बेंगलुरु: कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और दिग्गज उद्योगपति अज़ीम प्रेमजी (Azim Premji) के बीच Wipro कैंपस को लेकर खींचतान ने सुर्खियां बटोरी हैं। Wipro के फाउंडर चेयरमैन अज़ीम प्रेमजी ने साफ शब्दों में कहा है कि कंपनी का सारजापुर कैंपस “एक्सक्लूसिव प्राइवेट प्रॉपर्टी” है और वहां सार्वजनिक वाहन आवागमन की अनुमति नहीं दी जा सकती।
दरअसल, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने 19 सितंबर को प्रेमजी को पत्र लिखकर Wipro कैंपस से सीमित स्तर पर पब्लिक व्हीकल मूवमेंट की अनुमति देने का आग्रह किया था। इसका मकसद बेंगलुरु के यातायात बोझ को थोड़ा कम करना था।
वेब स्टोरी:
Premji का जवाब: ‘Private Property, Not Public Thoroughfare’
प्रेमजी ने अपने जवाब में लिखा,
“हम इस सुझाव के प्रति संवेदनशील हैं, लेकिन सारजापुर कैंपस Wipro की एक्सक्लूसिव प्राइवेट प्रॉपर्टी है, जो एक लिस्टेड कंपनी के स्वामित्व में है और इसे सार्वजनिक मार्ग के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इस पर पब्लिक व्हीकल मूवमेंट की अनुमति देने से महत्वपूर्ण कानूनी, गवर्नेंस और स्टैच्यूटरी चुनौतियां सामने आएंगी।”
SEZ और Compliance का मुद्दा
प्रेमजी ने यह भी साफ किया कि Wipro का सारजापुर कैंपस एक Special Economic Zone (SEZ) है, जहां कड़े अनुबंध और सख्त Access Control Norms लागू होते हैं। ऐसे में बाहरी वाहनों का आवागमन SEZ की शर्तों और ग्लोबल क्लाइंट सर्विसेज के मानकों का उल्लंघन होगा।
उन्होंने कहा,
“हमारे SEZ के संविदात्मक नियम हमें कड़े, नॉन-नेगोशिएबल एक्सेस कंट्रोल का पालन करने के लिए बाध्य करते हैं। इसीलिए पब्लिक मूवमेंट न तो टिकाऊ समाधान है और न ही सुरक्षित।”
सतत समाधान के लिए Scientific Study का प्रस्ताव
हालांकि प्रेमजी ने केवल मना ही नहीं किया, बल्कि एक वैकल्पिक समाधान भी पेश किया। Wipro ने सरकार को सुझाव दिया कि बेंगलुरु की ट्रैफिक समस्या के लिए किसी विश्वस्तरीय शहरी परिवहन प्रबंधन (urban transport management) विशेषज्ञ संस्था द्वारा एक व्यापक और वैज्ञानिक अध्ययन कराया जाए।
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कंपनी ने बयान में कहा:
“बेंगलुरु की ट्रैफिक समस्या कई कारकों से जुड़ी जटिलता है, जिसका कोई एकल समाधान संभव नहीं। हमें लगता है कि सबसे प्रभावी रास्ता एक व्यापक, वैज्ञानिक अध्ययन कराना है, ताकि शॉर्ट-टर्म, मीडियम-टर्म और लॉन्ग-टर्म के लिए व्यावहारिक समाधान तैयार किए जा सकें। Wipro इस अध्ययन में सहयोग करने और संसाधन उपलब्ध कराने के लिए तैयार है।”
राजनीतिक और कॉर्पोरेट टकराव की नई मिसाल
यह घटना राज्य सरकार और कॉर्पोरेट हाउसेज़ के बीच पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाम प्राइवेट प्रॉपर्टी राइट्स की बहस को सामने लाती है। जहाँ सरकार शहर की ट्रैफिक समस्या का तात्कालिक हल खोज रही है, वहीं कंपनियाँ अपने ग्लोबल ऑपरेशन्स और कॉन्ट्रैक्चुअल बाध्यताओं का हवाला देकर ऐसे प्रयासों से किनारा कर रही हैं।
आगे का रास्ता
अब देखना होगा कि कर्नाटक सरकार Wipro के प्रस्ताव पर कैसे प्रतिक्रिया देती है। क्या वैज्ञानिक अध्ययन के जरिए नया रोडमैप तैयार होगा, या यह विवाद और गहराएगा? इतना तय है कि यह मुद्दा आने वाले समय में शहर की पॉलिसी, पब्लिक-प्राइवेट रिश्तों और शहरी विकास मॉडल पर गहरा असर डाल सकता है।