नागपुर हाईकोर्ट का स्वतः संज्ञान और आदेश
महाराष्ट्र के नागपुर में चल रहे किसान आंदोलन को लेकर बुधवार को नागपुर हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए आदेश दिया कि आंदोलनकारी शाम 6 बजे तक सड़क खाली करें। अदालत ने कहा कि आम जनता की सुविधा किसी भी आंदोलन से ऊपर है।
न्यायमूर्ति रजनीश व्यास की खंडपीठ ने कहा कि सड़कें जनता की संपत्ति हैं और किसी को उन्हें लंबे समय तक रोकने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने पुलिस प्रशासन से कहा कि वे सुनिश्चित करें कि शाम तक यातायात सामान्य हो जाए और किसी नागरिक को असुविधा न हो।
प्रदर्शन का कारण और किसानों की मांगें
किसान पिछले दस दिनों से नागपुर शहर के प्रमुख मार्गों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। उनकी मुख्य मांगें हैं कि राज्य सरकार खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को तुरंत घोषित करे, बकाया मुआवजा भुगतान करे और कृषि इनपुट पर सब्सिडी बहाल की जाए।
किसानों का आरोप है कि राज्य सरकार ने बार-बार आश्वासन देने के बावजूद MSP पर स्पष्ट नीति नहीं अपनाई है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ रहा है।
सरकार की प्रतिक्रिया
राज्य सरकार ने कहा कि किसानों की मांगों पर सकारात्मक विचार किया जा रहा है। कृषि मंत्री ने बयान दिया कि सरकार किसानों के साथ संवाद बनाए हुए है और उनकी समस्याओं का समाधान जल्द किया जाएगा।
सरकार ने यह भी कहा कि सड़क जाम से आम जनता को भारी परेशानी हो रही है, इसलिए कोर्ट के आदेश का पालन जरूरी है।
पुलिस प्रशासन की तैयारी
नागपुर पुलिस ने कहा है कि सभी प्रदर्शनकारियों को शांति बनाए रखने की अपील की गई है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि ट्रैफिक पुलिस को वैकल्पिक मार्गों की व्यवस्था के निर्देश दिए गए हैं।
उन्होंने कहा कि कोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार है। यदि आंदोलनकारी तय समय के बाद भी सड़क नहीं छोड़ते हैं तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
किसान नेताओं की प्रतिक्रिया
किसान नेताओं ने कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हुए कहा कि वे शांतिपूर्ण प्रदर्शन के पक्षधर हैं। उन्होंने कहा कि उनकी लड़ाई नीति-निर्धारण के लिए है, न कि जनता को परेशान करने के लिए।
हालांकि कुछ किसान संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे बड़ा प्रदर्शन करेंगे।
जनता की प्रतिक्रिया
स्थानीय लोगों ने कोर्ट के आदेश का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि आंदोलन का अधिकार सबको है, लेकिन सड़कें रोकना सही तरीका नहीं है। कई नागरिकों ने कहा कि रोजाना ट्रैफिक जाम और विलंब से स्कूली बच्चों और ऑफिस कर्मचारियों को मुश्किल हो रही थी।
कानूनी दृष्टिकोण
कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि अदालत का आदेश संवैधानिक दायरे में है। अनुच्छेद 19 नागरिकों को अभिव्यक्ति और आंदोलन की स्वतंत्रता देता है, लेकिन यह स्वतंत्रता सार्वजनिक व्यवस्था के दायरे में सीमित है।
हाईकोर्ट का स्वतः संज्ञान यह दर्शाता है कि न्यायपालिका जनता की सुविधा और कानून व्यवस्था को सर्वोपरि मानती है।
आगे की संभावनाएँ
अगले कुछ दिनों में राज्य सरकार और किसान संगठनों के बीच वार्ता होने की संभावना है। प्रशासन यह सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा कि संवाद से समाधान निकले।
किसान नेता चाहते हैं कि केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर MSP को कानूनी रूप दिया जाए ताकि भविष्य में ऐसे आंदोलन की नौबत न आए।