Mohan Bhagwat RSS: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शनिवार को बेंगलुरु में दो दिवसीय व्याख्यानमाला का शुभारंभ किया। इस व्याख्यान श्रृंखला का विषय था — “राष्ट्रीय जीवन में संघ की दृष्टि और भूमिका”।
भागवत जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि “हिंदू होना केवल एक पहचान नहीं है, बल्कि यह भारत के प्रति जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व का प्रतीक है।”
संघ को समझने के लिए तथ्य जरूरी, अफवाह नहीं
अपने संबोधन की शुरुआत में डॉ. भागवत ने कहा कि पिछले एक दशक से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर तरह-तरह की बातें सामने आती रही हैं, परंतु इनमें से अधिकांश धारणाएँ अधूरी या अफवाहों पर आधारित हैं।
उन्होंने स्पष्ट कहा, “संघ को दूसरों की बातों से नहीं जाना जा सकता। जो लोग संघ को समझना चाहते हैं, उन्हें स्वयं अनुभव करना होगा। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक भ्रम फैलते रहेंगे।”
भागवत जी ने यह भी याद दिलाया कि 2018 में दिल्ली में इसी उद्देश्य से व्याख्यानमाला आयोजित की गई थी ताकि संघ के बारे में प्रामाणिक और तथ्यात्मक जानकारी समाज तक पहुँचे।
Mohan Bhagwat RSS: समर्थन या विरोध का आधार तथ्य होना चाहिए
आरएसएस प्रमुख ने अपने वक्तव्य में कहा कि किसी भी संगठन के प्रति समर्थन या विरोध भावनाओं पर नहीं, बल्कि तथ्यों पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने कहा, “संघ को समझे बिना उसकी आलोचना या समर्थन करना उचित नहीं। जो लोग संघ को जानते हैं, वे जानते हैं कि इसका उद्देश्य केवल राष्ट्र सेवा है।”
भागवत जी के अनुसार, संघ किसी राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, समाज और राष्ट्र की एकजुटता के लिए कार्यरत संस्था है।
“हिंदू” शब्द का गहरा अर्थ
डॉ. मोहन भागवत ने कहा, “जब हम स्वयं को हिंदू कहते हैं, तो यह केवल धर्म की परिभाषा नहीं, बल्कि हमारी जीवनशैली, हमारी संस्कृति और हमारे राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव है।”
उन्होंने समझाया कि हिंदुत्व का अर्थ किसी विशेष पूजा-पद्धति से नहीं, बल्कि उस जीवनदृष्टि से है जो सबके कल्याण और समरसता की भावना रखती है।
भागवत जी ने कहा, “हिंदू होना मतलब यह मानना कि हम सब एक ही मातृभूमि के संतान हैं। भारत की सेवा, समाज की रक्षा और संस्कृति का संरक्षण ही सच्चा राष्ट्रधर्म है।”
समाज के प्रति उत्तरदायित्व का भाव
Mohan Bhagwat RSS: अपने वक्तव्य में उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह समाज में समरसता और सहयोग की भावना बनाए रखे। उन्होंने कहा, “संघ किसी व्यक्ति या संगठन के विरोध में नहीं, बल्कि सकारात्मक राष्ट्र निर्माण में विश्वास रखता है। हमें एक-दूसरे को समझने और जोड़ने की दिशा में कार्य करना चाहिए।”
भागवत जी ने समाज के सभी वर्गों से अपील की कि वे परस्पर मतभेदों को छोड़कर देश के विकास के लिए एकजुट हों। उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा उसकी विविधता में बसती है, और यही विविधता राष्ट्र की शक्ति है।
राष्ट्र निर्माण में संघ की भूमिका
Mohan Bhagwat RSS: डॉ. भागवत ने बताया कि संघ का उद्देश्य किसी राजनीतिक सत्ता का केंद्र बनना नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग में राष्ट्रीय चेतना का विकास करना है। उन्होंने कहा, “संघ का काम व्यक्ति निर्माण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण करना है। जब व्यक्ति अपने कर्तव्य को समझेगा, तभी समाज और राष्ट्र सशक्त बनेगा।”
उन्होंने यह भी कहा कि आज भारत विश्व में एक नई भूमिका निभाने जा रहा है, और इस परिवर्तन के केंद्र में भारतीय संस्कृति की वही प्राचीन दृष्टि है — “वसुधैव कुटुंबकम्।”