महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में नदियों के प्रदूषण का मामला अब गंभीर रूप ले चुका है। नाग नदी का दूषित पानी अब वैनगंगा नदी में मिलकर एक बड़े पर्यावरण और स्वास्थ्य संकट को जन्म दे रहा है। खास बात यह है कि वैनगंगा नदी का पानी भंडारा और गोंदिया जिलों में लाखों लोगों को पीने के लिए दिया जा रहा है। इसके अलावा चंद्रपुर और गढ़चिरोली जिलों में खेती के लिए भी इसी नदी का पानी इस्तेमाल होता है। लेकिन दुखद बात यह है कि इस पानी की कभी भी वैज्ञानिक तरीके से जांच नहीं की गई।
विधान परिषद में इस मुद्दे को लेकर विधायक डॉ परिणय फुके ने सरकार को घेरते हुए कहा कि पर्यावरण विभाग जनता को गलत जानकारी दे रहा है। उन्होंने बताया कि नाग नदी का पानी अब पीने लायक तो दूर, नहाने के लिए भी उपयुक्त नहीं रह गया है। यह नदी अब एक खुले नाले में तब्दील हो चुकी है।
पानी की गुणवत्ता के खतरनाक आंकड़े
डॉ फुके ने विधान परिषद में कुछ चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए। उन्होंने बताया कि सामान्य पानी का बीओडी यानी बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड 3 एमजी प्रति लीटर होता है। लेकिन नाग नदी के पानी का बीओडी 28.8 एमजी प्रति लीटर है, जो सामान्य से लगभग दस गुना ज्यादा है। इसके अलावा पानी में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा लगभग शून्य के बराबर है। यह स्थिति किसी भी जलीय जीवन के लिए बेहद खतरनाक है।
इन आंकड़ों से साफ है कि नदी का पानी पूरी तरह से प्रदूषित हो चुका है और इसमें कोई भी जीव-जंतु जीवित नहीं रह सकता। फिर भी सरकार का कहना है कि मछुआरों और पशुओं पर इसका कोई असर नहीं हो रहा है, जो पूरी तरह से गलत और भ्रामक जानकारी है।
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का सच
नगर निगम और सरकार की ओर से दावा किया जाता है कि नागपुर में 13 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट काम कर रहे हैं। लेकिन असलियत यह है कि इनमें से केवल दो ही प्लांट ठीक से काम कर रहे हैं। बाकी सभी या तो बंद पड़े हैं या फिर उनकी क्षमता से बहुत कम काम कर रहे हैं।
नतीजा यह है कि रोजाना 123.5 एमएलडी यानी मिलियन लीटर प्रतिदिन बिना किसी साफ-सफाई के गंदा पानी सीधे नाग नदी में छोड़ा जा रहा है। यह गंदा पानी घरों, होटलों, अस्पतालों और उद्योगों से निकलने वाला है, जिसमें तरह-तरह के रसायन और जहरीले तत्व होते हैं।
डॉ फुके ने कहा कि सरकार को शिकायत न मिलने का बहाना बनाने की जगह खुद से वैज्ञानिक सर्वे करवाना चाहिए था। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह जनता के स्वास्थ्य की रक्षा करे, न कि उनके शिकायत करने का इंतजार करे।
स्वास्थ्य पर पड़ता असर
गोसीखुर्द और आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में त्वचा से जुड़ी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। खुजली, एलर्जी और चर्म रोग आम हो गए हैं। इसके अलावा किडनी की समस्याएं भी बढ़ रही हैं, जो प्रदूषित पानी पीने का सीधा परिणाम है।
पशुओं में भी कई तरह की बीमारियां देखी जा रही हैं। दूध देने वाले पशुओं की संख्या घट रही है और उनमें कई तरह की असामान्य बीमारियां सामने आ रही हैं। लेकिन स्वास्थ्य विभाग ने अब तक इस मामले में कोई सर्वे नहीं करवाया है।
यह बेहद गंभीर स्थिति है क्योंकि दूषित पानी से होने वाली बीमारियां लंबे समय तक चलती हैं और कई बार जानलेवा भी साबित होती हैं। खासकर बच्चे, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं इसकी चपेट में जल्दी आती हैं।
भविष्य की चिंताएं
अभी जो स्थिति है वह तो गंभीर है ही, लेकिन भविष्य में इसके और भी खतरनाक परिणाम हो सकते हैं। सरकार की योजना वैनगंगा-नळगंगा नदी जोड़ परियोजना शुरू करने की है। अगर यह परियोजना लागू हुई तो नरखेड और काटोल जैसे और भी क्षेत्रों में यह प्रदूषित पानी पहुंच जाएगा।
इसका मतलब है कि और भी लाखों लोग इस संकट की चपेट में आ जाएंगे। खेती पर भी बुरा असर पड़ेगा क्योंकि दूषित पानी से सिंचाई करने पर फसलों में भी जहरीले तत्व पहुंच जाते हैं, जो अंततः इंसानों के शरीर में पहुंचते हैं।
सरकार से मांग
डॉ परिणय फुके ने सरकार से मांग की है कि इस मामले को गंभीरता से लिया जाए। उन्होंने कहा कि सरकार को तुरंत कुछ कदम उठाने चाहिए:
सबसे पहले वैनगंगा नदी के पानी की वैज्ञानिक जांच करवाई जाए और रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।
भंडारा और गोंदिया में जो पानी सप्लाई किया जा रहा है, उसकी गुणवत्ता की जांच हो और अगर वह खराब है तो तुरंत वैकल्पिक व्यवस्था की जाए।
सभी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को तुरंत चालू किया जाए और जो काम नहीं कर रहे उनकी मरम्मत या नए प्लांट लगाए जाएं।
गोसीखुर्द और आसपास के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सर्वे करवाया जाए ताकि प्रभावित लोगों की पहचान हो और उन्हें उपचार मिल सके।
नाग नदी को पुनर्जीवित करने के लिए एक ठोस योजना बनाई जाए और उस पर तुरंत काम शुरू हो।
जनता की जागरूकता जरूरी
सरकार की जिम्मेदारी के साथ-साथ जनता को भी जागरूक होने की जरूरत है। नदियों में कूड़ा-करकट फेंकना बंद करना होगा। उद्योगों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और गंदा पानी सीधे नदी में न छोड़कर पहले उसे साफ करना होगा।
नदियां हमारी जीवनरेखा हैं। अगर वे प्रदूषित होंगी तो हमारा जीवन भी खतरे में पड़ जाएगा। समय रहते अगर कदम नहीं उठाए गए तो यह समस्या और भी बड़ी हो जाएगी और फिर इसका समाधान बहुत मुश्किल हो जाएगा।