जब संविधान की यात्रा को शब्दों में पिरोया जाता है
नागपुर में आज कुछ ऐसा हुआ जो संसदीय परंपराओं और संवैधानिक मूल्यों के प्रति सम्मान का प्रतीक है। महाराष्ट्र विधान परिषद के सभापति प्रो. राम शिंदे और उपसभापति डॉ. नीलम गोरहे ने केंद्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी के निवास पर पहुंचकर उन्हें एक विशेष समारोह का निमंत्रण सौंपा। यह समारोह महज एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारतीय संविधान की गौरवशाली 75 वर्षों की यात्रा को समर्पित एक ऐतिहासिक पुस्तक के विमोचन का अवसर है।
मुख्यमंत्री के भाषण से बनी पुस्तक
यह पुस्तक कोई साधारण प्रकाशन नहीं है। इसमें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री महोदय का वह विशेष भाषण संकलित किया गया है जो भारतीय संविधान की अमृत महोत्सवी यात्रा पर आधारित है। जब कोई मुख्यमंत्री संविधान के महत्व, उसकी यात्रा और उसके मूल्यों पर बात करता है, तो वह केवल शासकीय दृष्टिकोण नहीं होता, बल्कि उस व्यवस्था के प्रति गहरी प्रतिबद्धता का प्रतिबिंब होता है जिसने हमें दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बनाया।
इस पुस्तक का विमोचन 9 दिसंबर 2025 को माननीय राज्यपाल महोदय के शुभ हस्तों से होने जा रहा है। राज्यपाल द्वारा विमोचन इस बात का संकेत है कि यह केवल एक राजनीतिक आयोजन नहीं, बल्कि संवैधानिक गरिमा और मूल्यों का सम्मान है।

संसदीय शिष्टाचार का उत्कृष्ट उदाहरण
विधान परिषद के सभापति और उपसभापति द्वारा केंद्रीय मंत्री के निवास पर जाकर निमंत्रण देना संसदीय शिष्टाचार और परंपरा का एक सुंदर उदाहरण है। आज के दौर में जब राजनीतिक मतभेदों को व्यक्तिगत दुश्मनी समझ लिया जाता है, ऐसे में यह घटना यह याद दिलाती है कि संवैधानिक पदों की गरिमा और आपसी सम्मान कितना जरूरी है।
नितिन गडकरी, जो न केवल एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री हैं बल्कि नागपुर के सांसद भी हैं, उन्हें इस समारोह में आमंत्रित करना स्वाभाविक था। उनकी उपस्थिति इस कार्यक्रम को और अधिक गरिमामय बनाएगी। गडकरी जी ने हमेशा संविधान, संसदीय मूल्यों और लोकतांत्रिक परंपराओं का सम्मान किया है।
मुलाकात में हुई सार्थक चर्चा
यह मुलाकात केवल निमंत्रण सौंपने तक सीमित नहीं रही। इस दौरान राज्यकारभार, विकास कार्यों और विधान परिषद द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न उपक्रमों पर विस्तृत चर्चा हुई। यह चर्चा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि नितिन गडकरी केंद्र सरकार में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री हैं और महाराष्ट्र के विकास में उनकी प्रत्यक्ष भूमिका है।
नागपुर और विदर्भ क्षेत्र के विकास के लिए गडकरी जी ने हमेशा केंद्र और राज्य के बीच समन्वय की भूमिका निभाई है। ऐसे में विधान परिषद के पदाधिकारियों से उनकी बातचीत भविष्य की योजनाओं और परियोजनाओं के लिए एक सकारात्मक आधार बना सकती है।

सभापति और उपसभापति ने बताया कि यह चर्चा बेहद सार्थक और सकारात्मक रही। जब विधायिका और कार्यपालिका के बीच स्वस्थ संवाद होता है, तो इससे शासन व्यवस्था मजबूत होती है और जनता को लाभ मिलता है।
विधान परिषद शतक महोत्सव की पुस्तक भी भेंट
इस अवसर पर सभापति प्रो. राम शिंदे और उपसभापति डॉ. नीलम गोरहे ने ‘महाराष्ट्र विधान परिषद शतक महोत्सव, वरिष्ठ सदन की आवश्यकता और महत्व’ विषयक पुस्तक भी केंद्रीय मंत्री को भेंट की। यह पुस्तक विधान परिषद की भूमिका, उसकी प्रासंगिकता और महत्व को रेखांकित करती है।
आज के समय में जब कुछ राज्यों में विधान परिषद को समाप्त करने या उसकी उपयोगिता पर सवाल उठाए जाते हैं, ऐसे में यह पुस्तक द्विसदनीय विधायिका के महत्व को स्थापित करती है। विधान परिषद एक वरिष्ठ सदन है जो अनुभवी और विशेषज्ञ सदस्यों को विधायी प्रक्रिया में योगदान का मौका देता है।
महाराष्ट्र की विधान परिषद देश की सबसे पुरानी और सक्रिय परिषदों में से एक है। इसकी 100 वर्षों की यात्रा पर आधारित यह पुस्तक न केवल इतिहास का दस्तावेज है, बल्कि संसदीय लोकतंत्र की मजबूती का प्रमाण भी है।
