चंद्रपुर जिले के नवरगांव में रहने वाली मथुरा ताई का नाम देश के कानूनी इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है। 1972 में हुए अत्याचार के उस मामले ने पूरे देश को झकझोर दिया था और इसी मामले के कारण भारत में बलात्कार कानूनों में बड़े बदलाव हुए थे। लेकिन आज वही मथुरा ताई जिनके दर्द ने कानून को बदल दिया, खुद बेहद कठिन परिस्थितियों में अपना जीवन बिता रही हैं। अर्धांगवायू यानी लकवे से पीड़ित मथुरा ताई की हालत जब विधान परिषद की उपसभापति डॉ. नीलम गोऱ्हे को पता चली तो उन्होंने तुरंत संवेदनशीलता दिखाते हुए नवरगांव का दौरा किया और प्रशासन को सख्त निर्देश दिए।
डॉ. गोऱ्हे ने मथुरा ताई से मुलाकात कर उनकी स्थिति का जायजा लिया और तत्काल राहत के लिए जिलाधिकारी से बात की। उन्होंने यह सुनिश्चित करने के आदेश दिए कि मथुरा ताई को चिकित्सा सुविधा, पेंशन, राशन, घरकुल, आर्थिक सहायता और सभी सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ बिना किसी देरी के मिले। प्रशासन ने तुरंत कार्यवाही शुरू की और आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराईं। आज के दौरे में डॉ. गोऱ्हे ने इन व्यवस्थाओं की समीक्षा की और आगे की योजनाओं पर अधिकारियों से विस्तृत चर्चा की।
1972 का वो मामला जिसने बदल दिया कानून
1972 में चंद्रपुर के नवरगांव में हुई घटना ने पूरे देश को हिला दिया था। तब आदिवासी समुदाय से आने वाली युवा मथुरा के साथ पुलिस थाने में ही अत्याचार हुआ था। इस मामले में निचली अदालतों ने आरोपियों को बरी कर दिया था, लेकिन इस फैसले के खिलाफ देशभर में विरोध हुआ। चार प्रमुख कानून के प्रोफेसरों ने सुप्रीम कोर्ट को खुला पत्र लिखा और न्याय की मांग की। इस मामले ने देश में बलात्कार कानूनों में बड़े सुधार की नींव रखी। 1983 में आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम लाया गया जिसमें हिरासत में बलात्कार को गंभीर अपराध माना गया और सबूत का भार आरोपी पर डाला गया।

कानून बदला लेकिन मथुरा ताई की जिंदगी नहीं बदली
जिस महिला के दर्द ने देश के कानून को बदल दिया, आज वही महिला अपनी जिंदगी के आखिरी पड़ाव में बेहद मुश्किल हालात में रह रही हैं। अर्धांगवायू से पीड़ित मथुरा ताई का शरीर आधा लकवाग्रस्त है। बुनियादी सुविधाओं के अभाव में उनका जीवन संघर्षपूर्ण बन गया है। न ठीक से इलाज मिल पा रहा है, न ही आर्थिक सहायता। यह स्थिति किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए पीड़ादायक है।
डॉ. नीलम गोऱ्हे ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, “मथुरा ताई के दर्द से कानून बदला, लेकिन आज वे स्वयं विपन्नावस्था में हैं—यह अत्यंत पीड़ादायक और शर्मनाक है। जिस व्यक्ति ने समाज को इतना कुछ दिया हो, उसे इस हाल में नहीं रहना चाहिए।”
प्रशासन को मिले सख्त निर्देश
डॉ. गोऱ्हे ने जिलाधिकारी और अन्य अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए कि मथुरा ताई और उनके परिवार को हर तरह की सहायता तुरंत मुहैया कराई जाए। उन्होंने कहा कि किसी भी तरह के कागजी कार्रवाई या दस्तावेज की कमी को बहाना बनाकर मदद में देरी न की जाए। उन्होंने निम्नलिखित व्यवस्थाएं सुनिश्चित करने को कहा:
चिकित्सा सुविधा और स्वास्थ्य देखभाल
मथुरा ताई को तुरंत उचित चिकित्सा उपचार मिले। लकवे के इलाज के लिए फिजियोथेरेपी, दवाइयां और नियमित जांच की व्यवस्था हो। जरूरत पड़ने पर उन्हें अच्छे अस्पताल में भर्ती करने की सुविधा रहे। घर पर ही स्वास्थ्य कर्मियों की नियमित विजिट हो।
