दिल्ली से देशभर में फैलता प्रदूषण का संकट
सर्दियों की शुरुआत के साथ देश के कई शहरों की हवा भारी और जहरीली हो चुकी है। आसमान में धुंध की मोटी परत साफ दिखाई दे रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं, बल्कि उत्तर भारत के कई राज्यों में गंभीर स्तर तक पहुँच चुकी है।
प्रदूषण की बढ़ती परत और सरकार की उदासीनता
प्रदूषण नियंत्रण के लिए सरकारों ने योजनाएं बनाई हैं, लेकिन धरातल पर उनका असर नहीं दिखता। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि यह केवल राजनीतिक मुद्दा नहीं, जीवन का सवाल है। उन्होंने सरकारों पर आरोप लगाया कि उनके प्रयास दो महीने का दिखावा हैं।
क्लाउड सीडिंग जैसे प्रयोगों पर करोड़ों रुपये खर्च हुए, लेकिन इसका परिणाम शून्य रहा। हवा में नमी और ठहराव प्रदूषण को और बढ़ाते हैं। धूल, वाहन उत्सर्जन और कचरा जलाना इस समस्या के प्रमुख कारण हैं।
धूल और धुएं का घातक गठजोड़
दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, लखनऊ, पटना जैसे शहरों में धूल और धुआं मिलकर प्रदूषण की नई परत बना रहे हैं। हर नगर निगम प्रदूषण रोकने के नाम पर करोड़ों खर्च करता है, पर असर नगण्य है।
10 साल पुराने सर्वे पर नीति बन रही है जबकि हालात बदल चुके हैं। अब पराली जलाना मुख्य कारण नहीं, बल्कि वाहनों की संख्या और कूड़े के ढेर प्रदूषण के बड़े स्रोत बन गए हैं।
नागरिकों की भूमिका अहम
विशेषज्ञों का कहना है कि नागरिकों को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। घर से कूड़ा अलग-अलग निकालना, कंपोस्ट बनाना और वाहन का संयमित उपयोग प्रदूषण घटा सकता है।
हर कॉलोनी में गीले कचरे के निपटान की व्यवस्था होनी चाहिए। सूखे और गीले कचरे का पृथक्करण आधे प्रदूषण को घटा देगा।
सार्वजनिक परिवहन को बनाना होगा प्राथमिक विकल्प
यदि सरकारें पब्लिक ट्रांसपोर्ट को सुविधाजनक और जाममुक्त बनाएं तो लोग निजी वाहन का कम उपयोग करेंगे।
मेट्रो, बस और साइकिल ट्रैक का बेहतर नेटवर्क बनाया जाए तो वायु गुणवत्ता सुधर सकती है। जाम में फंसे वाहन प्रदूषण का बड़ा कारण हैं।
फैक्ट्रियों में स्वच्छ ईंधन की जरूरत
कई उद्योग अब भी कोयले या डीजल पर चल रहे हैं। सरकारें यदि स्वच्छ ईंधन को सस्ती दरों पर उपलब्ध कराएं तो प्रदूषण में बड़ी कमी आ सकती है। विज्ञान और तकनीक को इस दिशा में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रसार जरूरी
महानगरों में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जाना चाहिए। सब्सिडी और चार्जिंग सुविधाएं बढ़ाने से इन वाहनों का उपयोग लंबी दूरी के लिए भी संभव होगा।
फुटपाथ और पैदल मार्ग सुधरने से लोग छोटी दूरी पैदल तय करेंगे, जिससे वाहन उपयोग घटेगा।
निगरानी तंत्र को पारदर्शी बनाना होगा
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों पर अब सवाल उठ रहे हैं। कई बार प्रदूषण स्तर अधिक होते हुए भी एक्यूआई कम दिखाया जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि निगरानी के लिए स्वतंत्र और सटीक डेटा सिस्टम जरूरी है।
वृक्ष आधारित अर्थव्यवस्था समाधान बन सकती है
सुनीता नारायण के अनुसार, देश को वृक्ष आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना चाहिए। पेड़ों से न केवल ऑक्सीजन मिलेगी, बल्कि लोगों को आर्थिक लाभ भी होगा। यह कदम प्रदूषण के खिलाफ स्थायी उपाय साबित हो सकता है।
मिलजुलकर करनी होगी पहल
प्रदूषण घटाने के लिए सरकार और नागरिकों दोनों की भागीदारी जरूरी है। घरों में कचरा अलग करना, सड़क पर वाहनों का संयमित उपयोग और स्थानीय स्तर पर सफाई व्यवस्था को बेहतर करना ही असली समाधान है।
साफ हवा के लिए सामूहिक प्रयासों से ही नीले आसमान का सपना पूरा होगा।