फिर गूंजी दर्दनाक खबर – एक और मासूम की जान गई
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से एक और दुखद खबर सामने आई है, जहां एक पांच महीने की बच्ची की मौत आयुर्वेदिक खांसी की दवा और पाउडर के सेवन के बाद हो गई। यह घटना उस वक्त सामने आई जब राज्य अब भी ‘Coldrif’ कफ सिरप से जुड़ी 24 बच्चों की मौतों के दर्द से उबर नहीं पाया था।
बच्ची का नाम रूही मिनोटे बताया गया है, जो सर्दी और खांसी से पीड़ित थी। परिवार ने पास की कुराथा मेडिकल शॉप से एक आयुर्वेदिक सिरप और पाउडर खरीदा था। चार दिन तक दवा देने के बाद बच्ची की तबीयत अचानक बिगड़ गई और उसने दम तोड़ दिया।
प्रशासन हरकत में, दुकान सील – जांच के आदेश
घटना के बाद चौरई के उपखंड अधिकारी (एसडीएम) प्रभात मिश्रा ने बताया कि परिवार द्वारा खरीदी गई दवाओं के सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं। सिरप और पाउडर की जांच रिपोर्ट आने तक दुकान को सील कर दिया गया है।
पुलिस ने अप्राकृतिक मृत्यु का मामला दर्ज कर लिया है। बच्ची के विसरा को फॉरेंसिक साइंस लैब (एफएसएल) जबलपुर भेजा गया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही मौत के कारणों की पुष्टि की जाएगी।
‘Coldrif’ कफ सिरप मामला – मौतों की गिनती अब 25 तक पहुंची
यह घटना ‘Coldrif’ कफ सिरप कांड की पृष्ठभूमि में हुई है, जिसमें अब तक 25 बच्चों की मौत हो चुकी है। इससे पहले 21 मौतें छिंदवाड़ा, 2 बेटूल और 1 पांढुर्णा से दर्ज की गई थीं।
फॉरेंसिक जांच में पाया गया था कि ‘Coldrif’ सिरप में 48.6 प्रतिशत डाइएथिलीन ग्लाइकोल (Diethylene Glycol) नामक घातक रसायन मौजूद था — जो मानव शरीर के लिए अत्यंत विषैला होता है और किडनी फेल्योर का कारण बन सकता है।
निर्माता और डॉक्टर गिरफ्तार
इस सिरप को बनाने वाली तमिलनाडु स्थित कंपनी ‘Sresen Pharma’ के मालिक रंगनाथन गोविंदन को पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
इसके अलावा छिंदवाड़ा के सरकारी शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण सोनी को भी गिरफ्तार किया गया था, जिन्होंने बच्चों को यह सिरप लिखी थी। वह 5 अक्टूबर से न्यायिक हिरासत में हैं।
दवा सुरक्षा पर बड़ा सवाल
इन घटनाओं ने देश में दवा सुरक्षा प्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। यह चिंता का विषय है कि जिन उत्पादों को आयुर्वेदिक या प्राकृतिक बताकर सुरक्षित माना जाता है, उनमें भी अब गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों का उल्लंघन देखा जा रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि आयुर्वेदिक औषधियों के उत्पादन और बिक्री में अभी भी कड़ी निगरानी और लैब परीक्षण की कमी है। छोटे शहरों में कई दुकानों पर बिना डॉक्टर की सलाह के ओवर-द-काउंटर (OTC) दवाओं की बिक्री आम बात है।
सरकार के लिए चेतावनी की घंटी
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने कहा है कि जांच पूरी होने के बाद जिम्मेदार व्यक्तियों और दुकानदारों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
राज्य सरकार ने भी आयुर्वेदिक और एलोपैथिक दोनों तरह की औषधियों की बिक्री करने वाली दुकानों का निरीक्षण अभियान शुरू करने के निर्देश दिए हैं।
आयुर्वेदिक दवाओं पर भरोसा बनाम सावधानी
भारत में सदियों से आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति पर लोगों का विश्वास कायम रहा है। परंतु आधुनिक युग में जब वाणिज्यिक लाभ के लिए गुणवत्ता से समझौता किया जाता है, तो इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है।
विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि शिशुओं और बच्चों को कोई भी दवा देने से पहले डॉक्टर से परामर्श अवश्य लेना चाहिए, चाहे वह आयुर्वेदिक क्यों न हो।
छिंदवाड़ा की यह घटना सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि सिस्टम की लापरवाही का आईना है। यह बताती है कि जब तक दवा निर्माण, वितरण और निगरानी की प्रक्रिया सख्त नहीं होगी, तब तक ऐसी घटनाएं बार-बार देश को झकझोरती रहेंगी।
सरकार और समाज दोनों के लिए यह समय है कि ‘स्वदेशी’ का मतलब ‘सुरक्षित’ भी हो, यह सुनिश्चित किया जाए — ताकि कोई और रूही मिनोटे जैसी मासूम जिंदगी किसी नकली या घटिया दवा की भेंट न चढ़े।
ये न्यूज पीटीआई (PTI) के इनपुट के साथ प्रकाशित हो गई है।
 
            

 
                 Aryan Ambastha
Aryan Ambastha 
         
                                                             
                                                             
                                                             
                                                             
                                                             
                                                             
                                                             
                                                             
                                                             
                                                             
                     
                     
                    