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छह लाख शिक्षकों को देनी होगी टीईटी परीक्षा, सरकार विचार कर रही पुनर्विचार याचिका

TET Exam: छह लाख शिक्षकों के लिए अनिवार्य होगी पात्रता परीक्षा, जानें पूरा मामला
TET Exam: छह लाख शिक्षकों के लिए अनिवार्य होगी पात्रता परीक्षा, जानें पूरा मामला (File Photo)
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद महाराष्ट्र के छह लाख शिक्षकों को टीईटी परीक्षा देना अनिवार्य हो गया है। जिन शिक्षकों की सेवा पांच वर्ष से अधिक शेष है, उन्हें यह परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी। शिक्षक संगठनों ने इसका विरोध किया है। विधान परिषद में इस मुद्दे पर चर्चा हुई। सरकार ने कहा कि विधि विभाग की सलाह के बाद पुनर्विचार याचिका पर विचार किया जाएगा।
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महाराष्ट्र राज्य में शिक्षा व्यवस्था को लेकर एक बड़ा फैसला सामने आया है। सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय के बाद राज्य के लगभग छह लाख शिक्षकों को शिक्षक पात्रता परीक्षा यानी टीईटी देना अनिवार्य हो गया है। यह फैसला शिक्षा जगत में हलचल मचा देने वाला साबित हो रहा है। राज्य भर में कार्यरत शिक्षकों और प्रधानाध्यापकों में इस आदेश को लेकर चिंता और असमंजस का माहौल है।

विभिन्न शिक्षक संगठनों ने इस फैसले के खिलाफ आवाज उठाई है और सरकार से इसकी समीक्षा की मांग की है। इसी मुद्दे को लेकर विधान परिषद में गर्मागर्म बहस हुई, जिसमें सदस्यों ने सरकार से स्पष्ट जवाब मांगा कि क्या वह इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करेगी।

सर्वोच्च न्यायालय का फैसला और उसका प्रभाव

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया है कि जिन शिक्षकों की सेवा अवधि पांच वर्ष से अधिक बाकी है और जिन्होंने अभी तक टीईटी परीक्षा पास नहीं की है, उन्हें यह परीक्षा अनिवार्य रूप से उत्तीर्ण करनी होगी। यह निर्णय आरटीई यानी शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार लिया गया है।

अदालत ने यह भी निर्देश दिया है कि शिक्षकों को निर्धारित समय सीमा में यह परीक्षा पास करने का अवसर देने के लिए साल में दो बार टीईटी परीक्षा आयोजित की जाए। एक सकारात्मक पहलू यह है कि टीईटी उत्तीर्ण प्रमाणपत्र की वैधता अब स्थायी होगी, जो पहले सीमित अवधि के लिए वैध होता था।

विधान परिषद में उठे सवाल

इस मुद्दे को लेकर विधान परिषद में सदस्य राजेश राठोड, सुधाकर अडबाले, धीरज लिंगाडे और अभिजीत वंजारी ने सरकार से सवाल किए। उन्होंने जानना चाहा कि क्या राज्य सरकार इस निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करने की योजना बना रही है। इस प्रश्न का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह फैसला राज्य के लाखों शिक्षकों के भविष्य और करियर को प्रभावित करेगा।

सरकार की प्रतिक्रिया और स्थिति

विद्यालय शिक्षा मंत्री दादाजी भुसे की ओर से राज्यमंत्री पंकज भोयर ने परिषद में जवाब देते हुए स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने बताया कि विधि एवं न्याय विभाग की राय के अनुसार, चूंकि यह निर्णय आरटीई अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप पारित हुआ है, इसलिए इसके विरुद्ध पुनर्विचार याचिका दायर करना कानूनी रूप से संभव नहीं है।

हालांकि, राज्यमंत्री ने यह भी कहा कि शिक्षक संगठनों के व्यापक विरोध और उनकी एकमुखी मांगों को देखते हुए, तथा अन्य राज्यों में इस मुद्दे पर उठ रहे सवालों को ध्यान में रखते हुए, विद्यालय शिक्षा विभाग विधि विभाग को पुनर्विचार याचिका दायर करने के लिए निर्देश देने पर विचार कर रहा है।