डॉ. नीलम गोरहे का नवप्रकाशित ग्रंथ ‘दाही दिशा’
उपसभापति डॉ. नीलम गोरहे ने अपना नवप्रकाशित ग्रंथ ‘दाही दिशा’ भी केंद्रीय मंत्री को उपहार स्वरूप भेंट किया। यह व्यक्तिगत स्तर पर भी एक महत्वपूर्ण क्षण था। जब एक वरिष्ठ राजनेता अपनी साहित्यिक कृति किसी अन्य वरिष्ठ नेता को भेंट करता है, तो यह बौद्धिक आदान-प्रदान का एक सुंदर उदाहरण बनता है।
डॉ. गोरहे एक अनुभवी राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ विचारशील व्यक्तित्व भी हैं। उनका यह ग्रंथ निश्चित रूप से समसामयिक मुद्दों या सामाजिक चिंतन पर आधारित होगा। ऐसे साहित्य की आज के समय में बेहद जरूरत है जब राजनीति केवल सत्ता की दौड़ बनकर रह गई है।
परंपरागत स्वागत और सम्मान
विधान परिषद के पदाधिकारियों ने केंद्रीय मंत्री का शॉल और पुष्पगुच्छ देकर पारंपरिक तरीके से स्वागत किया। यह भारतीय संस्कृति की वह परंपरा है जो अतिथि सत्कार और सम्मान को महत्व देती है। राजनीतिक पदों पर रहते हुए भी जब लोग इन मूल्यों को निभाते हैं, तो यह समाज के लिए एक सकारात्मक संदेश होता है।
नितिन गडकरी ने भी इस निमंत्रण को सहर्ष स्वीकार किया। उनकी यह स्वीकृति केवल एक औपचारिक कदम नहीं, बल्कि संविधान के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और महाराष्ट्र की विधायिका के प्रति सम्मान का प्रतीक है।
भविष्य के सहयोग की नींव
सभापति और उपसभापति ने अपने बयान में कहा कि यह सौजन्य मुलाकात भविष्य के सहयोग, संसदीय परंपराओं और संवाद को निश्चित रूप से नई सकारात्मक दिशा देगी। यह कथन बेहद महत्वपूर्ण है। आज के समय में जब केंद्र-राज्य संबंधों में कई बार तनाव देखने को मिलता है, ऐसे में यह मुलाकात एक स्वस्थ परंपरा की शुरुआत हो सकती है।
गडकरी जी केंद्र में एक प्रभावशाली मंत्री हैं और महाराष्ट्र के विकास में उनकी रुचि सर्वविदित है। विधान परिषद के साथ उनका यह सकारात्मक संवाद राज्य की विकास योजनाओं में केंद्र के सहयोग को सुनिश्चित कर सकता है।
संविधान का अमृत महोत्सव: एक गहरा अर्थ
भारतीय संविधान का अमृत महोत्सव केवल 75 वर्ष पूरे होने का उत्सव नहीं है। यह उस दस्तावेज का सम्मान है जिसने एक विविधतापूर्ण देश को एकता के सूत्र में बांधा, जिसने हर नागरिक को समान अधिकार दिए, और जिसने लोकतंत्र, न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूल्यों को संस्थागत रूप दिया।
26 नवंबर 1949 को जब संविधान सभा ने संविधान को अपनाया, तो किसी को नहीं पता था कि यह दस्तावेज इतने लंबे समय तक न केवल टिकेगा बल्कि हर चुनौती का सामना करते हुए और मजबूत होगा। आज जब हम 75 वर्षों को देखते हैं, तो यह गर्व का विषय है कि हमारा संविधान जीवंत और प्रासंगिक बना हुआ है।
नागपुर का संविधान से खास रिश्ता
यह भी रोचक है कि यह आयोजन नागपुर में हो रहा है। नागपुर का भारतीय संविधान से एक विशेष रिश्ता है। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, जो संविधान के मुख्य वास्तुकार थे, का नागपुर से गहरा नाता था। 1956 में उन्होंने यहीं दीक्षाभूमि पर लाखों लोगों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।
नागपुर में संविधान के अमृत महोत्सव पर यह पुस्तक विमोचन इस ऐतिहासिक संबंध को और मजबूत करता है। यह शहर हमेशा से सामाजिक न्याय, समता और संवैधानिक मूल्यों का केंद्र रहा है।
निष्कर्ष: संवैधानिक मूल्यों की रक्षा जरूरी
9 दिसंबर को होने वाला यह ग्रंथ विमोचन समारोह केवल एक पुस्तक के प्रकाशन का अवसर नहीं है। यह हमें याद दिलाता है कि संविधान कोई मृत दस्तावेज नहीं है, बल्कि एक जीवंत और गतिशील व्यवस्था है जो लगातार विकसित होती रहती है।
आज जब लोकतंत्र के समक्ष नई चुनौतियां हैं, संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता पर सवाल उठते हैं, और संसदीय परंपराएं कमजोर होती दिख रही हैं, ऐसे में ऐसे आयोजन हमें अपनी जड़ों की याद दिलाते हैं। विधान परिषद के पदाधिकारियों और केंद्रीय मंत्री के बीच यह सकारात्मक संवाद भविष्य के लिए एक अच्छा संकेत है।