पेंशन और आर्थिक सहायता
मथुरा ताई को सभी प्रकार की सरकारी पेंशन योजनाओं का लाभ तुरंत मिले। विधवा पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन, विशेष सहायता राशि आदि का भुगतान नियमित और समय पर हो। किसी भी आपात स्थिति के लिए आर्थिक मदद की व्यवस्था रहे।
राशन और खाद्य सुरक्षा
राशन कार्ड के माध्यम से नियमित और पर्याप्त खाद्य सामग्री मुहैया हो। सभी सरकारी खाद्य योजनाओं का लाभ मिले। पोषण की कमी न हो इसका विशेष ध्यान रखा जाए।
घरकुल और आवास सुविधा
मथुरा ताई को रहने के लिए पक्का मकान मिले। यदि मौजूदा घर में मरम्मत की जरूरत हो तो तुरंत करवाई जाए। शौचालय, पानी और बिजली की सुविधा सुनिश्चित हो। घर की स्थिति रहने लायक बनाई जाए।
परिवार को रोजगार
डॉ. गोऱ्हे ने विशेष रूप से निर्देश दिया कि मथुरा ताई के परिवार के सदस्यों को स्थाई रोजगार मुहैया कराया जाए ताकि परिवार आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सके। सरकारी नौकरी या स्वरोजगार योजनाओं के तहत मदद दी जाए।
सुरक्षा और सम्मान की गारंटी
डॉ. गोऱ्हे ने स्पष्ट चेतावनी दी कि मथुरा ताई के नाम पर किसी भी प्रकार का दुरुपयोग या अनुचित लाभ लेने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य और सम्मान के लिए प्रशासन को सतत निगरानी रखनी होगी। कोई भी व्यक्ति यदि उनका शोषण या गलत फायदा उठाने की कोशिश करे तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।
समाज और सरकार की जिम्मेदारी
मथुरा ताई का मामला सिर्फ एक व्यक्तिगत मसला नहीं है, यह पूरे समाज और सरकार की जिम्मेदारी का सवाल है। जिन लोगों ने समाज के लिए कुछ बड़ा किया हो, भले ही वह उनकी मर्जी से न हुआ हो, उनके प्रति हमारा कर्तव्य बनता है कि हम उनकी देखभाल करें। मथुरा ताई के संघर्ष ने देश की लाखों महिलाओं के लिए न्याय के रास्ते खोले। आज जरूरत है कि समाज और सरकार दोनों मिलकर उनके जीवन के अंतिम वर्षों को सम्मानजनक और सुखद बनाएं।
डॉ. नीलम गोऱ्हे की यह पहल सराहनीय है कि उन्होंने संवेदनशीलता दिखाते हुए खुद जाकर मथुरा ताई से मुलाकात की और प्रशासन को सख्त निर्देश दिए। यह दिखाता है कि जनप्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारियों के प्रति कितने गंभीर हैं।
आगे की राह
प्रशासन ने अभी तक जो व्यवस्थाएं की हैं, वे शुरुआत मात्र हैं। असली चुनौती इन सुविधाओं को लंबे समय तक जारी रखने की है। डॉ. गोऱ्हे ने अधिकारियों से कहा है कि वे नियमित निगरानी रखें और हर महीने रिपोर्ट दें कि मथुरा ताई को क्या-क्या सुविधाएं मिल रही हैं। साथ ही, यदि कोई नई जरूरत सामने आए तो उसे भी तुरंत पूरा किया जाए।
यह मामला हमें याद दिलाता है कि सामाजिक न्याय केवल कानून बनाने से नहीं मिलता, बल्कि उन लोगों की देखभाल करने से मिलता है जिन्होंने इन कानूनों को बनवाने में अपना जीवन दांव पर लगा दिया। मथुरा ताई का जीवन इस बात का सबूत है कि कानूनी बदलाव तो हुए लेकिन सामाजिक और आर्थिक बदलाव अभी भी दूर है।
आशा की जानी चाहिए कि डॉ. नीलम गोऱ्हे के प्रयासों से मथुरा ताई को अब जीवन की बुनियादी सुविधाएं मिलेंगी और वे अपने शेष जीवन को सम्मान और सुकून के साथ बिता सकेंगी। यह हर उस व्यक्ति के लिए संदेश है जो समाज सेवा करता है कि उनका योगदान कभी व्यर्थ नहीं जाता।