Divyang Vivah Protsahan Yojana: महाराष्ट्र सरकार का यह फैसला सिर्फ एक योजना में संशोधन भर नहीं है, बल्कि यह दिव्यांग समुदाय के प्रति समाज की सोच बदलने की दिशा में एक ठोस पहल है। जब मैंने पहली बार इस खबर को पढ़ा, तो मन में एक सवाल उठा – क्या हम सच में एक समावेशी समाज की ओर बढ़ रहे हैं, या यह सिर्फ कागजी घोषणाएं हैं? लेकिन जब विधानमंडल में दिव्यांग कल्याण मंत्री अतुल सावे ने इस योजना के विस्तार और अनुदान वृद्धि की जानकारी दी, तो यह स्पष्ट हो गया कि सरकार गंभीर है।
दिव्यांग व्यक्तियों के जीवन में विवाह सिर्फ एक सामाजिक संस्कार नहीं, बल्कि भावनात्मक सुरक्षा और सामाजिक स्वीकृति का प्रतीक है। अक्सर हमारे समाज में दिव्यांग व्यक्तियों को विवाह के योग्य नहीं माना जाता, उन्हें पूर्ण जीवन जीने का अधिकार ही नहीं दिया जाता। ऐसे में यह योजना न केवल आर्थिक सहायता देती है, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी देती है कि दिव्यांग व्यक्ति भी सम्पूर्ण और सम्मानजनक जीवन के हकदार हैं।
योजना में क्या है खास बदलाव
पहले इस योजना के तहत दिव्यांग-सामान्य विवाह के लिए सीमित राशि दी जाती थी, लेकिन अब संशोधित योजना में दो महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। पहला, दिव्यांग-सामान्य विवाह के लिए अनुदान बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये कर दिया गया है। दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन यह है कि अब दिव्यांग-दिव्यांग विवाह को एक नए घटक के रूप में शामिल किया गया है, जिसके लिए 2.5 लाख रुपये का अनुदान प्रावधानित किया गया है।
यह वृद्धि महंगाई और जीवनयापन की बढ़ती लागत को देखते हुए अत्यंत आवश्यक थी। विवाह एक महंगा सामाजिक आयोजन है और दिव्यांग परिवारों के लिए यह आर्थिक बोझ और भी अधिक हो जाता है। अब यह राशि उन्हें एक सुरक्षित भविष्य की नींव रखने में मदद करेगी।
राशि का वितरण और उपयोग
योजना की एक खास बात यह है कि यह राशि सीधे लाभार्थियों के संयुक्त बैंक खाते में डीबीटी (प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण) प्रणाली के माध्यम से जमा की जाएगी। इससे बिचौलियों की भूमिका समाप्त होगी और पारदर्शिता सुनिश्चित होगी। लेकिन एक शर्त यह है कि कुल राशि का 50 प्रतिशत हिस्सा पांच वर्षों के लिए सावधि जमा (फिक्स्ड डिपॉजिट) में रखना अनिवार्य होगा।
यह प्रावधान दरअसल दूरदर्शी है। इससे दंपति के पास भविष्य के लिए एक सुरक्षित बचत होगी, और पांच साल बाद मिलने वाले ब्याज के साथ यह राशि उनकी आर्थिक स्थिरता को और मजबूत करेगी।
पात्रता की शर्तें समझना जरूरी
योजना का लाभ उठाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण शर्तें हैं। सबसे पहले, आवेदक के पास कम से कम 40 प्रतिशत दिव्यांगता का वैध UDID (यूनिक डिसेबिलिटी आईडी) प्रमाणपत्र होना चाहिए। यह एक मानकीकृत दस्तावेज है जो दिव्यांगता को प्रमाणित करता है।
दूसरी महत्वपूर्ण शर्त यह है कि विवाह कानूनी रूप से पंजीकृत होना चाहिए। यह प्रावधान विवाह को कानूनी मान्यता देता है और भविष्य में किसी भी प्रकार के विवाद से बचाता है। तीसरी शर्त यह है कि यह दोनों पक्षों का पहला विवाह होना चाहिए, और चौथी महत्वपूर्ण शर्त है कि विवाह के एक वर्ष के भीतर आवेदन करना अनिवार्य है।
सामाजिक समानता की दिशा में कदम
जब हम समावेशिता की बात करते हैं, तो अक्सर यह शब्द सिर्फ भाषणों तक सीमित रह जाता है। लेकिन यह योजना दिखाती है कि नीतियों के माध्यम से भी सामाजिक बदलाव संभव है। दिव्यांग-दिव्यांग विवाह को विशेष प्रोत्साहन देना यह संदेश देता है कि दिव्यांग व्यक्ति भी एक-दूसरे के साथ पूर्ण और खुशहाल जीवन जी सकते हैं।
मंत्री अतुल सावे ने सही कहा है कि यह निर्णय भेदभाव-मुक्त समाज के निर्माण की दिशा में एक अहम कदम है। हमारे समाज में दिव्यांग व्यक्तियों को लेकर जो पूर्वाग्रह और भ्रांतियां हैं, उन्हें तोड़ने के लिए ऐसी योजनाएं बेहद जरूरी हैं।
बजट और क्रियान्वयन
राज्य सरकार ने इस योजना के लिए वार्षिक 24 करोड़ रुपये के व्यय को स्वीकृति दी है। यह बजट आवंटन दिखाता है कि सरकार इस योजना को गंभीरता से लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि, असली चुनौती इसके प्रभावी क्रियान्वयन में होगी। योजना की जानकारी दिव्यांग समुदाय तक कैसे पहुंचेगी, आवेदन प्रक्रिया कितनी सरल होगी, और राशि कितनी जल्दी वितरित होगी – यह सब देखना बाकी है।
व्यक्तिगत दृष्टिकोण
मेरे विचार में, यह योजना सिर्फ आर्थिक सहायता से कहीं बढ़कर है। यह उन हजारों दिव्यांग युवाओं के लिए उम्मीद की किरण है, जो समाज के पूर्वाग्रहों के कारण विवाह का सपना देखने से भी डरते हैं। जब सरकार खुद आगे बढ़कर ऐसे विवाहों को प्रोत्साहित करती है, तो यह समाज को एक सकारात्मक संदेश देती है।
लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि हम सिर्फ सरकारी योजनाओं पर निर्भर न रहें। सामाजिक स्तर पर भी हमें दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति अपनी सोच बदलनी होगी, उन्हें समान अवसर देने होंगे और उनकी क्षमताओं को पहचानना होगा।
यह योजना निश्चित रूप से एक सराहनीय कदम है, और अगर इसे ईमानदारी से लागू किया गया, तो यह महाराष्ट्र में दिव्यांग समुदाय के जीवन में वास्तविक बदलाव ला सकती है।