गोरखपुर में मासूम की दर्दनाक मौत से मचा हंगामा
गोरखपुर, 28 अक्टूबर: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के बहीलपार गांव में सोमवार को एक छह वर्षीय मासूम बच्चे की झोलाछाप डॉक्टर द्वारा इंजेक्शन देने के बाद मौत हो गई। घटना के बाद गांव में तनाव फैल गया और आक्रोशित ग्रामीणों ने आरोपी के क्लिनिक के बाहर जमकर विरोध प्रदर्शन किया।
यह घटना न केवल चिकित्सा लापरवाही की भयावह तस्वीर पेश करती है, बल्कि ग्रामीण इलाकों में झोलाछाप डॉक्टरों की बढ़ती गतिविधियों पर भी गंभीर सवाल उठाती है।
10 हजार रुपये लेकर की गई ‘माइनर सर्जरी’ की तैयारी
मृतक बच्चे की पहचान परास (6 वर्ष), पुत्र रिंकू, निवासी जनपद बदायूं के पृथ्वीनंगला गांव के रूप में हुई है। परास अपनी मां के साथ गोरखपुर के बहीलपार गांव में अपने ननिहाल आया हुआ था।
परिवार ने उसके सिर पर उभरे गांठ के इलाज के लिए गांव के एक तथाकथित चिकित्सक के पास जाने का निर्णय लिया। परास के नाना राणा प्रताप के अनुसार, उस झोलाछाप ने “माइनर ऑपरेशन” करने के नाम पर 10 हजार रुपये की मांग की और किसी भी योग्य चिकित्सकीय प्रमाणन के बिना प्रक्रिया शुरू कर दी।
इंजेक्शन लगते ही बेहोश हुआ बच्चा
राणा प्रताप ने बताया, “मैंने उसे समझाया कि बच्चे को कोई सर्जरी न करे क्योंकि पहले लखनऊ के पीजीआई के डॉक्टरों ने भी इसे खतरनाक बताया था। लेकिन उसने नहीं सुना।”
जैसे ही झोलाछाप ने बच्चे को इंजेक्शन लगाया, वह अचानक बेहोश होकर गिर पड़ा। परिवार ने तुरंत उसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया, वहां से एक निजी अस्पताल और फिर बीआरडी मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर ले जाया गया। लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
गांव में फैला आक्रोश और क्लिनिक बंद कर फरार हुआ आरोपी
घटना की जानकारी मिलते ही गांव में अफरा-तफरी मच गई। सैकड़ों ग्रामीण आरोपी के क्लिनिक के बाहर जमा हो गए और नारेबाजी शुरू कर दी। स्थिति बिगड़ते देख आरोपी क्लिनिक में ताला लगाकर फरार हो गया।
गांव के लोगों ने प्रशासन से तत्काल कार्रवाई की मांग की। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह झोलाछाप लंबे समय से गांवों में अवैध रूप से इलाज कर रहा था और कई बार शिकायतें देने के बावजूद उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
पुलिस ने जांच शुरू की, पोस्टमार्टम से इनकार पर परिवार को सौंपा शव
सहजनवां थाना प्रभारी महेश चौबे ने बताया कि परिजनों ने पहले पोस्टमार्टम कराने से इनकार किया, जिसके बाद शव उन्हें सौंप दिया गया। उन्होंने कहा, “जैसे ही औपचारिक शिकायत दर्ज होगी, आरोपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।”
पुलिस का कहना है कि झोलाछाप का क्लिनिक फिलहाल बंद है और आरोपी की तलाश जारी है।
ग्रामीण स्वास्थ्य तंत्र पर उठे सवाल
यह घटना एक बार फिर बताती है कि ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण लोग आज भी झोलाछापों के सहारे इलाज करवा रहे हैं। गोरखपुर जैसे जिलों में सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों की दूरी और विशेषज्ञ डॉक्टरों की अनुपलब्धता आम नागरिकों को झोलाछापों की ओर धकेल रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार को न केवल ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना होगा, बल्कि झोलाछाप प्रथाओं पर सख्त निगरानी भी रखनी होगी।
प्रशासन के लिए चेतावनी की घंटी
गोरखपुर की यह घटना प्रशासन के लिए एक चेतावनी है कि स्वास्थ्य सुरक्षा के नाम पर चल रहे फर्जी क्लिनिक आम जनता की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। यदि इस दिशा में ठोस कार्रवाई नहीं की गई तो भविष्य में ऐसी घटनाएं और बढ़ सकती हैं।
छह वर्षीय परास की यह मौत केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था की असफलता का प्रतीक है। यह घटना बताती है कि ग्रामीण भारत में जागरूकता, स्वास्थ्य सुरक्षा और प्रशासनिक निगरानी की कितनी कमी है। अब सवाल है — क्या प्रशासन इस दर्दनाक सबक से कुछ सीखेगा?