2026 विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग की सक्रियता
एसआईआर तनाव के बीच ईवीएम नियमों में बदलाव
पश्चिम बंगाल में जारी एसआईआर विवाद इन दिनों राजनीतिक चर्चाओं के केंद्र में है. इसी तनाव के बीच चुनाव आयोग ने ऐसा फैसला लिया है जिसने राज्य की राजनीति को नई दिशा दे दी है. आयोग ने न केवल 2026 विधानसभा चुनाव की तैयारियों की आधिकारिक शुरुआत कर दी है बल्कि ईवीएम से जुड़े नियमों में भी ऐतिहासिक बदलाव कर दिया है. अब ईवीएम मशीनों पर उम्मीदवारों के नाम और पार्टी चिन्ह के साथ उनकी तस्वीर भी अनिवार्य रूप से लगाई जाएगी. यह बदलाव मतदाताओं को अधिक स्पष्टता देगा और मतपत्र जैसी पारदर्शिता ईवीएम में भी सुनिश्चित करेगा. अधिकारियों के मुताबिक यह कदम इसलिए उठाया गया ताकि किसी मतदाता को गलती से कोई गलत बटन न दबाना पड़े.
ईवीएम की चेकिंग और वोटिंग रिहर्सल अब नियमित
चुनाव आयोग ने शुक्रवार से पूरे राज्य में ईवीएम और वीवीपैट की फर्स्ट-लेवल चेकिंग शुरू कर दी है. कोलकाता में उप चुनाव आयुक्त ज्ञानेश भारती ने बैठक कर इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की रूपरेखा तय की. इस दौरान चेकिंग टीमों को इस बार विशेष ट्रेनिंग भी देने का निर्णय लिया गया, जिसमें तस्वीर वाले ईवीएम के नए सिस्टम की जानकारी साझा की जाएगी. आयोग ने स्पष्ट किया कि राज्य चुनाव आयोग के पास मशीनों की कोई कमी नहीं है, और सभी मशीनें सुरक्षित रूप से उपलब्ध हैं. रिहर्सल के दौरान बूथवार मॉक पोलिंग भी होगी, जिससे मतदान के दिन किसी तकनीकी बाधा की संभावना न्यूनतम हो जाएगी.ईवीएम नियमों में बदलाव पर राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं भी विभाजित दिखाई दे रही हैं. कुछ दल इसे जनता की सुविधा के लिए सराहनीय कदम बताते हैं, जबकि कुछ विपक्षी दलों का दावा है कि यह कदम केवल चुनावी छवि सुधारने के लिए लिया गया है. वहीं भाजपा और उसके सहयोगी दल इसे “सुधार और पारदर्शिता” का कदम बताते हुए चुनाव आयोग के फैसले को सही ठहरा रहे हैं.
बूथ संख्या में बड़ा इजाफा, मतदान प्रक्रिया होगी विस्तृत
आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि 2026 विधानसभा चुनाव में बूथों की संख्या में बड़ा इजाफा किया जाएगा. पिछले विधानसभा चुनाव 2021 में जहां 80,681 बूथ थे, वहीं 2026 के चुनाव में बूथों की संख्या बढ़कर लगभग 95,000 होने की संभावना है. इस बदलाव का उद्देश्य अधिक से अधिक मतदाताओं को सुविधा पहुंचाना, भीड़ कम करना और मतदान की गति को सुधारना है. बूथ बढ़ने से मतदान प्रतिशत भी बढ़ सकता है क्योंकि अधिक दूरी की परेशानी से बचा जा सकेगा.चुनाव आयोग का मानना है कि ईवीएम में उम्मीदवारों की तस्वीर शामिल करने से मतदान प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ेगी. निर्वाचन अधिकारियों का कहना है कि कई बार ग्रामीण क्षेत्रों या बुजुर्ग मतदाताओं को केवल पार्टी चिन्ह ही याद रहता है, लेकिन तस्वीर स्पष्ट पहचान सुनिश्चित करेगी. आयोग ने यह भी बताया कि इस बदलाव के बाद मतदान के दौरान गलती से गलत उम्मीदवार को वोट देने की संभावना काफी कम हो जाएगी.
ममता बनर्जी ने एसआईआर प्रक्रिया को बताया अव्यवस्थित और खतरनाक
दूसरी ओर, राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एसआईआर को लेकर लगातार विरोध जता रही हैं. उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को पत्र भेजकर इसे तुरंत रोकने की मांग की. ममता ने इसे अव्यवस्थित, बिना योजना और अधिकारियों व नागरिकों पर दबाव डालने वाला कदम बताया. उन्होंने दावा किया कि जिस तरीके से यह प्रक्रिया लागू की जा रही है, उससे प्रशासनिक तंत्र पर भारी बोझ पड़ेगा और नागरिकों को भी अनावश्यक तनाव झेलना पड़ेगा. ममता का आरोप है कि यह प्रक्रिया खतरनाक साबित हो सकती है और इसके परिणाम सरकारी मशीनरी और नागरिक अधिकारों पर गंभीर असर डाल सकते हैं. इस बीच आयोग का कहना है कि यह मतदाता सूची को अधिक सटीक बनाने की प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य मतदाताओं की संख्या की शुद्धता सुनिश्चित करना है.इस बार मतदानकर्मियों को नई मशीनों के उपयोग और उनकी तकनीकी विशेषताओं पर विस्तृत प्रशिक्षण दिया जा रहा है. प्रशिक्षण मॉड्यूल में फोटो प्रदर्शित करने वाली ईवीएम के साथ वीवीपैट से निकलने वाली पर्ची की जांच भी शामिल होगी. अधिकारियों का कहना है कि प्रशिक्षण में रियल टाइम डेमो और मॉक पोलिंग शामिल होंगे, ताकि मतदान के दिन किसी तकनीकी गड़बड़ी की स्थिति में त्वरित समाधान हो सके.
चुनावी राजनीति में बढ़ती गर्माहट के संकेत
बंगाल में यह टकराव केवल प्रशासनिक निर्णय तक सीमित नहीं है बल्कि यह आने वाले चुनावी परिदृश्य का संकेत भी दे रहा है. एसआईआर की कार्यवाही को लेकर राज्य सरकार और चुनाव आयोग में बढ़ती दूरी एक ऐसी चुनौती है जो चुनावी माहौल को और आक्रामक बनाएगी. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह विवाद 2026 के चुनावी समीकरणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. ममता बनर्जी जहां इसे जनता पर थोपे गए बोझ के रूप में पेश कर रही हैं, वहीं विपक्ष इसे पारदर्शिता और सुधार के लिए जरूरी कदम बता रहा है. दोनों पक्ष अपने-अपने राजनीतिक हितों के अनुरूप जनता को संदेश देने की कोशिश में जुटे हैं. इससे स्पष्ट है कि आने वाले वर्षों में चुनावी बहस और संघर्ष और भी तीखे होने वाले हैं.