सम्पूर्ण हिन्दू समाज का संगठित स्वरूप ही भारत की शक्ति और सुरक्षा की गारंटी : नागपुर विजयादशमी उत्सव में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत

नागपुर विजयादशमी उत्सव 2025 : सरसंघचालक मोहन भागवत का सम्पूर्ण हिन्दू समाज के संगठित स्वरूप पर बल
नागपुर विजयादशमी उत्सव 2025 : सरसंघचालक मोहन भागवत का सम्पूर्ण हिन्दू समाज के संगठित स्वरूप पर बल
अक्टूबर 2, 2025

नागपुर, 2 अक्तूबर।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपनी स्थापना के शताब्दी वर्ष में विजयादशमी उत्सव का भव्य आयोजन नागपुर के रेशिमबाग मैदान में किया। इस अवसर पर संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने समाज की एकता, आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय सुरक्षा पर बल देते हुए कहा कि “सम्पूर्ण हिन्दू समाज का संगठित स्वरूप ही भारत की एकता, एकात्मता, विकास और सुरक्षा की गारंटी है।”

उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि हिन्दू समाज अलगाव की मानसिकता से मुक्त और सर्वसमावेशक है, जो “वसुधैव कुटुम्बकम्” की विचारधारा का पुरस्कर्ता है। इसी कारण संघ सम्पूर्ण हिन्दू समाज के संगठन का कार्य कर रहा है।

स्वदेशी और आत्मनिर्भरता पर जोर

भागवत जी ने अमेरिका की आयात शुल्क नीति का उदाहरण देते हुए कहा कि दुनिया परस्पर निर्भरता पर चलती है, लेकिन यह निर्भरता हमारी मजबूरी न बने। इसके लिए भारत को आत्मनिर्भर बनना ही होगा, क्योंकि स्वदेशी और स्वावलम्बन का कोई विकल्प नहीं है।

पर्यावरणीय असंतुलन पर चिंता

उन्होंने जलवायु संकट का उल्लेख करते हुए कहा कि वर्षा का अनियमित होना, भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं तेजी से बढ़ी हैं। हिमालय में बढ़ती दुर्घटनाएं भारत और दक्षिण एशिया के लिए खतरे की घंटी हैं।

पड़ोसी देशों और उपद्रवी शक्तियाँ

डॉ. भागवत ने पड़ोसी देशों की अस्थिरता पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में हिंसक उथल-पुथल के बीच भारत के भीतर भी ऐसी शक्तियाँ सक्रिय हैं, जो अराजकता फैलाना चाहती हैं। उन्होंने आगाह किया कि लोकतांत्रिक मार्ग से ही समाज में बदलाव संभव है, हिंसा इसका समाधान नहीं हो सकती।

सामाजिक एकता और सांस्कृतिक बंधन

भागवत जी ने कहा कि भारत की विविधताओं के बावजूद सभी को यह ध्यान रखना चाहिए कि हम सब एक बड़े समाज और संस्कृति का हिस्सा हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि समाज में किसी भी आस्था, श्रद्धा या परंपरा का अनादर न हो।

नक्सलवाद और आंतरिक चुनौतियाँ

नक्सली आंदोलनों पर उन्होंने कहा कि शासन की कड़ी कार्रवाई से नियंत्रण हुआ है, लेकिन न्याय, विकास और संवेदना की व्यापक योजनाएँ बनानी होंगी ताकि यह समस्या जड़ से खत्म हो सके।

पंचपरिवर्तन का संकल्प

संघ के शताब्दी वर्ष में उन्होंने “पंच परिवर्तन कार्यक्रम” की घोषणा की, जिसमें सामाजिक समरसता, कुटुम्ब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्व-बोध और स्वदेशी, नागरिक अनुशासन व संविधान पालन को आगे बढ़ाने पर बल दिया।

रामनाथ कोविन्द का संबोधन

इस अवसर पर भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द ने कहा कि संघ का शताब्दी समारोह केवल संगठन का नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति की अमर यात्रा का उत्सव है। उन्होंने कहा कि बाबासाहेब आम्बेडकर और डॉ. हेडगेवार दोनों ने भारत के सामाजिक और राष्ट्रीय निर्माण में अहम योगदान दिया।

दलाई लामा का संदेश

बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने अपने संदेश में संघ को पुनर्जागरण की धारा का अंग बताया और कहा कि संघ ने निःस्वार्थ भाव से भारत को आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से सशक्त बनाया है।

अंतरराष्ट्रीय सहभागिता

इस आयोजन में देश-विदेश के अनेक गणमान्य व्यक्ति, उद्योगपति, सेना के अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

समापन

रेशिमबाग मैदान में शस्त्रपूजन, ध्वजारोहण, सांघिक गीत, योगासन और घोष की प्रस्तुतियों के बीच यह समारोह सम्पन्न हुआ। सरसंघचालक का संदेश स्पष्ट था—“संगठित हिन्दू समाज ही भारत के उज्ज्वल भविष्य की गारंटी है।”


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