इस कानून का उपयोग अतीत में कई बार विवादों में रहा है, क्योंकि इसे अक्सर राजनीतिक असंतोष को दबाने के साधन के रूप में देखा गया है।
लोकतंत्र और सुरक्षा के बीच संतुलन का सवाल
विधानसभा में हुआ यह हंगामा केवल एक विधायक की गिरफ्तारी का विरोध नहीं था, बल्कि यह लोकतांत्रिक स्वतंत्रता और प्रशासनिक शक्ति के बीच संतुलन की बहस को उजागर करता है।
विपक्ष का मानना है कि लोकतंत्र की आत्मा जनता की आवाज़ में है, और यदि वह आवाज़ प्रशासनिक आदेशों से दबाई जाएगी, तो लोकतंत्र का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।
यह समाचार पीटीआई(PTI) के इनपुट के साथ प्रकाशित किया गया है।