नागपुर।
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने 1956 में पवित्र दीक्षाभूमि पर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। इस ऐतिहासिक घटना को याद करते हुए, हाल ही में आयोजित भीमसंघ्या महोत्सव में छात्रों ने मंच पर बाबासाहेब के जीवन और दीक्षा प्रसंग को जीवंत कर दिया।
कार्यक्रम का आयोजन डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर महाविद्यालय, दीक्षाभूमि और ब्ल्यू रिवोल्यूशनरी कमिटी ने संयुक्त रूप से किया। महाविद्यालय की प्राचार्या दीपा पान्हेकर के प्रयासों से यह कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। उद्घाटन समारोह में भदंत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
वेब स्टोरी:
नाटिका और प्रस्तुतियों का रोमांच
कार्यक्रम में लगभग 80 विद्यार्थियों ने नृत्य, संगीत और अभिनय के माध्यम से बाबासाहेब आंबेडकर के जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंग प्रस्तुत किए। मंच पर उन्होंने बाबासाहेब के जन्म, शिक्षा, विवाह, महाड सत्याग्रह, मनुस्मृति दहन, मंदिर प्रवेश, गोलमेज सम्मेलन, पुणे समझौता, रमाई का निधन और धम्मदीक्षा जैसे महत्वपूर्ण घटनाओं का सजीव चित्रण किया।
जैसे ही मंच पर बुद्ध की करुणा और बाबासाहेब की समता प्रकट हुई, दर्शक भावविभोर हो उठे। कई लोग अपनी आंखों में आंसू लिए कार्यक्रम देख रहे थे। छात्रों के अभिनय और प्रस्तुति की हर गतिविधि ने दर्शकों को प्रभावित किया और कार्यक्रम में उत्साह और उमंग का वातावरण बन गया।
उपस्थित लोगों की प्रतिक्रिया
भदंत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई ने छात्रों की प्रशंसा करते हुए कहा —
“बाबासाहेब के विचारों में बुद्ध की करुणा और क्रांति की भावना समान रूप से दिखाई देती है। आज के युवा पीढ़ी ने इस कार्यक्रम के माध्यम से बाबासाहेब के संदेश को सजीव कर दिया।”
दर्शकों ने कार्यक्रम की सफलता पर संतोष जताया और नाटिका को धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस पर भी प्रस्तुत करने की मांग की।
भीमसंघ्या महोत्सव का महत्व
भीमसंघ्या महोत्सव का उद्देश्य न केवल बाबासाहेब के जीवन को याद करना है, बल्कि उनके विचारों, उनके संघर्ष और सामाजिक न्याय की दिशा को नई पीढ़ी तक पहुंचाना भी है। इस महोत्सव के माध्यम से विद्यार्थियों ने यह संदेश दिया कि समानता, शिक्षा और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष अभी भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
कार्यक्रम में नृत्य और संगीत के माध्यम से विद्यार्थियों ने सामाजिक चेतना और मानवता के संदेश को भी प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। महोत्सव ने दीक्षाभूमि के ऐतिहासिक महत्व और बाबासाहेब के जीवन दर्शन को उपस्थित जनता के सामने उजागर किया।
निष्कर्ष
भीमसंघ्या महोत्सव ने यह साबित किया कि युवा पीढ़ी सिर्फ सीखने और पढ़ाई तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक और ऐतिहासिक घटनाओं को समझने और उन्हें जीवंत करने में भी सक्षम है। बाबासाहेब आंबेडकर के जीवन चरित्र का मंच पर चित्रण दर्शकों के लिए एक प्रेरणा बन गया, जो समानता और सामाजिक न्याय के संदेश को व्यापक स्तर पर फैलाएगा।