सुप्रीम कोर्ट ने जेल में तुच्छ देरी पर जताई कड़ी नाराजगी, अधिकारियों पर लापरवाही का आरोप

Supreme Court Order: सुप्रीम कोर्ट ने जेल में 28 दिन की देरी पर जताई कड़ी नाराजगी
Supreme Court Order: सुप्रीम कोर्ट ने जेल में 28 दिन की देरी पर जताई कड़ी नाराजगी (File Photo)
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में अधिकारी की लापरवाही के कारण आरोपी की जेल में 28 दिन की देरी पर कड़ी नाराजगी जताई। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मामूली त्रुटि के आधार पर आदेश की अवहेलना अनुचित है और ADJ से स्पष्टीकरण माँगा गया। अगली सुनवाई 8 दिसंबर को होगी।
नवम्बर 22, 2025

सुप्रीम कोर्ट का कठोर रुख

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक बेहद गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि अदालत के आदेश में तुच्छ त्रुटि का हवाला देकर उसकी अवहेलना करना पूरी तरह अनुचित है। यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश की जेल प्रशासन द्वारा एक अंडरट्रायल कैदी की रिहाई में 28 दिनों की देरी के मामले में की गई, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जमानत आदेश में केवल एक उपधारा का उल्लेख छूट गया था। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने स्पष्ट किया कि मामूली त्रुटि के आधार पर किसी भी व्यक्ति को लंबे समय तक जेल में रखना न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है।

देरी के कारण और मामला

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, आफताब नामक आरोपी को उत्तर प्रदेश अवैध धर्मांतरण निषेध अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल 2025 को उसे जमानत दी थी। लेकिन आदेश में धारा 5(i) के स्थान पर केवल धारा 5 लिखी गई थी। इस मामूली त्रुटि के कारण जेल अधिकारियों ने उसकी रिहाई रोक दी, और वह 27 मई तक जेल में रहा।

इस देरी पर जून 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताते हुए यूपी सरकार को आफताब को 5 लाख रुपये की अंतरिम क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने गाजियाबाद के प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशंस जज को मामले की विस्तृत जांच का निर्देश दिया।

जांच रिपोर्ट और अदालत की प्रतिक्रिया

17 नवंबर 2025 को मामले की सुनवाई के दौरान, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने जांच रिपोर्ट का वह हिस्सा देखा जिसमें देरी के लिए अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (ADJ) जुनैद मुजफ्फर को पूरी तरह दोषी ठहराया गया था।

जस्टिस पारदीवाला ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से पूछा, “जब आदेश सुप्रीम कोर्ट का था, तो ADJ को दोषी कैसे ठहराया जा सकता है? वह केवल आदेश का पालन कर रहे थे। केवल धारा 5 की उपधारा (i) नहीं लिखी गई, तो आरोपी को 28 दिन जेल में क्यों रखा गया?”

ASG भाटी ने जवाब दिया कि मुद्दा तब सुलझा जब आरोपी ने आदेश संशोधन के लिए आवेदन दिया। इसके बावजूद बेंच ने इस तर्क को अस्वीकार किया।

कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच तनाव

जस्टिस के.वी. विश्वनाथन ने कहा कि यह कार्यपालिका का न्यायिक आदेशों पर बैठ जाना है। उन्होंने कहा कि यह बिल्कुल अस्वीकार्य है कि यदि सुप्रीम कोर्ट जमानत दे और कोई उपधारा छूट जाए, तो सरकार उसे लागू न करे। अपराध संख्या, आरोपी का नाम और अन्य विवरण स्पष्ट होने के बावजूद जेल प्रशासन की यह लापरवाही न्यायिक प्रक्रिया के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।

सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी का संदेश

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि न्यायिक आदेशों का पालन केवल प्रशासनिक कर्तव्य नहीं, बल्कि संवैधानिक दायित्व है। मामूली त्रुटि का बहाना बनाकर आदेश की अवहेलना करना न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। अदालत ने कहा कि इस प्रकार की लापरवाही भविष्य में किसी भी स्तर पर सहन नहीं की जाएगी और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

प्रशासनिक प्रक्रिया में खामियां

मामले की सुनवाई के दौरान यह भी उजागर हुआ कि जेल प्रशासन और संबंधित अधिकारियों ने आदेश को लागू करने में गंभीर लापरवाही बरती। केवल धारा 5 की उपधारा (i) का उल्लेख नहीं होने पर भी आरोपी को 28 दिन तक जेल में रखा गया। यह प्रशासनिक प्रक्रियाओं में गड़बड़ी और जवाबदेही की कमी को दर्शाता है।

न्यायपालिका और कार्यपालिका का संतुलन

जस्टिस के.वी. विश्वनाथन ने कहा कि कार्यपालिका का न्यायिक आदेशों पर बैठना स्वीकार्य नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है, और किसी भी अधिकारी की व्यक्तिगत निष्क्रियता पूरे प्रशासनिक तंत्र को प्रभावित कर सकती है।

आगे की सुनवाई और निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट ने ADJ जुनैद मुजफ्फर से लिखित स्पष्टीकरण मांगा है और मामले की अगली सुनवाई 8 दिसंबर को निर्धारित की है। इस सुनवाई में यह स्पष्ट होगा कि देरी का वास्तविक कारण क्या था और दोष किसका है। कोर्ट की यह कार्रवाई न्याय व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के प्रयास के रूप में देखी जा रही है।

ADJ से स्पष्टीकरण का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने ADJ जुनैद मुजफ्फर से लिखित स्पष्टीकरण माँगा, खासकर जांच रिपोर्ट के उस पैरा के संबंध में जिसमें उन्हें पूरी तरह दोषी ठहराया गया है। कोर्ट ने कहा कि कोई भी अधिकारी तुच्छ त्रुटि के कारण आदेश को नजरअंदाज नहीं कर सकता। रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया कि अधिकारी से स्पष्टीकरण शीघ्र मंगवाया जाए और मामला अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए। अगली सुनवाई 8 दिसंबर को होगी।

न्यायिक आदेशों का महत्व

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह स्पष्ट किया कि न्यायिक आदेशों का पालन अनिवार्य है। किसी भी मामूली त्रुटि को बहाना बनाकर आदेश की अवहेलना करना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। अदालत ने अधिकारियों को स्पष्ट चेतावनी दी कि भविष्य में इस प्रकार की लापरवाही को सहन नहीं किया जाएगा

यह मामला प्रशासनिक लापरवाही और न्यायिक आदेशों की अवहेलना के गंभीर परिणामों को उजागर करता है। सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया यह संकेत देती है कि न्यायपालिका अब प्रशासनिक त्रुटियों के प्रति शून्य सहनशीलता रखती है। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि न्यायिक आदेशों का पालन केवल कर्तव्य नहीं, बल्कि संवैधानिक दायित्व है।

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