शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के आंतरिक मामलों में एक नया विवाद सामने आया है। शहर प्रमुख नितिन तिवारी ने पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे को एक पत्र लिखकर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि चार बार के नगरसेवक किशोर कुमेरिया ने भाजपा के साथ मिलकर पार्टी के साथ धोखा किया है। यह मामला प्रभाग क्रमांक 28 के नगर निगम चुनाव से जुड़ा हुआ है, जहां एबी फॉर्म भरने की प्रक्रिया में कथित गड़बड़ी की गई।
विवाद की शुरुआत कैसे हुई
किशोर कुमेरिया प्रभाग क्रमांक 28 से लगातार चार बार नगरसेवक रह चुके हैं। हर बार वे अनुसूचित जाति यानी ओबीसी वर्ग से चुनाव लड़ते आए हैं। इस बार भी शिवसेना ने उन्हें ओबीसी कोटे से एबी फॉर्म दिया था। साथ ही, शहर प्रमुख नितिन तिवारी को खुले यानी सामान्य वर्ग से एबी फॉर्म प्रदान किया गया था। पार्टी की योजना साफ थी कि दोनों नेताओं को अलग-अलग वर्गों से चुनाव में उतारा जाए।
लेकिन जब नामांकन दाखिल करने का समय आया, तो किशोर कुमेरिया ने चौंकाने वाला कदम उठाया। पार्टी द्वारा दिए गए ओबीसी वर्ग के फॉर्म को छोड़कर उन्होंने सामान्य खुले वर्ग में अपना नामांकन दाखिल कर दिया। इससे पार्टी की पूरी रणनीति गड़बड़ा गई।
भाजपा को कैसे मिला फायदा
नितिन तिवारी के अनुसार, किशोर कुमेरिया के इस कदम से सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को हुआ। भाजपा के नगरसेवक पिंटू झलके ने ओबीसी वर्ग से नामांकन भरा था। पिछले चुनाव में उन्हें करीब 15 हजार वोट मिले थे, जो उन्हें एक मजबूत उम्मीदवार बनाता है।
जब किशोर कुमेरिया ने ओबीसी वर्ग से अपना नामांकन वापस ले लिया और सामान्य वर्ग में फॉर्म भर दिया, तो ओबीसी कोटे में शिवसेना का कोई उम्मीदवार नहीं रहा। इससे पिंटू झलके को लगभग वॉकओवर जैसी स्थिति मिल गई। अब उन्हें ओबीसी वर्ग में कोई मजबूत प्रतिद्वंद्वी नहीं मिलेगा।
नितिन तिवारी की मुश्किलें बढ़ीं
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज्यादा परेशानी नितिन तिवारी को हुई। चूंकि किशोर कुमेरिया ने भी सामान्य वर्ग में नामांकन भर दिया, अब एक ही वर्ग में शिवसेना के दो उम्मीदवार खड़े हो गए। चुनाव नियमों के अनुसार, एक पार्टी एक ही वर्ग में दो उम्मीदवार नहीं खड़ा कर सकती।
इसका मतलब है कि अब नितिन तिवारी का एबी फॉर्म रद्द होने की पूरी संभावना बन गई है। उन्हें डर है कि इस तकनीकी गड़बड़ी की वजह से उनकी उम्मीदवारी ही खतरे में पड़ जाएगी। ऐसे में एक अनुभवी नेता होने के बावजूद वे चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।
संपर्क प्रमुख पर भी आरोप
नितिन तिवारी ने अपने पत्र में संपर्क प्रमुख सतीश हरडे पर भी गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि सतीश हरडे ने जानबूझकर उन्हें दोपहर तक एबी फॉर्म के लिए इंतजार में रखा। इस दौरान किशोर कुमेरिया को फॉर्म देकर जल्दी से वहां से भेज दिया गया।
नितिन तिवारी का आरोप है कि यह सब पहले से योजनाबद्ध तरीके से किया गया। उन्हें देर से फॉर्म देकर और किशोर कुमेरिया को जल्दी भेजकर पूरी साजिश को अंजाम दिया गया। इससे साफ होता है कि यह महज एक गलती नहीं, बल्कि सोची-समझी चाल थी।
पार्टी के लिए चुनौती
यह विवाद शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। एक तरफ पार्टी को भाजपा से मुकाबला करना है, वहीं दूसरी तरफ आंतरिक कलह से निपटना है। अगर नितिन तिवारी का आरोप सही है, तो इसका मतलब है कि पार्टी के अंदर ही कुछ लोग विरोधी पार्टी से मिलकर काम कर रहे हैं।
ऐसे में पार्टी नेतृत्व के सामने सवाल है कि वे इस मामले को कैसे सुलझाएंगे। अगर सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो इससे पार्टी की छवि खराब होगी और कार्यकर्ताओं में निराशा फैलेगी।
न्याय की गुहार
नितिन तिवारी ने अपने पत्र के अंत में उद्धव ठाकरे से न्याय की गुहार लगाई है। उन्होंने कहा है कि वे एक वफादार कार्यकर्ता हैं और पार्टी के लिए हमेशा काम करते रहे हैं। लेकिन अब उनके साथ जो हुआ है, वह बिल्कुल गलत है।
उन्होंने पार्टी प्रमुख से अनुरोध किया है कि इस मामले की गहराई से जांच की जाए और जो लोग पार्टी के साथ धोखा कर रहे हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। साथ ही, उनकी उम्मीदवारी को बचाने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं।
राजनीतिक विश्लेषण
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह मामला सिर्फ एक व्यक्तिगत विवाद नहीं है। इससे पार्टी के अंदर की कमजोरियां उजागर होती हैं। जब पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच ही तालमेल नहीं होगा, तो चुनाव में सफलता मिलना मुश्किल हो जाता है।
साथ ही, यह भाजपा की चतुर रणनीति को भी दिखाता है। विरोधी पार्टी के अंदर मतभेद पैदा करके और उनके उम्मीदवारों को आपस में उलझाकर भाजपा अपना रास्ता साफ कर रही है।
आगे क्या होगा
अब देखना यह होगा कि उद्धव ठाकरे इस मामले में क्या फैसला लेते हैं। क्या वे किशोर कुमेरिया के खिलाफ कार्रवाई करेंगे या मामले को सुलझाने की कोशिश करेंगे? क्या नितिन तिवारी की उम्मीदवारी बचाई जा सकेगी या फिर उन्हें चुनाव से बाहर होना पड़ेगा?
यह भी संभव है कि पार्टी नेतृत्व दोनों पक्षों को बुलाकर बातचीत करे और कोई बीच का रास्ता निकाले। लेकिन जितनी जल्दी यह मामला सुलझेगा, उतना ही पार्टी के लिए अच्छा होगा। वरना यह विवाद चुनाव में पार्टी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सकता है।