बंबई उच्च न्यायालय ने नागपुर व्यवसायी के सोना न मिलने के आरोप खारिज किए
नागपुर व्यवसायी के खिलाफ आदेश का सारांश
नागपुर के प्रमुख व्यवसायी आशुतोष नटवर मुंदड़ा द्वारा कोलकत्ता स्थित कंपनियों बांका बुलियंस और जी. के. ट्रेक्सिम के खिलाफ 4.31 करोड़ रुपये के सोने न देने के आरोप को बंबई उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी फाल्के और न्यायमूर्ति नंदेश देशपांडे की नागपुर पीठ ने इस मामले में कंपनियों के पाँच निदेशकों के खिलाफ दायर शिकायत को रद्द करने का आदेश पारित किया।
मुंदड़ा का आरोप था कि उन्होंने 12 नवंबर 2016 से 5 दिसंबर 2016 के बीच सोना खरीदा था, लेकिन कंपनी ने भुगतान लेने के बाद सोना प्रदान नहीं किया। करीब चार साल बाद, उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
पुलिस ने मामला दर्ज करने से इनकार किया
मुंदड़ा की शिकायत के बाद बजाजनगर पुलिस ने प्रारंभिक जांच की। प्रारंभिक जांच में यह पाया गया कि लगभग सभी लेन-देन का लेखा-जोखा उपलब्ध था और पुलिस ने मामले को आपराधिक स्तर पर आगे न बढ़ाने का निर्णय लिया। इसके बाद मुंदड़ा ने प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दिया, जिसके आदेश के बाद 9 फरवरी 2023 को पांच निदेशकों के खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया।
उच्च न्यायालय ने मामले को दीवानी बताया
कंपनियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सुनील मनोहर और अधिवक्ता मसूद शरीफ ने दलील दी कि सभी लेन-देन 2016 में पूरी तरह से संपन्न हो चुके थे और शिकायतकर्ता ने चार साल बाद यह आरोप लगाकर कंपनियों को बदनाम करने का प्रयास किया।
अधिवक्ता निखिल जोशी और अमित प्रसाद ने सरकार की ओर से बहस की। सभी पक्षों की सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मामला दीवानी प्रकृति का है और इसे आपराधिक स्वरूप देना अनुचित है।
झूठे आरोपों का खुलासा
कंपनियों के अनुसार, सोने की आपूर्ति पूरी हो चुकी थी और शिकायतकर्ता ने जानबूझकर झूठे आरोप लगाकर कंपनी को बदनाम करने की कोशिश की। अदालत ने यह भी देखा कि शिकायत दर्ज कराने में इतनी लंबी देरी का कोई ठोस कारण नहीं था।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा:
“सभी खरीद-बिक्री के लेन-देन 2016 में संपन्न हो चुके हैं। शिकायतकर्ता चार साल बाद यह साजिश रचकर मामले को आपराधिक रंग देने का प्रयास कर रहे हैं।”
न्यायिक दृष्टिकोण और भविष्य के संकेत
इस आदेश से स्पष्ट होता है कि भारतीय न्याय प्रणाली में दीवानी मामलों और आपराधिक आरोपों में भेदभाव को ध्यान में रखा जाता है। व्यवसायिक विवादों में कंपनियों और व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करते हुए, अदालत ने यह संदेश दिया कि झूठे आरोप लगाने वालों के खिलाफ सख्त निर्णय लिया जा सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह मामला व्यवसायिक लेन-देन में पारदर्शिता और समय पर शिकायत दर्ज करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है। यदि कोई व्यवसायी आरोप लगाना चाहता है, तो उसे तत्काल और ठोस प्रमाण के साथ कार्रवाई करनी चाहिए, अन्यथा अदालत इसे आपराधिक रूप में नहीं लेगी।
समापन
बंबई उच्च न्यायालय का यह आदेश व्यवसायिक समुदाय के लिए एक संकेत है कि लेन-देन में पारदर्शिता और सटीक रिकॉर्ड रखना अत्यंत आवश्यक है। साथ ही, यह भी स्पष्ट किया गया कि अनावश्यक और झूठे आरोपों से कानूनी कार्रवाई में देरी और नुकसान हो सकता है।
नागपुर और कोलकत्ता के व्यवसायिक संबंधों पर यह मामला महत्वपूर्ण असर डाल सकता है, और भविष्य में ऐसे विवादों में समय पर उचित कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।