Mehdibagh Chimthanawala Dispute: 125 वर्ष पुराना धार्मिक विवाद हुआ समाप्त
नागपुर: महाराष्ट्र राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने देश के इतिहास में एक नई मिसाल कायम करते हुए 125 वर्ष पुराने धार्मिक विवाद को शांतिपूर्ण समाधान के साथ समाप्त किया है। यह विवाद मेहदीबाग़ संस्थान और चिमठानावाला परिवार के बीच चला आ रहा था, जिसे अब आयोग की मध्यस्थता में सुलझा लिया गया है।
मा. अध्यक्ष (मंत्री दर्जा) श्री प्यारे ख़ान ने मात्र दो सुनवाइयों में दोनों पक्षों को आपसी सहमति पर लाकर यह ऐतिहासिक समाधान कराया। यह निर्णय 11 नवंबर 2025 को आधिकारिक रूप से जारी किया गया, जो समाजिक सौहार्द और संवाद की शक्ति का प्रतीक बन गया।
विवाद की पृष्ठभूमि और 19वीं सदी से चला आ रहा संघर्ष
इस विवाद की जड़ें 19वीं सदी में उस समय की हैं, जब 1840 में दाऊदी बोहरा जमात के 46वें दाई सैयदना बदरुद्दीन साहब के निधन के बाद उत्तराधिकार का विवाद उत्पन्न हुआ। वर्ष 1891 में इसी मतभेद के कारण नागपुर में दो संस्थाओं — अतबा-ए-मलक जमात और मेहदीबाग़ संस्थान — की स्थापना हुई।
मौलाना मलक साहब के निधन (1899) के बाद जमात दो हिस्सों में बंट गई — मेहदीबाग़ और चिमठानावाला।
दोनों पक्ष धार्मिक नेतृत्व, संपत्ति और अधिकारों को लेकर एक-दूसरे से असहमत रहे। यह मतभेद धीरे-धीरे कानूनी, धार्मिक और सामाजिक संघर्ष में बदल गया।
अदालतों में दशकों तक चली कानूनी लड़ाई
यह विवाद निचली अदालतों से लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट में दोनों पक्षों ने देश के नामी अधिवक्ताओं को खड़ा किया।
चिमठानावाला परिवार की ओर से सोली सोराबजी, सी. सुंदरम और रोहिंगटन नरिमन जैसे वरिष्ठ अधिवक्ता पेश हुए, जबकि मेहदीबाग़ पक्ष से फली नरिमन, कपिल सिब्बल, के.के. वेणुगोपाल और गोपाल सुब्रमण्यम जैसे दिग्गज वकीलों ने पैरवी की।
दशकों की सुनवाई के बाद भी विवाद का समाधान नहीं हो सका और अंततः मामला महाराष्ट्र राज्य अल्पसंख्यक आयोग के पास पहुंचा।
आयोग में ऐतिहासिक मध्यस्थता और दो सुनवाइयों में समझौता
Mehdibagh Chimthanawala Dispute: 7 जनवरी 2025 को मुंबई स्थित आयोग के कार्यालय में पहली सुनवाई हुई। मेहदीबाग़ संस्था के चार सदस्य और चिमठानावाला पक्ष के अधिवक्ता आर.एस. सिंह तथा अब्दुल्ला ख़ान उपस्थित रहे।
मा. अध्यक्ष श्री प्यारे ख़ान ने दोनों पक्षों को समझाने का प्रयास किया और संवाद की राह पर लाने का कार्य किया।
21 जनवरी 2025 को दूसरी सुनवाई में दोनों पक्ष आपसी सहमति पर पहुंच गए और 14 दिनों के भीतर समझौते की प्रक्रिया पूर्ण हो गई।
समझौते की शर्तें और नई शुरुआत
समझौते के अनुसार:
-
स्पेशल सिविल सूट नं. 143/1967 में दर्ज संपत्तियाँ मेहदीबाग़ वक़्फ़ के अधीन मानी जाएँगी, जिनका प्रबंधन मौलाना आमिरुद्दीन मलक साहब करेंगे।
-
मौलाना अब्देअली चिमठानावाला तीन ट्रस्टों — दाऊदी अतबा-ए-मलक वक़ील, अतबा-ए-हुमायूँ और बैतुल अमन — का संचालन करेंगे।
-
दोनों जमातें एक-दूसरे के धार्मिक कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करेंगी।
-
देशभर में लंबित मुकदमे आपसी सहमति से वापस लिए जाएंगे।
यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टि से बल्कि सामाजिक सौहार्द की दृष्टि से भी ऐतिहासिक है।
आयोग की भूमिका और सामाजिक संदेश
महाराष्ट्र राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष श्री प्यारे ख़ान ने कहा कि “यह केवल एक कानूनी विवाद का अंत नहीं, बल्कि समुदायों के बीच संवाद और एकता की विजय है। हमने यह दिखाया है कि अगर संवाद हो, तो सदियों पुराने विवाद भी सुलझ सकते हैं।”
नागपुर में हुआ यह समझौता न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे देश के लिए उदाहरण है। इसने यह साबित किया है कि न्यायालयों की सीमाओं से परे जाकर भी जब सद्भाव और बातचीत की भावना हो, तो सबसे जटिल मतभेद भी मिटाए जा सकते हैं।
मेहदीबाग़ और चिमठानावाला विवाद का अंत यह संदेश देता है कि समाज में एकता और सौहार्द तभी संभव है जब मतभेदों को संवाद से सुलझाया जाए।
महाराष्ट्र राज्य अल्पसंख्यक आयोग की यह उपलब्धि भारतीय समाज में शांति और सद्भाव की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी।