फतेहपुर में छठ महापर्व पर आस्था का सागर उमड़ा
फतेहपुर में इस वर्ष का छठ महापर्व 2025 श्रद्धा, आस्था और उल्लास के साथ मनाया गया। सोमवार की शाम डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के लिए हजारों श्रद्धालु नदियों और तालाबों के किनारे एकत्र हुए। गंगा और यमुना तटों पर आस्था का अद्भुत दृश्य देखने को मिला, जहां महिलाएं सिर पर पूजा की टोकरी लिए सूर्य देव की उपासना में लीन थीं।
व्रती महिलाओं ने परंपरागत गीत गाते हुए “पहिले पहिल हम कईनी छठी मइया व्रत तोहार” और “कांच ही बांस के बहंगिया” जैसे लोकगीतों से पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया। हर गली और मोहल्ले से छठ गीतों की गूंज सुनाई दी, जिससे पूरा फतेहपुर भक्ति और उमंग का केंद्र बन गया।

घाटों पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
सोमवार को छठ पूजा के तीसरे दिन शाम के समय शहर के सभी प्रमुख घाटों पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा।
नगर मुख्यालय के शांति नगर स्थित श्री बांकेबिहारी मंदिर परिसर के गंगा सरोवर घाट पर महिलाओं की भारी भीड़ रही। श्रद्धालु जल में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हुए अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना कर रहे थे।
कई परिवारों ने घरों में ही छोटे-छोटे तालाब और गड्ढे बनाकर उन्हें अस्थायी घाट का रूप दिया और वहीं पूजा-अर्चना की। पीएसी और पुलिस लाइन परिसर में भी मिनी पोखर तैयार कर पूजा की गई।
जिला प्रशासन की ओर से सुरक्षा, प्रकाश व्यवस्था, बैरिकेडिंग और सफाई के पुख्ता इंतजाम किए गए। हर घाट पर पुलिस बल, गोताखोर और महिला सुरक्षा कर्मी तैनात रहे ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।

खरना के साथ शुरू हुई भक्ति की यात्रा
रविवार को छठ महापर्व का दूसरा दिन ‘खरना’ पूरे विधि-विधान से संपन्न हुआ। व्रतियों ने स्नान के बाद गुड़-चावल की खीर और घी लगी रोटी बनाकर छठी मैया को भोग लगाया। इसके बाद प्रसाद को परिवार और पड़ोसियों में बांटा गया।
खरना के साथ ही 24 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हुआ, जो मंगलवार सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद संपन्न होगा।
सूर्य उपासना और लोक परंपरा का संगम
छठ महापर्व भारतीय संस्कृति में सूर्य देव और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं जल में खड़े होकर सूर्य की आराधना करती हैं और जीवन में सुख, स्वास्थ्य, संतान की दीर्घायु और समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।
भगवान भास्कर की उपासना के इस पर्व में सबसे पहले अस्ताचलगामी सूर्य (डूबते सूर्य) को अर्घ्य दिया जाता है, जबकि दूसरे दिन उदीयमान सूर्य (उगते सूर्य) को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। यह परंपरा इस विश्वास को दर्शाती है कि जीवन के हर चरण में संतुलन और श्रद्धा आवश्यक है।
छठ महापर्व: पर्यावरण और समानता का संदेश
छठ महापर्व केवल धार्मिक आस्था का नहीं बल्कि पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक समानता का संदेश भी देता है। इस पर्व में अमीर-गरीब, उच्च-निम्न सभी एक ही घाट पर एक साथ पूजा करते हैं, जिससे समाज में सद्भाव और एकता का प्रतीक झलकता है।
पूजा के दौरान प्रयोग की जाने वाली सामग्री — जैसे गन्ना, नारियल, केला, सूप, दीपक और मिट्टी के बर्तन — सभी प्राकृतिक तत्व हैं। यह पर्व प्रकृति के साथ सामंजस्य की भावना को बढ़ावा देता है।
छठी मइया: सूर्य देव की बहन और बाल संरक्षण की प्रतीक
छठी मइया, जिन्हें षष्ठी देवी भी कहा जाता है, सूर्य देव की बहन मानी जाती हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार, छठी मइया बालकों की रक्षा करती हैं और मातृत्व का प्रतीक हैं।
बालक के जन्म के छठे दिन घरों में छठी मइया की पूजा-अर्चना की परंपरा इसी कारण से निभाई जाती है।
यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सृष्टि चक्र और जीवन के निरंतर प्रवाह का भी प्रतीक है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देना जीवन के संघर्षों को स्वीकारने की भावना है, जबकि उगते सूर्य की पूजा नए उत्साह और आशा का प्रतीक है।
फतेहपुर में दिखी भक्ति और अनुशासन की मिसाल
गंगा घाट, ओम घाट, भृगुधाम भिटौरा और बांकेबिहारी मंदिर सरोवर पर श्रद्धालुओं की भीड़ के बावजूद अनुशासन और स्वच्छता बनी रही।
निर्मला पांडेय, मंजू सिंह, माधुरी सिंह, ज्योति साहू जैसी सैकड़ों महिलाओं ने डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया। वहीं, पुरुष श्रद्धालु उनके साथ जल में खड़े होकर मंत्रोच्चार करते नजर आए।
निष्कर्ष: छठ पूजा—आस्था, अनुशासन और प्रकृति के प्रति समर्पण का पर्व
फतेहपुर में छठ महापर्व ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि भारतीय संस्कृति की जड़ें कितनी गहरी हैं। यह केवल व्रत या परंपरा नहीं, बल्कि मानव और प्रकृति के सहअस्तित्व की सजीव अभिव्यक्ति है।
छठ पूजा वह पर्व है जो हमें सिखाता है —
“प्रकृति की पूजा ही मानवता की सबसे बड़ी आराधना है।”