नेपाल से आई बहुओं के निर्वाचन-पंजीकरण में उलझन: जन्म प्रमाण पत्र और नागरिकता नियमों पर स्पष्टता क्यों नहीं

SIR in UP: भारत-नेपाल रोटी-बेटी संबंध में निर्वाचन पंजीकरण को लेकर उलझन
SIR in UP: भारत-नेपाल रोटी-बेटी संबंध में निर्वाचन पंजीकरण को लेकर उलझन (File Photo)
नेपाल से भारत आई बहुओं को निर्वाचन-पंजीकरण में जन्म प्रमाण पत्र और नागरिकता-सत्यापन की अस्पष्ट प्रक्रिया के कारण गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। बीएलओ स्पष्ट दिशा-निर्देश न होने से आवेदन स्वीकार नहीं कर रहे। स्थानीय लोगों ने जिला प्रशासन से स्पष्ट नियम लागू करने की मांग की है।
नवम्बर 21, 2025

नेपाल से भारत आई बहुओं के निर्वाचन-पंजीकरण में उलझन पर प्रशासन चुप क्यों

भारत और नेपाल के बीच सदियों से रोटी-बेटी का गाढ़ा संबंध रहा है। उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती ज़िलों में तो यह परंपरा आज भी उतनी ही सामान्य और सहज है जितनी दशकों पहले हुआ करती थी। ऐसे में नेपाल से विवाह कर भारत आने वाली बहुएं सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर तो भारतीय परिवारों में पूर्ण रूप से सम्मिलित हो जाती हैं, परंतु सरकारी दस्तावेज़ों और विशेष रूप से निर्वाचन-पंजीकरण के मामले में इनके सामने गंभीर अवरोध उत्पन्न हो रहे हैं।

इन बहुओं की सबसे बड़ी समस्या ‘एसआईआर’—अर्थात निर्वाचन सूची में सम्मिलित किए जाने की प्रक्रिया—को लेकर है। निर्वाचन आयोग के निर्देशों में विदेशी जन्म और नागरिकता-सत्यापन से जुड़े बिंदुओं की व्याख्या अस्पष्ट होने के कारण बीएलओ सहित निचले स्तर के अनेक कार्मिक उलझन में पड़े हुए हैं। परिणामस्वरूप नेपाल से आई महिलाएं, जिन्हें विवाह के बाद भारतीय नागरिकता के अधिकार मिलने चाहिए, आधार कार्ड तथा स्थानीय पहचान होने के बावजूद चुनावी सूची में नाम दर्ज नहीं करा पा रही हैं।

जन्म प्रमाण पत्र को लेकर असमंजस

निर्वाचन आयोग के गणना-पत्र में स्पष्ट निर्देश है कि यदि कोई व्यक्ति भारत के बाहर जन्मा है तो उसे भारतीय मिशन द्वारा जारी जन्म-पंजीकरण प्रमाण पत्र संलग्न करना आवश्यक होगा। परंतु वास्तविक स्थिति यह है कि भारत-नेपाल सीमा पर बसे परिवारों की अधिकांश बहुएं नेपाल के ग्रामीण क्षेत्रों से आती हैं, जहां जन्म-पंजीकरण की व्यवस्थित सरकारी प्रणाली कई वर्षों पहले तक सक्रिय रूप से लागू नहीं थी।

ऐसी स्थिति में अनेक महिलाओं के पास नेपाल का जन्म प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं है। अब समस्या यह है कि क्या उन्हें भारतीय मिशन—जैसे भारत का नेपाल स्थित दूतावास या वाणिज्य दूतावास—से प्रमाणपत्र लेना होगा, या नेपाल की स्थानीय निकाय से दस्तावेज़ प्राप्त करना वैध माना जाएगा, इस पर कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश उपलब्ध नहीं है।

इसी अस्पष्टता का लाभ अथवा दंड सीधे-सीधे बीएलओ स्तर पर देखने को मिल रहा है, जहां अधिकारी किसी भी दस्तावेज़ को पर्याप्त मान्य नहीं मान रहे। इससे पंजीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ होने से पहले ही अटक जाती है।

स्थानीय उदाहरण और महिलाओं की पीड़ा

जमुनहा नगर पंचायत रुपईडीहा निवासी जुवंती, दर्जिनपुरवा लखैया ब्लॉक नवाबगंज निवासी रूबी, तथा कई अन्य महिलाएं—जैसे रिंकी, अर्चना, पूजा—सभी की परिस्थिति लगभग एक जैसी है। ये महिलाएं वर्षों से भारत में रह रही हैं, परिवार और समाज में अपनी भूमिका निभा रही हैं परंतु चुनावी पहचान पत्र बनवाने के लिए इनके आवेदन लगातार लंबित हो रहे हैं।

इन परिवारों का कहना है कि आधार कार्ड, विवाह प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र और पति की पहचान के बावजूद बीएलओ इन्हें पर्याप्त मान्यता नहीं देते। इससे महिलाएं सरकारी सुविधाओं, राजनैतिक अधिकारों और स्थानीय स्तर पर निर्णय-प्रक्रियाओं में भागीदारी से वंचित रह जाती हैं।

बीएलओ की उलझन और प्रशिक्षण की कमी

बीएलओ, निर्वाचन प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण आधारस्तंभ माना जाता है। परंतु विदेशी-जन्म और विवाहजनित नागरिकता से संबंधित मामलों में उनकी समझ सीमित रहती है। निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशों में ‘पंजीकरण/नागरिकीकरण द्वारा प्राप्त भारतीय नागरिकता’ का उल्लेख तो है, परंतु यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि विवाह-आधारित नागरिकता कैसे सत्यापित की जाए और किन दस्तावेज़ों को बाध्यकारी माना जाए।

कई बीएलओ मानते हैं कि जब तक स्पष्ट आदेश नहीं दिए जाते, वे किसी भी जोखिम वाले दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते। यह सतर्कता समझ में आती है, परंतु इससे वास्तविक आवेदकों के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

भारत-नेपाल संबंध और संवैधानिक अधिकार

भारत-नेपाल मैत्री संधि और ऐतिहासिक सामाजिक-सांस्कृतिक जुड़ाव को देखते हुए यह अपेक्षा की जाती है कि दोनों देशों की नागरिकों की पारिवारिक-विवाह संबंधी आवाजाही को सहजता मिले। विवाह के पश्चात भारतीय संविधान में स्पष्ट है कि महिला नागरिकता-प्रक्रिया आरंभ करने की पात्र होती है।

ऐसी स्थिति में स्थानीय प्रशासन का दायित्व है कि वह स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करे ताकि आयोग के नियमों की स्थानीय व्याख्या में भिन्नता समाप्त हो। यदि राज्य सरकार या जिला प्रशासन यह स्पष्ट कर दे कि विवाह-आधारित नागरिकता के मामलों में कौन-से दस्तावेज़ मान्य हैं, तो बहनों की यह उलझन तत्काल समाप्त हो सकती है।

स्थानीय लोगों की मांग

बहराइच, नानपारा, रिसिया, मटेरा, लखनऊ सहित सीमांत क्षेत्र के ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि नेपाल से आई बहुओं के निर्वाचन-पंजीकरण हेतु अनिवार्य दस्तावेज़ों की सूची सार्वजनिक की जाए। साथ ही बीएलओ को विशेष प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वे विवाह-आधारित नागरिकता के मामलों को मानक रूप से निपटा सकें।

स्थानीय नागरिकों का कहना है कि प्रशासनिक अस्पष्टता के कारण वर्षों से बसे-बसाए परिवारों की महिलाएं अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग नहीं कर पा रही हैं। वे चाहती हैं कि इस समस्या को नीति-स्तर पर गंभीरता से लेते हुए त्वरित समाधान निकाला जाए।

समाधान की दिशा

यह स्पष्ट है कि समस्या नियमों की कमी नहीं, बल्कि उनके व्यवहारिक अनुपालन को लेकर है। यदि जिला प्रशासन निम्न उपाय अपनाए, तो स्थिति सहज हो सकती है—

  1. नेपाल से आई बहुओं हेतु विशेष दिशानिर्देश जारी किए जाएं

  2. यह स्पष्ट किया जाए कि कौन-सा जन्म प्रमाण पत्र मान्य है

  3. विवाह-प्रमाण, पति की नागरिकता और स्थानीय निवास को मान्यता दी जाए

  4. बीएलओ को विदेशी-जन्म और नागरिकता कानूनों का प्रशिक्षण दिया जाए

  5. दस्तावेज़ सत्यापन हेतु एक विशेष सेल बनाया जाए

इन कदमों के बाद नेपाल से भारत आई बहुओं के लिए मतदान सूची में नाम दर्ज कराना कठिन नहीं रहेगा और वे भी भारतीय लोकतंत्र की प्रक्रिया में बराबरी से सम्मिलित हो सकेंगी।

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