RSS रूट मार्च में सरकारी अधिकारी की भागीदारी
कर्नाटक के रायचूर जिले में 12 अक्टूबर 2025 को आयोजित RSS रूट मार्च में भाग लेने के कारण कांग्रेस सरकार के नेतृत्व वाले राज्य ने पंचायती विकास अधिकारी प्रवीण कुमार के.पी. को 17 अक्टूबर को निलंबित कर दिया। सरकारी नियमों के अनुसार, सिविल सर्विस अधिकारियों का किसी राजनीतिक या सामाजिक संगठन के गतिविधियों में भाग लेना वर्जित है।
राज्य सरकार ने इस कार्रवाई के माध्यम से स्पष्ट किया कि सरकारी अधिकारी सर्वपक्षीय और निष्पक्ष रहना अनिवार्य है और किसी राजनीतिक या सांस्कृतिक संगठन के प्रति पक्षपात नहीं दिखा सकते।
मुख्यमंत्री और मंत्री का रुख
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री प्रियंक खारगे ने निलंबन को उचित ठहराया। उनका कहना है कि सरकारी अधिकारियों को किसी राजनीतिक संगठन की गतिविधियों में शामिल होने की अनुमति नहीं है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सार्वजनिक स्थानों में RSS या किसी अन्य संगठन की गतिविधियों पर सीमित निगरानी और प्रतिबंध आवश्यक हैं, ताकि प्रशासन की निष्पक्षता बनी रहे।
मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को संदेश दिया है कि यदि कोई सरकारी पद पर रहते हुए संगठन के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनना चाहता है, तो उसे अपने सरकारी पद से इस्तीफा देना होगा।
भाजपा का विरोध और कानूनी चुनौती
भाजपा ने इस कार्रवाई की निंदा की और इसे अवैध करार दिया। उनका कहना है कि कोर्ट के निर्णयों के अनुसार RSS को एक सांस्कृतिक संगठन माना गया है, इसलिए उसके रूट मार्च में भाग लेना किसी नियम का उल्लंघन नहीं है।
भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्य ने भी इस निर्णय के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की धमकी दी है। उन्होंने कहा कि सरकारी अधिकारी की व्यक्तिगत गतिविधियों पर राजनीतिक दबाव बनाना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
सरकारी निष्पक्षता और कानून का महत्व
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकारी अधिकारियों के लिए सिविल सेवा आचार संहिता का पालन करना अनिवार्य है। इस संहिता का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग न करें और शासन की निष्पक्षता बनी रहे।
साथ ही, सार्वजनिक आयोजनों में भाग लेने वाले अधिकारी यह सुनिश्चित करें कि उनकी भागीदारी किसी राजनीतिक या सांस्कृतिक संगठन की गतिविधियों को प्रभावित न करे। इस घटना ने स्पष्ट किया कि सरकारी पद के साथ व्यक्तिगत और राजनीतिक गतिविधियों में संतुलन बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है।
राज्य और समाज पर प्रभाव
राज्य में इस निलंबन के बाद राजनीतिक दलों और नागरिक समाज में बहस शुरू हो गई है। कुछ लोग इसे सरकारी प्रशासन की निष्पक्षता बनाए रखने की कार्रवाई मान रहे हैं, जबकि अन्य इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रतिबंध की तरह देख रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार की घटनाएँ अधिकारियों को सिविल सेवा नियमों का पालन करने और सार्वजनिक विश्वास बनाए रखने की आवश्यकता की याद दिलाती हैं।