विशेष संशोधित पुनरीक्षण अभियान के बीच बीएलओ की आत्महत्या का गंभीर मामला
पश्चिम बंगाल में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान के दौरान जलपाईगुड़ी ज़िले के माल बाज़ार क्षेत्र में एक महिला बूथ-स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) द्वारा आत्महत्या किए जाने की घटना ने राज्य प्रशासन और चुनाव आयोग, दोनों को कठघरे में खड़ा कर दिया है। बुधवार को भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने इस घटना का संज्ञान लेते हुए जिला चुनाव अधिकारी एवं जिलाधिकारी से विस्तृत प्रतिवेदन तत्काल उपलब्ध कराने का आदेश जारी किया।
यह घटना ऐसे समय सामने आई है, जब आयोग की चार सदस्यीय केंद्रीय टीम बंगाल में चार दिवसीय दौरे पर है और राज्य में चल रहे एसआईआर अभियान की प्रगति की समीक्षा कर रही है। इसी बीच एक बीएलओ का कथित कार्यभार-जनित तनाव में आत्महत्या करना एक गंभीर प्रशासनिक प्रश्न के रूप में उभर रहा है।
मुख्यमंत्री का आरोप और आयोग की तत्परता
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने घटना के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर कठोर टिप्पणी करते हुए सीधे तौर पर चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि दो माह की सीमित अवधि में भारी-भरकम पुनरीक्षण दायित्व थोपने से बीएलओ पर असामान्य दबाव पड़ रहा है और माल बाज़ार की महिला अधिकारी उसकी पहली शिकार बनी हैं।
मुख्यमंत्री के इस वक्तव्य के कुछ घंटे बाद ही निर्वाचन आयोग ने कोलकाता स्थित राज्य मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) कार्यालय को निर्देश दिया कि वह जलपाईगुड़ी जिला प्रशासन से विस्तृत प्रतिवेदन तत्काल प्राप्त करे। सीईओ कार्यालय के एक अधिकारी ने पुष्टि की कि प्रतिवेदन मिलते ही उसे नई दिल्ली स्थित आयोग मुख्यालय भेज दिया जाएगा।
मृतिका का परिचय और परिजनों के आरोप
पुलिस के अनुसार मृतिका की पहचान शांतिमणि एक्का के रूप में हुई है, जो माल बाज़ार के रंगामाटी ग्राम पंचायत क्षेत्र की निवासी थीं। हाल ही में उन्हें विशेष गहन पुनरीक्षण कार्य की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। बीएलओ के रूप में उन्हें मतदान क्षेत्र के घर-घर जाकर मतदाता विवरण-पत्र वितरित करने और भरे हुए प्रपत्र वापस लेने का दायित्व निभाना पड़ता था।
परिजनों का कहना है कि शांतिमणि पिछले कुछ सप्ताह से कार्यभार को लेकर अत्यंत तनावग्रस्त थीं और उन्हें यह कार्य अत्यधिक कठिन लग रहा था। परिवार का आरोप है कि लगातार बढ़ते दबाव और तय समय में लक्ष्यों को पूरा करने की बाध्यता ने उनके मानसिक संतुलन को प्रभावित किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने यह कदम उठाया।
पुनरीक्षण कार्य और बढ़ता दबाव
विशेष गहन पुनरीक्षण, निर्वाचन सूची को अद्यतन और त्रुटिरहित बनाने के लिए वर्ष में एक बार आयोजित किया जाने वाला प्रमुख अभियान है। इसमें प्रत्येक बीएलओ को क्षेत्रवार लक्ष्य निर्धारित कर दिए जाते हैं, और आयोग की ओर से समयबद्ध प्रगति रिपोर्ट की अपेक्षा की जाती है।
कई बीएलओ संगठन पहले भी यह मांग उठा चुके हैं कि जनसंख्या-घनत्व वाले क्षेत्रों में यह कार्य अत्यंत जटिल और श्रमसाध्य है। पुनरीक्षण प्रपत्रों का वितरण, संग्रह, घर-घर सत्यापन और डिजिटल प्रविष्टि—इन सभी चरणों में पर्याप्त समय और संसाधनों की आवश्यकता होती है।
परंतु इस वर्ष आयोग ने दो महीने की अपेक्षाकृत कम समय-सीमा तय की, जिसे लेकर बीएलओ समुदाय के भीतर असंतोष पहले से ही बना हुआ था। शांतिमणि एक्का की मौत ने इस असंतोष को मुख्यधारा की राजनीतिक और प्रशासनिक बहस में ला खड़ा किया है।
राज्य में दूसरा मामला भी दर्ज
गौरतलब है कि यह इस महीने राज्य में सामने आया पहला मामला नहीं है। पूर्व बर्धमान ज़िले के मेमारी क्षेत्र में एक अन्य महिला बीएलओ, नमिता हांसदा, की मृत्यु भी भारी कार्यभार और लगातार दौरा करने से उत्पन्न थकान के कारण मस्तिष्काघात से हुई थी। वह आंगनवाड़ी कार्यकर्ता थीं और बूथ संख्या 278 की बीएलओ के रूप में प्रतिनियुक्त थीं।
दोनों घटनाओं ने यह संकेत दिया है कि बीएलओ स्तर का श्रम प्रबंधन और प्रशासनिक संवेदनशीलता की समीक्षा तत्काल की जानी चाहिए, ताकि इस तरह की त्रासदियों की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।
आयोग की जवाबदेही और भविष्य की राह
यद्यपि निर्वाचन आयोग ने घटना का संज्ञान लेते हुए प्रतिवेदन तलब किया है, किंतु यह स्पष्ट है कि बीएलओ व्यवस्था में कार्यभार विभाजन और प्रबंधन को लेकर सुधार की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही है। विश्लेषकों का कहना है कि तकनीकी माध्यमों के प्रयोग, स्टाफ की संख्या बढ़ाने और प्रशिक्षण प्रक्रिया को सुदृढ़ करने से बीएलओ के तनाव को कम किया जा सकता है।
साथ ही राज्य सरकार और आयोग के बीच समन्वय का भी महत्व है, ताकि ऐसे संवेदनशील कार्यों की समयसीमा यथार्थपरक और मानवीय दृष्टिकोण से तय की जा सके।
शांतिमणि एक्का की मृत्यु केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि प्रशासनिक पुनर्विचार की आवश्यकता का गम्भीर संकेत भी है।
यह समाचार IANS एजेंसी के इनपुट के आधार पर प्रकाशित किया गया है।