महाराष्ट्र में किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य दिलाने के लिए राज्य सरकार लगातार प्रयासरत है। विधान परिषद में हाल ही में किसानों की समस्याओं को लेकर एक महत्वपूर्ण चर्चा हुई, जिसमें तूर और उड़ीद दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर सवाल उठाए गए। इस मुद्दे पर राज्य के पणन मंत्री जयकुमार रावल ने विस्तृत जानकारी देते हुए सरकार की योजनाओं और प्रयासों को सदन के सामने रखा।
विधायकों ने उठाई किसानों की आवाज
विधान परिषद के प्रश्नोत्तर सत्र में विधायक सदाशिव खोत, विक्रम काले, सतीश चव्हाण और शिवाजीराव गर्जे ने एक साथ मिलकर किसानों की ओर से एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि तूर यानी अरहर और उड़ीद दाल उगाने वाले किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल पा रहा है। यह सवाल बेहद जरूरी था क्योंकि दालों की खेती करने वाले किसान अक्सर कम कीमतों के कारण नुकसान उठाते हैं।
इन विधायकों ने सरकार से स्पष्ट जवाब मांगा कि किसानों को उनकी मेहनत का सही दाम कब और कैसे मिलेगा। उन्होंने यह भी पूछा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना को जमीनी स्तर पर प्रभावी बनाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।
केंद्र सरकार ने दी कपास पर राहत
पणन मंत्री जयकुमार रावल ने जवाब देते हुए बताया कि केंद्र सरकार ने कपास उगाने वाले किसानों के हित में एक बड़ा फैसला लिया है। 31 दिसंबर 2025 तक कपास पर लगने वाला 11 प्रतिशत आयात शुल्क पूरी तरह से माफ कर दिया गया है। इस फैसले से घरेलू बाजार में कपास की कीमतों पर सकारात्मक असर पड़ने की उम्मीद है।
मंत्री ने आगे कहा कि यह कदम किसानों को बाजार में बेहतर कीमत दिलाने के उद्देश्य से लिया गया है। आयात शुल्क में छूट से विदेशी कपास की आमद कम होगी और देश में उगाई गई कपास को बेहतर बाजार मिल सकेगा।
न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना का विस्तार
2025-26 के खरीफ मौसम में राज्य सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के तहत कई फसलों की खरीद शुरू कर दी है। इनमें सोयाबीन, उड़ीद, मूंग और कपास प्रमुख हैं। मंत्री जयकुमार रावल ने स्पष्ट किया कि सरकार इन फसलों को समर्थन मूल्य पर खरीदने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
उन्होंने बताया कि योजना को किसानों तक प्रभावी रूप से पहुँचाने के लिए सरकार ने कई माध्यमों का इस्तेमाल किया है। इसमें पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरीके शामिल हैं। गांव-गांव में ढोल बजाकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है, तो दूसरी ओर सोशल मीडिया के जरिए भी किसानों तक जानकारी पहुँचाई जा रही है।
किसानों तक पहुँचाई जा रही जानकारी
सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए कि हर किसान इस योजना का लाभ उठा सके, व्यापक प्रचार अभियान चलाया है। इसमें विभिन्न तरीके अपनाए गए हैं:
विज्ञापन के माध्यम से
अखबारों, रेडियो और टेलीविजन पर नियमित रूप से विज्ञापन दिए जा रहे हैं ताकि किसानों को योजना की जानकारी मिल सके।
पारंपरिक तरीके
गांवों में ढोल बजाकर और सूचना पत्रक बांटकर किसानों को पंजीकरण के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। यह तरीका खासतौर पर दूरदराज के इलाकों में बेहद कारगर साबित हो रहा है।
आधुनिक माध्यम
फ्लेक्स बोर्ड, बैनर और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर के जरिए भी जानकारी साझा की जा रही है। युवा किसान इन माध्यमों से जल्दी जुड़ पा रहे हैं।
कपास खरीद में शानदार प्रगति
मंत्री जयकुमार रावल ने गर्व से बताया कि इस वर्ष अब तक 29 लाख क्विंटल कपास की खरीद की जा चुकी है। इसके बदले किसानों को लगभग 2300 करोड़ रुपये का सीधा भुगतान किया गया है। यह आंकड़ा सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
इस पूरी प्रक्रिया में 6 लाख 83 हजार किसानों ने अपना पंजीकरण कराया है। यह संख्या लगातार बढ़ रही है क्योंकि अधिक से अधिक किसान इस योजना के बारे में जान रहे हैं और इसका लाभ उठा रहे हैं।
खरीद केंद्रों में हुई बढ़ोतरी
पिछले वर्ष की तुलना में इस साल खरीद केंद्रों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि की गई है। पिछले साल जहां 124 कपास खरीद केंद्र खोले गए थे, वहीं इस वर्ष यह संख्या बढ़ाकर 168 कर दी गई है। इनमें से वर्तमान में 156 केंद्र पूरी तरह से सक्रिय हैं और किसानों से कपास की खरीद कर रहे हैं।
यह बढ़ोतरी किसानों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए की गई है ताकि उन्हें अपनी फसल बेचने के लिए दूर न जाना पड़े। अधिक खरीद केंद्र होने से किसानों का समय और पैसा दोनों बचता है।
किसानों के लिए राहत की बात
यह पूरी व्यवस्था किसानों के लिए एक बड़ी राहत है। सीधे बैंक खाते में पैसा आने से उन्हें बिचौलियों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। पारदर्शिता बनी रहती है और किसानों को उनका पूरा हक मिलता है।
सरकार का यह प्रयास किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी से किसानों को यह विश्वास मिलता है कि उनकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी।
आगे की राह
हालांकि तूर और उड़ीद दाल के किसानों की समस्या का सीधा समाधान इस जवाब में नहीं आया, लेकिन सरकार की ओर से अन्य दालों और कपास की खरीद में जो प्रगति दिखाई गई है, वह उम्मीद जगाती है। आने वाले समय में इन फसलों के लिए भी ठोस व्यवस्था की उम्मीद की जा सकती है।
राज्य सरकार को चाहिए कि वह केंद्र सरकार से समन्वय करके सभी दलहन फसलों के लिए समर्थन मूल्य व्यवस्था को मजबूत बनाए। किसानों की आवाज सुनना और उनकी समस्याओं का समाधान करना हर सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।