हिंदू समाज का अस्तित्व दुनिया की सुरक्षा: मोहन भागवत का मणिपुर में विचार

Manipur RSS News: मोहन भागवत का मणिपुर में बयान, हिंदू न रहेगा तो दुनिया नहीं रहेगी
Manipur RSS News: मोहन भागवत का मणिपुर में बयान, हिंदू न रहेगा तो दुनिया नहीं रहेगी (File Photo)
मोहन भागवत ने मणिपुर में हिंदू समाज के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि भारत एक अमर सभ्यता है और उसका आधार हिंदू समाज है। यदि हिंदू नहीं रहेगा तो दुनिया भी नैतिक मार्गदर्शन खो देगी। उन्होंने सामाजिक एकता और सभ्यता की रक्षा को अनिवार्य जिम्मेदारी बताया।
नवम्बर 22, 2025

हिंदू समाज का अस्तित्व दुनिया की सुरक्षा: मोहन भागवत का मणिपुर में विचार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने मणिपुर में आयोजित जनजातीय नेताओं के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक के दौरान हिंदू समाज के वैश्विक महत्व पर गहरी टिप्पणी की। उनका यह वक्तव्य केवल धार्मिक भावनाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता, बल्कि भारतीय सभ्यता और उसके निरंतर अस्तित्व पर विचार प्रस्तुत करता है। भागवत का कहना था कि यदि हिंदू समाज नहीं रहेगा, तो दुनिया भी समाप्त हो जाएगी। यह कथन एक चेतावनी की तरह सामने आता है, जो इस समाज की भूमिका, जिम्मेदारी और वैश्विक महत्व पर प्रकाश डालता है।

भारत एक अमर सभ्यता

मोहन भागवत ने अपने संबोधन में स्पष्ट किया कि भारत केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि एक अमर समाज और सभ्यता का नाम है। उन्होंने कहा कि इतिहास में अनेक शक्तिशाली साम्राज्य आए और मिट गए। यूनान, रोम और मिस्र जैसी महानतम सभ्यताएँ अपने उत्कर्ष के बाद आज अतीत बन गईं, लेकिन भारत की सभ्यता नष्ट नहीं हुई। इसका प्रमुख कारण, भागवत के अनुसार, यहाँ का सामाजिक ढांचा और हिंदू समाज द्वारा बनाया गया बुनियादी नेटवर्क है, जो इस सभ्यता की आत्मा को जीवित रखता है।

धर्म का वास्तविक मार्गदर्शन

भागवत ने जोर देते हुए कहा कि हिंदू समाज धर्म का वास्तविक अर्थ समझाता है। उनके अनुसार, वैश्विक स्तर पर नैतिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन हिंदू समाज ही देता रहा है। धर्म के इस मूल स्वरूप का संबंध किसी पंथ या पूजा पद्धति से नहीं, बल्कि मूल्यों, कर्तव्यों और सत्य को स्वीकार करने से है। भागवत ने कहा कि यह केवल धार्मिक अधिकार नहीं, बल्कि हिंदू समाज का ईश्वर प्रदत्त कर्तव्य है कि वह दुनिया को सत्य और नैतिक मार्ग पर चलने का मार्ग दिखाए।

ब्रिटिश साम्राज्य का अंत और भारतीय संघर्ष

संघ प्रमुख ने अपने उदाहरणों में इतिहास की उस अवधि का उल्लेख किया जब ब्रिटिश साम्राज्य को विश्व का सबसे शक्तिशाली शासन माना जाता था। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश शासन का सूर्य कभी अस्त नहीं होता, ऐसा कहा जाता था। लेकिन भारत की मिट्टी पर उसी साम्राज्य का सूर्य अस्त हुआ। यह एक दिन में नहीं हुआ, बल्कि 90 वर्षों के कठोर संघर्ष का परिणाम था। 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1947 तक भारतीय समाज ने अपनी आवाज कभी दबने नहीं दी। कभी यह संघर्ष धीमा पड़ा, कभी तेज हुआ, लेकिन समाप्त नहीं हुआ। भागवत ने इसे समाज की सामूहिक इच्छा शक्ति का उदाहरण बताया।

