उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग को लेकर एक बार फिर बड़ी कार्रवाई देखने को मिली है। गोंडा जिले की मुख्य चिकित्साधिकारी रश्मि वर्मा को उनके पद से हटा दिया गया है। यह फैसला तब लिया गया जब एक नवजात बच्चे की मौत को लेकर उनके द्वारा दिया गया बयान जनता और प्रशासन दोनों के लिए विवाद का विषय बन गया था। योगी आदित्यनाथ सरकार ने तत्काल प्रभाव से रश्मि वर्मा की जगह संतलाल पटेल को गोंडा का नया मुख्य चिकित्साधिकारी नियुक्त किया है।
सरकार ने लिया सख्त फैसला
शुक्रवार को चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की सचिव रितु माहेश्वरी ने औपचारिक आदेश जारी करते हुए इस बदलाव की घोषणा की। आदेश में साफ किया गया कि रश्मि वर्मा को तत्काल प्रभाव से गोंडा के सीएमओ पद से हटाया जा रहा है और उन्हें चिकित्सा स्वास्थ्य महानिदेशालय में जेडी ऑफिस से संबद्ध किया जाएगा। वहीं, प्रादेशिक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा संवर्ग के संयुक्त निदेशक ग्रेड के अधिकारी संतलाल पटेल, जो अब तक वरिष्ठ चिकित्साधिकारी के पद पर कार्यरत थे, को गोंडा का नया मुख्य चिकित्साधिकारी बनाया गया है।
लंबे समय से चल रही थीं शिकायतें
सूत्रों के अनुसार, रश्मि वर्मा के खिलाफ पिछले कई महीनों से शिकायतें आ रही थीं। विभागीय स्तर पर उनके कामकाज को लेकर नाराजगी की स्थिति बनी हुई थी। कई अधिकारियों और कर्मचारियों ने उनके व्यवहार और कार्यशैली को लेकर ऊपरी स्तर पर आपत्तियां दर्ज कराई थीं। इसी कारण उनके हटाए जाने की चर्चा लंबे समय से चल रही थी। हालांकि, प्रशासन ने तब तक कोई कदम नहीं उठाया था जब तक कि नवजात की मौत पर उनका विवादित वीडियो सामने नहीं आया।
वायरल हुआ विवादित वीडियो
पूरे मामले की जड़ एक वीडियो है जो पिछले महीने सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ था। गोंडा में एक बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे अस्पताल में एक नवजात बच्चे की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद जब मीडिया और जनता में हंगामा मचा तो सीएमओ रश्मि वर्मा ने एक ऐसा बयान दिया जो पूरी तरह से असंवेदनशील माना गया। वीडियो में वो हंसते हुए कहती नजर आईं कि “एक बच्चा मर गया तो उसके लिए सब आ गए, हजार जिंदा हैं तो वहां लड्डू खाने भी जाओ न।”
यह बयान सुनकर लोगों में आक्रोश फैल गया। सोशल मीडिया पर इस वीडियो को लेकर तीखी प्रतिक्रिया हुई और लोगों ने सीएमओ की इस असंवेदनशील टिप्पणी की कड़ी निंदा की।
माफी मांगने से नहीं बुझा गुस्सा
विवाद बढ़ता देख रश्मि वर्मा ने बाद में अपने बयान के लिए माफी मांगी थी। उन्होंने कहा था कि उनकी बात का गलत मतलब निकाला गया और उनका मकसद किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था। लेकिन तब तक मामला काफी आगे बढ़ चुका था। विरोधी दलों ने भी इस मुद्दे को उठाया और सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग की। सोशल मीडिया पर लोगों ने ट्रेंड चलाकर सीएमओ को हटाने की मांग की।
संतलाल पटेल होंगे नए सीएमओ
संतलाल पटेल प्रादेशिक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा संवर्ग के अनुभवी अधिकारी हैं। संयुक्त निदेशक ग्रेड के इस अधिकारी को गोंडा जिले की जिम्मेदारी सौंपी गई है। उम्मीद की जा रही है कि वे अपने अनुभव और कार्यशैली से जिले में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाएंगे और विभाग में अनुशासन बहाल करेंगे। उन्हें तत्काल प्रभाव से पदभार संभालने के निर्देश दिए गए हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की जरूरत
यह घटना उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति और अधिकारियों की संवेदनशीलता पर सवाल खड़े करती है। एक नवजात की मौत जैसे संवेदनशील मामले में किसी भी चिकित्साधिकारी का इस तरह का बयान देना न केवल अनुचित है बल्कि पूरी व्यवस्था पर सवाल उठाता है। गोंडा में बिना रजिस्ट्रेशन के अस्पताल चलने का मामला भी गंभीर है और इसकी जांच की मांग की जा रही है।
योगी सरकार का सख्त रुख
योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस मामले में तत्परता दिखाते हुए त्वरित कार्रवाई की है। सरकार ने यह साफ संदेश दिया है कि किसी भी तरह की लापरवाही या असंवेदनशील व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। खासतौर पर स्वास्थ्य विभाग जैसे संवेदनशील क्षेत्र में अधिकारियों से उम्मीद की जाती है कि वे जनता के प्रति संवेदनशील रहें और अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से लें।
जनता की प्रतिक्रिया
स्थानीय लोगों ने इस फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है कि रश्मि वर्मा का बयान बेहद दुर्भाग्यपूर्ण था और उन पर कार्रवाई जरूरी थी। हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि सिर्फ सीएमओ को हटाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि उस अस्पताल के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए जहां बिना रजिस्ट्रेशन के इलाज चल रहा था और जिसकी वजह से नवजात की मौत हुई।
आगे की राह
अब देखना यह होगा कि नए सीएमओ संतलाल पटेल गोंडा में स्वास्थ्य सेवाओं को कैसे सुधारते हैं और क्या वे उन समस्याओं का समाधान कर पाते हैं जो लंबे समय से चली आ रही हैं। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे अस्पतालों पर लगाम लगाई जाए और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
यह घटना एक अहम सबक है कि सार्वजनिक पदों पर बैठे अधिकारियों को अपने शब्दों और व्यवहार के प्रति सचेत रहना चाहिए। खासतौर पर जब मामला जीवन-मृत्यु का हो तो संवेदनशीलता और जिम्मेदारी दोनों ही अनिवार्य हैं।