बेमौसम वर्षा ने बुझा दिए किसानों के उम्मीदों के दीप
नागपुर के जवली गाँव का हृदयविदारक दृश्य
महाराष्ट्र के नागपुर जिले के जवली गाँव में घटी यह घटना हर उस किसान की पीड़ा का प्रतीक बन गई है जो अपने पसीने से धरती को सींचता है और बदले में आशा का एक दाना बोता है। गाँव के किसान विजय अम्भोरे के पास चार एकड़ कृषि भूमि है। इस वर्ष उन्होंने बैंक से 1.70 लाख रुपये का ऋण लेकर सोयाबीन की खेती की थी। मन में उम्मीद थी कि इस बार अच्छी पैदावार होगी और वह अपने परिवार का भविष्य संवार सकेंगे।
लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। जब फसल पूरी तरह तैयार हो चुकी थी और केवल मंडी तक पहुँचाने की प्रतीक्षा थी, तभी प्रकृति ने अपना कहर बरपा दिया।
दो दिनों की बारिश ने मिटा दिए महीनों की मेहनत
दिनांक 25 और 26 अक्टूबर को क्षेत्र में लगातार दो दिनों तक हुई बेमौसम वर्षा ने खेतों को जलमग्न कर दिया। कटाई के बाद खेत में पड़ा सोयाबीन पूरी तरह भीग गया और सड़ने लगा। जहाँ कभी सुनहरी फसल लहलहा रही थी, वहाँ अब बदबू और निराशा का धुआँ उठ रहा था।
विजय अम्भोरे की मेहनत, पूंजी और उम्मीदें सब कुछ कुछ ही घंटों में नष्ट हो गईं।
बेबस किसान ने अपनी ही फसल को जलाया
निराशा और दुःख से टूटे विजय ने जब देखा कि उनकी पूरी फसल अब किसी काम की नहीं रही, तो उन्होंने अपने हाथों से खेत में आग लगा दी। जलती हुई फसल के धुएँ में उनकी सालभर की मेहनत, सपने और भविष्य सब जलकर राख हो गए।
यह दृश्य न केवल विजय की, बल्कि हजारों किसानों की पीड़ा का प्रतीक बन गया जो मौसम की अनिश्चितता और आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहे हैं।
कृषि नीति और मौसम परिवर्तन की चुनौती
विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसी बेमौसम बारिश की घटनाएँ अब लगातार बढ़ रही हैं। किसान फसलों के चक्र को समझ नहीं पा रहे हैं और मौसम विभाग की चेतावनियाँ भी अक्सर समय पर नहीं पहुँच पातीं।
कृषि अर्थशास्त्री यह भी बताते हैं कि इस तरह की घटनाएँ न केवल व्यक्तिगत नुकसान हैं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर गहरा आघात करती हैं।
सरकारी सहायता की उम्मीद और वास्तविकता
स्थानीय प्रशासन ने इस घटना की जानकारी मिलने पर नुकसान का आकलन करने की बात कही है, परंतु किसानों का कहना है कि मुआवजे की प्रक्रिया धीमी और अपर्याप्त है।
कई किसान संगठन अब मांग कर रहे हैं कि राज्य सरकार को ऐसे किसानों के लिए विशेष राहत पैकेज घोषित करना चाहिए और बीमा योजनाओं को अधिक सुलभ बनाना चाहिए।
किसान की आँखों में फिर भी उम्मीद की किरण
हालाँकि विजय अम्भोरे की फसल राख बन चुकी है, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी है। उनका कहना है — “धरती माँ ने जितना दिया, उतना लिया भी। अगले मौसम में फिर से बीज बोऊँगा।”
यह वाक्य उस अटूट भारतीय किसान-आत्मा का प्रमाण है जो बार-बार टूटने के बाद भी फिर से खड़ा हो जाता है।
खेती केवल व्यवसाय नहीं, जीवन का संघर्ष है
जवली गाँव की यह घटना केवल एक किसान की नहीं, बल्कि पूरे भारत के ग्रामीण जीवन का आईना है। यह बताती है कि किसान केवल फसल नहीं उगाता, वह उम्मीद, परिश्रम और आत्मविश्वास भी उगाता है।
सरकार, समाज और नीति-निर्माताओं को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि किसान की मेहनत कभी इस तरह राख में न बदले।