राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने विश्व के हिंदू समाज को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि हम दुनिया का नेतृत्व करेंगे, लेकिन यह नेतृत्व शक्ति, धन या राजनीतिक प्रभुत्व के बल पर नहीं, बल्कि अपनी जीवन-पद्धति, आचरण और मूल्यों के माध्यम से होगा। यह बात उन्होंने भाग्यनगर यानी हैदराबाद के निकट कान्हा शांति वनम में आयोजित विश्व संगठक शिबिर 2025 के समापन समारोह में कही।
विश्व संगठक शिबिर का ऐतिहासिक आयोजन
यह पाँच दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100वें वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था। इस शिबिर में विश्वभर से हिंदू संगठनों के प्रतिनिधि, कार्यकर्ता और विचारक शामिल हुए। कान्हा शांति वनम में हजारों की संख्या में लोग एकत्रित हुए और सरसंघचालक के संबोधन को सुना। इस आयोजन ने संघ के शताब्दी वर्ष को और भी यादगार बना दिया।
डॉ. भागवत जी ने अपने संबोधन में स्पष्ट किया कि हिंदू समाज का लक्ष्य किसी पर अपना वर्चस्व स्थापित करना नहीं है। बल्कि हमारा उद्देश्य अपने जीवन-मूल्यों, धर्म, करुणा और निस्वार्थ सेवा के माध्यम से विश्व को प्रेरित करना है। उन्होंने कहा कि हिंदू जीवन-दृष्टि में वसुधैव कुटुम्बकम् का भाव निहित है, जो पूरी मानवता को एक परिवार मानता है।
हिंदू जीवन-पद्धति ही असली नेतृत्व
डॉ. भागवत जी ने जोर देकर कहा कि हिंदू समाज को अपने दैनिक जीवन में सत्य, अनुशासन, सह-अस्तित्व और सेवा को अपनाना होगा। यदि हम अपने आचरण से यह दिखा सकें कि नैतिकता और सेवाभाव से जीवन जीना संभव है, तो वही हमारा सबसे बड़ा योगदान होगा। उन्होंने कहा कि दुनिया को हमारी बातों से नहीं, बल्कि हमारे काम और व्यवहार से प्रेरणा मिलनी चाहिए।
सरसंघचालक ने यह भी कहा कि आज दुनिया में अनेक समस्याएं हैं। युद्ध, हिंसा, असमानता, पर्यावरण संकट और नैतिक पतन चारों ओर दिखाई देता है। ऐसे समय में हिंदू जीवन-दर्शन एक विकल्प प्रस्तुत करता है। यह दर्शन प्रकृति के साथ सामंजस्य, मानवता के प्रति करुणा और धर्म के पालन पर आधारित है। डॉ. भागवत जी ने कहा कि यदि हिंदू समाज इन मूल्यों को अपने जीवन में उतारे, तो दुनिया अपने आप हमारी ओर देखने लगेगी।
वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना
डॉ. भागवत जी ने वसुधैव कुटुम्बकम् के सिद्धांत को विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म किसी एक समुदाय, देश या क्षेत्र तक सीमित नहीं है। यह पूरे विश्व को एक परिवार मानता है। इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हम अपने व्यवहार से यह संदेश दें कि हम सबके कल्याण की कामना करते हैं। उन्होंने कहा कि हिंदू समाज को स्वार्थ से ऊपर उठकर विश्व-कल्याण की भावना से काम करना चाहिए।
सरसंघचालक ने यह भी स्पष्ट किया कि नेतृत्व का मतलब यह नहीं है कि हम दूसरों पर शासन करें। बल्कि नेतृत्व का अर्थ है कि हम अपने आदर्श आचरण से दूसरों को राह दिखाएं। उन्होंने कहा कि हिंदू समाज यदि अपनी परंपराओं, संस्कारों और मूल्यों को जीवित रखे, तो यही हमारी सबसे बड़ी ताकत होगी।
विश्व को हिंदू मूल्यों की जरूरत
डॉ. भागवत जी ने कहा कि आज की दुनिया भौतिकवाद, उपभोक्तावाद और स्वार्थ से ग्रस्त है। लोग धन और सुख की अंधी दौड़ में अपने नैतिक मूल्यों को खो रहे हैं। ऐसे में हिंदू जीवन-दर्शन एक संतुलित और स्वस्थ जीवन का मार्ग दिखाता है। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म में त्याग, सेवा, सादगी और संयम को महत्व दिया गया है। यदि हम इन मूल्यों को अपनाएं, तो न केवल हमारा जीवन सुखी होगा, बल्कि हम दूसरों के लिए भी प्रेरणा बनेंगे।
हिंदू समाज के लिए आह्वान
सरसंघचालक ने विश्वभर के हिंदुओं से आह्वान किया कि वे अपने दैनिक जीवन में धर्म का पालन करें। उन्होंने कहा कि हमें अपने घरों, समाज और कार्यस्थलों पर सत्य, ईमानदारी, अनुशासन और सेवा का पालन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि हर हिंदू अपने जीवन में इन मूल्यों को अपनाए, तो हम सामूहिक रूप से एक शक्तिशाली और आदर्श समाज बना सकते हैं।
डॉ. भागवत जी ने युवाओं को विशेष संदेश देते हुए कहा कि वे अपनी जड़ों से जुड़े रहें। आधुनिकता को अपनाना गलत नहीं है, लेकिन अपनी संस्कृति और परंपराओं को भूलना ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी को अपने धर्म, इतिहास और संस्कारों को समझना और अपनाना चाहिए। तभी हम भविष्य में मजबूत समाज का निर्माण कर सकते हैं।
संघ की शताब्दी का महत्व
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने पर डॉ. भागवत जी ने कहा कि यह गर्व और संकल्प दोनों का अवसर है। उन्होंने कहा कि पिछले 100 वर्षों में संघ ने समाज को संगठित करने, राष्ट्रभक्ति जगाने और सेवा का कार्य किया है। अब अगले 100 वर्षों में हमें विश्व स्तर पर हिंदू मूल्यों को स्थापित करना है।
उन्होंने कहा कि विश्व संगठक शिबिर जैसे आयोजन इसी दिशा में एक कदम हैं। इस शिबिर में विश्वभर से आए प्रतिनिधियों ने अपने अनुभव साझा किए और भविष्य की योजनाओं पर चर्चा की। यह एकता और संगठन का प्रतीक है।
डॉ. मोहन भागवत जी का संदेश स्पष्ट है कि हिंदू समाज को शक्ति या धन के बल पर नहीं, बल्कि अपने जीवन-मूल्यों और आचरण के माध्यम से दुनिया का नेतृत्व करना है। वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना के साथ यदि हम सत्य, सेवा और करुणा को अपनाएं, तो हम न केवल अपने समाज को मजबूत बनाएंगे, बल्कि पूरी मानवता के लिए प्रेरणा बनेंगे। विश्व संगठक शिबिर 2025 इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और संघ के शताब्दी वर्ष में यह संदेश और भी प्रासंगिक हो जाता है।