समाज की एकता ही समाधान

अपने भाषण में भागवत ने नक्सलवाद का उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया कि जब समाज किसी समस्या को समाप्त करने का निश्चय कर ले, तो उसका अंत निश्चित हो जाता है। उन्होंने कहा कि नक्सलवाद का अंत तभी संभव हो सका, जब समाज ने तय किया कि अब यह सहन नहीं किया जाएगा। यह उदाहरण बताता है कि समाज समस्या को पैदा भी कर सकता है, और उसका समाधान भी स्वयं ढूँढ सकता है।

आध्यात्मिक मूल्यों के संरक्षण की चुनौती

भागवत के बयान का एक गहरा पक्ष यह भी है कि आधुनिकता के बढ़ते प्रभाव के बीच भारतीय समाज अपने आध्यात्मिक मूल्यों को किस प्रकार सुरक्षित रखे। विज्ञान और आर्थिक प्रगति के बीच मनुष्य की सामाजिक और नैतिक चेतना कमजोर होती जा रही है। ऐसे में हिंदू समाज द्वारा स्थापित ‘धर्म’ का मूल सिद्धांत केवल पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि कर्तव्य, सत्य, परोपकार और आत्मानुशासन का मार्गदर्शन है। यही कारण है कि भागवत ने दुनिया के अस्तित्व को इन मूल्यों से जोड़ा।

विविधता में एकता की वास्तविक तस्वीर

भारत की शक्ति उसकी विविधता में निहित है। अनेक भाषाएँ, संस्कृतियाँ, परंपराएँ और समुदाय एक ही धारा में एक साथ बहते हैं। भागवत का संदेश यह इंगित करता है कि यदि यह एकता विच्छिन्न हो जाए, तो न केवल समाज कमजोर होगा, बल्कि सभ्यता का मार्गदर्शन भी समाप्त हो जाएगा। मणिपुर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों से यह संदेश देना, सामाजिक समरसता को प्राथमिकता देने का संकेत है।

संघ की भूमिका पर स्पष्टता

मोहन भागवत ने यह भी कहा कि संघ का उद्देश्य किसी के खिलाफ काम करना नहीं है। यह समाज को नष्ट करने के लिए नहीं, बल्कि उसे समृद्ध बनाने के लिए बनाया गया संगठन है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि संघ राजनीति नहीं करता और न ही किसी संगठन को रिमोट कंट्रोल से चलाता है। इसका काम केवल स्नेह, मित्रता और सामाजिक सद्भाव को विकसित करना है। समाज को मजबूत बनाना ही संघ का लक्ष्य है।

अघोषित स्वयंसेवक कौन?

भागवत ने कहा कि कोई भी व्यक्ति जो भारतीय सभ्यता और समाज की भलाई के लिए समर्पित भावना के साथ कार्य करता है, वह स्वतः ही संघ का अघोषित स्वयंसेवक है। यह समर्पण किसी संगठन से जुड़ने पर निर्भर नहीं करता, बल्कि कार्य, व्यवहार और उद्देश्य पर आधारित होता है।

सामाजिक समरसता और वर्तमान चुनौतियाँ

मणिपुर में चल रहे सामाजिक तनाव और जनजातीय संघर्ष की स्थिति पर इशारा करते हुए भागवत ने सामाजिक एकता की अपील की। उनका कहना था कि समाज के भीतर वैमनस्य ही उसकी कमजोरी बनता है। इसलिए सामाजिक एकता ही भविष्य को सुरक्षित बना सकती है। भारत एक विविधताओं का देश है, और यह विविधताएँ तभी सम्मानित रहेंगी जब समाज एक होकर आगे बढ़ेगा।

हिन्दू समाज की जिम्मेदारी और आज का युग

आज का समय वैश्विक परिवर्तन का समय है। विज्ञान, तकनीक और आधुनिक विचारों की धारा तेज़ी से आगे बढ़ रही है। लेकिन भागवत के अनुसार, इस परिवर्तनशील समय में भी समाज को अपने मूल्यों और कर्तव्य बोध को नहीं भूलना चाहिए। दुनिया में शांति, सत्य और नैतिकता की स्थापना का दायित्व हिंदू समाज पर है। यदि यह समाज कमजोर होगा या नष्ट होगा, तो दुनिया मार्गदर्शन से वंचित हो जाएगी।

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Asfi Shadab

Writer, thinker, and activist exploring the intersections of sports, politics, and finance.