महाराष्ट्र विधानसभा में सोयाबीन किसानों की समस्याओं को लेकर एक बार फिर गरमागरम बहस देखने को मिली। विपक्ष के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री विजय वडेट्टीवार ने सदन में सरकार पर जमकर हमला बोलते हुए किसानों की परेशानियों को उजागर किया। उन्होंने कहा कि सोयाबीन उत्पादक किसान लंबे समय से उचित दाम और सरकारी मदद का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है।
वडेट्टीवार ने अपने भाषण में कहा कि सोयाबीन की खेती करने वाले किसान महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। विदर्भ और मराठवाड़ा जैसे इलाकों में लाखों किसान इस फसल पर निर्भर हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में उन्हें लागत का भी उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। बाजार में गिरते भाव और सरकारी खरीद की अनिश्चितता ने किसानों को मजबूर कर दिया है।
सोयाबीन किसानों की मुख्य समस्याएं
न्यूनतम समर्थन मूल्य का मुद्दा
विजय वडेट्टीवार ने विधानसभा में न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी को लेकर सरकार पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा घोषित एमएसपी किसानों की वास्तविक लागत से बहुत कम है। खाद, बीज, मजदूरी और अन्य खर्चों को जोड़ें तो किसान को घाटा ही होता है। ऐसे में सरकार को एमएसपी बढ़ाने के साथ-साथ इसकी पूरी मात्रा में खरीद की गारंटी देनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में सोयाबीन की खेती बड़े पैमाने पर होती है, लेकिन सरकारी खरीद केंद्रों की कमी के कारण किसानों को मजबूरन बाजार में अपनी फसल औने-पौने दामों पर बेचनी पड़ती है। बिचौलिए इसका फायदा उठाकर किसानों का शोषण करते हैं।
भंडारण और प्रसंस्करण की कमी
वडेट्टीवार ने भंडारण सुविधाओं की कमी पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि किसानों के पास फसल कटाई के बाद उसे सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त गोदाम नहीं हैं। इससे फसल खराब हो जाती है और किसान को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। सरकार को हर तहसील स्तर पर आधुनिक भंडारण केंद्र बनाने चाहिए।
साथ ही उन्होंने सोयाबीन प्रसंस्करण इकाइयों की कमी का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अगर राज्य में ही सोयाबीन से तेल और अन्य उत्पाद बनाने की इकाइयां लगाई जाएं तो किसानों को बेहतर दाम मिल सकते हैं और रोजगार के भी नए अवसर पैदा होंगे।
बीमा योजना की खामियां
फसल बीमा योजना को लेकर भी वडेट्टीवार ने कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं, सूखे या बाढ़ के कारण जब किसानों की फसल बर्बाद हो जाती है, तब भी उन्हें समय पर बीमा का पैसा नहीं मिलता। प्रक्रिया इतनी जटिल है कि अधिकतर किसान हार मानकर बैठ जाते हैं।
उन्होंने मांग की कि बीमा योजना को पारदर्शी और सरल बनाया जाए। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत मिलने वाली राशि में बढ़ोतरी की जाए और दावों का निपटारा तीन महीने के भीतर सुनिश्चित किया जाए।
कर्ज और आत्महत्याओं का संकट
विधानसभा में विजय वडेट्टीवार ने किसानों की आत्महत्याओं का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा कि विदर्भ और मराठवाड़ा में कर्ज के बोझ तले दबे किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। सोयाबीन की फसल से उचित मूल्य न मिलने के कारण किसान कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं।
उन्होंने सरकार से किसानों के कर्ज माफी की मांग की और कहा कि जो किसान आत्महत्या कर चुके हैं, उनके परिवारों को तत्काल मुआवजा दिया जाना चाहिए। साथ ही बैंकों को निर्देश दिया जाए कि वे किसानों को कम ब्याज दर पर कर्ज उपलब्ध कराएं।
सरकार का जवाब और विपक्ष की प्रतिक्रिया
सरकार की सफाई
वडेट्टीवार के आरोपों पर कृषि मंत्री ने सदन में जवाब देते हुए कहा कि सरकार किसानों के हित में लगातार काम कर रही है। पिछले साल की तुलना में इस बार सोयाबीन की खरीद में बढ़ोतरी की गई है। साथ ही नई योजनाओं के तहत किसानों को आर्थिक मदद भी दी जा रही है।
मंत्री ने कहा कि भंडारण और प्रसंस्करण इकाइयों के लिए निजी निवेश को बढ़ावा दिया जा रहा है। जल्द ही कई नए केंद्र शुरू होंगे। फसल बीमा के दावों के निपटारे में तेजी लाने के लिए डिजिटल व्यवस्था लागू की जा रही है।
विपक्ष की एकजुटता
विधानसभा में अन्य विपक्षी सदस्यों ने भी वडेट्टीवार का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि सरकार सिर्फ घोषणाएं करती है, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं आता। किसानों की हालत दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है और सरकार आंखें मूंदे बैठी है।
विपक्ष ने मांग की कि विधानसभा में एक विशेष समिति बनाई जाए जो सोयाबीन किसानों की समस्याओं का गहराई से अध्ययन करे और ठोस समाधान सुझाए।
आगे की राह
तत्काल समाधान की जरूरत
विजय वडेट्टीवार ने अपने भाषण के अंत में कहा कि सोयाबीन किसानों की समस्याओं का तुरंत समाधान जरूरी है। सरकार को केवल आश्वासन देने की बजाय ठोस कदम उठाने होंगे। किसानों को उचित दाम, सुरक्षित भंडारण, आसान कर्ज और समय पर बीमा राशि मिलनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि अगर सरकार अभी भी नहीं चेती तो आने वाले समय में स्थिति और भी गंभीर हो सकती है। किसान आंदोलन पर उतर सकते हैं और पूरे राज्य में अशांति फैल सकती है।
किसान संगठनों की भूमिका
किसान संगठनों ने भी वडेट्टीवार के बयान का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि विधानसभा में उनकी आवाज उठाई गई है, यह सकारात्मक कदम है। अब उन्हें उम्मीद है कि सरकार गंभीरता से इस मुद्दे पर विचार करेगी।
संगठनों ने घोषणा की है कि अगर एक महीने के भीतर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करेंगे।
महाराष्ट्र विधानसभा में विजय वडेट्टीवार की यह चर्चा एक बार फिर सोयाबीन किसानों की समस्याओं को सुर्खियों में ले आई है। अब देखना यह है कि सरकार इस दिशा में क्या ठोस कदम उठाती है और किसानों को वास्तव में राहत मिलती है या नहीं।