शिक्षक संगठनों की चिंताएं

राज्य भर के विभिन्न शिक्षक संगठनों ने इस फैसले के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उनका कहना है कि जो शिक्षक पिछले कई वर्षों से अनुभव के आधार पर पढ़ा रहे हैं और जिनकी योग्यता सिद्ध हो चुकी है, उन्हें फिर से परीक्षा देने के लिए मजबूर करना उचित नहीं है।

संगठनों का तर्क है कि व्यावहारिक अनुभव और कक्षा में काम करने की क्षमता किसी परीक्षा से अधिक महत्वपूर्ण है। खासकर उन शिक्षकों के लिए जो लंबे समय से सेवा में हैं और जिनका शिक्षण रिकॉर्ड अच्छा रहा है।

छह लाख शिक्षकों पर प्रभाव

इस फैसले का सबसे बड़ा प्रभाव उन शिक्षकों पर पड़ेगा जिनकी सेवा अवधि अभी पांच वर्ष से अधिक बाकी है। राज्य में ऐसे शिक्षकों की संख्या लगभग छह लाख आंकी जा रही है। इनमें प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर के शिक्षक शामिल हैं।

यदि ये सभी शिक्षक निर्धारित समय में टीईटी परीक्षा पास नहीं कर पाते हैं, तो उनकी नौकरी पर खतरा मंडरा सकता है। इस आशंका ने शिक्षकों में व्यापक असुरक्षा की भावना पैदा कर दी है।

अन्य राज्यों की स्थिति

महाराष्ट्र अकेला राज्य नहीं है जो इस मुद्दे से जूझ रहा है। देश के कई अन्य राज्यों में भी इसी तरह की स्थिति है। कुछ राज्यों ने इस मामले में अलग रुख अपनाया है और अपने शिक्षकों को राहत देने के लिए वैकल्पिक उपाय खोजे हैं।

महाराष्ट्र सरकार भी अन्य राज्यों के अनुभवों का अध्ययन कर रही है ताकि अपने शिक्षकों के लिए सर्वोत्तम समाधान निकाला जा सके। यही कारण है कि पुनर्विचार याचिका दायर करने पर विचार किया जा रहा है।

आगे की राह

फिलहाल स्थिति यह है कि सरकार कानूनी और व्यावहारिक दोनों पहलुओं पर विचार कर रही है। एक ओर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला है जिसका पालन करना अनिवार्य है, वहीं दूसरी ओर लाखों शिक्षकों की चिंताएं और मांगें हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

विद्यालय शिक्षा विभाग ने आश्वासन दिया है कि वह विधि विभाग के साथ मिलकर सभी संभावनाओं का अध्ययन करेगा। यदि कानूनी रूप से संभव हुआ तो पुनर्विचार याचिका दायर की जाएगी। साथ ही, शिक्षकों को टीईटी परीक्षा की तैयारी के लिए पर्याप्त समय और संसाधन उपलब्ध कराने की भी योजना है।

यह मुद्दा केवल एक परीक्षा का नहीं है, बल्कि यह राज्य की शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता और शिक्षकों के सम्मान से जुड़ा है। जरूरी है कि इस मामले में ऐसा समाधान निकाला जाए जो शिक्षा की गुणवत्ता को भी बनाए रखे और शिक्षकों के अधिकारों की भी रक्षा करे। आने वाले दिनों में सरकार की कार्रवाई से ही स्पष्ट होगा कि इस जटिल स्थिति का समाधान किस दिशा में होगा।

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Asfi Shadab

एक लेखक, चिंतक और जागरूक सामाजिक कार्यकर्ता, जो खेल, राजनीति और वित्त की जटिलता को समझते हुए उनके बीच के रिश्तों पर निरंतर शोध और विश्लेषण करते हैं। जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों को सरल, तर्कपूर्ण और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने के लिए प्रतिबद्ध।