नागपुर।
“आईना वही बोलता है, जैसा हमारा व्यवहार होता है।” – यह गहन विचार नागपुर में आयोजित विदर्भ हिंदी साहित्य सम्मेलन की परिचर्चा में विशेष अतिथि श्रीमती जगजीत कौर पदम (संस्थापक, वन विश्व संस्था एवं पर्यावरण विशेषज्ञ) ने व्यक्त किए।
सम्मेलन के चौपाल उपक्रम के अंतर्गत “आईना बोलता है” विषय पर चर्चा का आयोजन हिंदी मोर भवन, सीताबर्डी, नागपुर में किया गया। कार्यक्रम का संयोजन श्री विजय तिवारी तथा सहसंयोजन श्री हेमंत कुमार पांडे ने किया।
वेब स्टोरी:
पर्यावरण व मानवीय मूल्यों पर जोर
श्रीमती जगजीत कौर पदम ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि आईना हमारे व्यक्तित्व और अंतरात्मा का प्रतिबिंब है। उन्होंने बताया कि व्यक्ति अपने व्यवहार और कर्मों से ही समाज के सामने अपनी पहचान बनाता है।
“आईना कभी झूठ नहीं बोलता। चाहे इंसान कितनी भी कोशिश क्यों न कर ले, उसकी आत्मा और उसका व्यवहार आईने की तरह सच्चाई सामने लाता है। बुरे कर्मों को आत्मा कभी माफ नहीं करती,” – उन्होंने कहा।
श्रीमती पदम ने इस अवसर पर अपनी संस्था वन विश्व के पर्यावरणीय कार्यों का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि अब तक नागपुर शहर को हराभरा बनाने के लिए 4,000 पौधों का रोपण एवं संवर्धन किया गया है। आने वाले समय में संस्था की योजना 14,000 और वृक्षारोपण करने की है।
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साहित्यिक एवं सामाजिक संवाद
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ समाजसेवक श्री हरमिंदर सिंह गांधी थे। उन्होंने कहा कि साहित्य और समाज का संबंध हमेशा से एक-दूसरे को दिशा देता आया है। आज की चर्चा केवल साहित्यिक नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं को जगाने वाली थी।
परिचर्चा में साहित्यकारों और समाजसेवियों ने सक्रिय भागीदारी की। इनमें प्रमुख रूप से एडवोकेट जगत बाजपेई, मदन गोपाल बाजपेई, परमजीत सिंह भाटिया और अनुश्री मेनन शामिल रहे। सभी ने “आईना बोलता है” विषय पर अपने-अपने दृष्टिकोण रखे, जिससे कार्यक्रम ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायी बन गया।
आभार एवं सहयोग
कार्यक्रम के समापन पर सहसंयोजक श्री हेमंत कुमार पांडे ने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस तरह की चर्चाएँ समाज में सकारात्मक सोच और साहित्यिक चेतना को बढ़ावा देती हैं।
कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ. बच्चू पांडे, सुभाष चंद्र उपाध्याय, अमरीश दुबे, मुकेश मिश्रा, मुकुंद द्विवेदी, नरेंद्र ढोले, विलास मोहरकर, अरुण हनुमते, अरविंद बागडे, सचिन शुक्ला, सौरभ शुक्ला, शत्रुघ्न तिवारी सहित कई गणमान्य नागरिकों का अमूल्य योगदान रहा।
सार
यह परिचर्चा केवल साहित्यिक विमर्श तक सीमित नहीं रही, बल्कि समाज और पर्यावरण की दिशा में भी सार्थक संदेश छोड़ गई। “आईना बोलता है” विषय ने यह स्पष्ट किया कि इंसान का सच्चा चेहरा उसके कर्म और व्यवहार ही दिखाते हैं, और पर्यावरण की रक्षा करना उसी जिम्मेदारी का हिस्सा है।