चुनाव आयोग पर सीधे हमले से बंगाल की सियासत गरमाई
पश्चिम बंगाल की राजनीति एक नए विवाद के तूफान में फंस गई है जब राज्य सरकार के एक वरिष्ठ और प्रभावशाली मंत्री ने चुनाव आयोग के शीर्ष पदाधिकारी पर बिना नाम लिए गंभीर आरोप लगा दिए। कृषि और संसदीय कार्य मंत्री शोभनदेब चट्टोपाध्याय द्वारा दिए गए बयान ने राज्य के राजनीतिक माहौल को उबाल पर ला दिया है। मंत्री ने दावा किया कि चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर प्रश्न उठाना आवश्यक है, क्योंकि आयोग से जुड़े अहम पदों पर मुख्य चुनाव आयुक्त के करीबी रिश्तेदारों को लाभदायक नियुक्तियां दी गई हैं। यह कथन न केवल आरोपों की गूंज पैदा करता है, बल्कि चुनावी लोकतंत्र की विश्वसनीयता को लेकर भी चिंताएं बढ़ाता है।
चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल
भारत का चुनाव आयोग संवैधानिक रूप से स्वतंत्र संस्था माना जाता है जिसका उद्देश्य सत्ता से परे रहकर लोकतांत्रिक व्यवस्था को निष्पक्ष बनाए रखना होता है। शोभनदेब चट्टोपाध्याय ने कहा कि यदि इस संस्था के प्रमुख के निकट संबंधियों को लाभकारी पद दिए जा रहे हों, तो निष्पक्षता की उम्मीद कमजोर हो जाती है। उन्होंने वक्तव्य देते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति, जो नैतिकता समझौते में खो देता है या निजी लाभ के लिए झुक जाता है, वह लोकतंत्र को मजबूत करने की जगह कमजोर करता है। उनके इस बयान ने जनता, विपक्ष और राजनीतिक विश्लेषकों में नई बहस खड़ी कर दी है।

(Photo: IANS)
बीजेपी की पलटवार रणनीति
मंत्री के आरोपों पर भाजपा ने त्वरित प्रतिक्रिया दी। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद अर्जुन सिंह ने आरोपों को राजनीतिक प्रोपेगैंडा करार देते हुए चुनौती दी कि यदि मंत्री के पास सबूत हैं तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट में यह मुद्दा उठाना चाहिए। उनका कहना है कि केवल बयानबाजी करके चुनाव आयोग की साख को गिराने का प्रयास अस्वीकार्य है। भाजपा ने यह भी दावा किया कि चट्टोपाध्याय का बयान तृणमूल कांग्रेस की बेचैनी और डर को उजागर करता है, क्योंकि विशेष गहन संशोधन प्रक्रिया से फर्जी मतदाताओं के नाम हटाए जाने की संभावना है।

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घुसपैठ का मुद्दा और TMC की आशंकाएं
बीजेपी के राज्य महासचिव और पत्रकार से नेता बने जगन्नाथ चट्टोपाध्याय ने आरोप लगाया कि तृणमूल कांग्रेस बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के नाम मतदाता सूची से हटने के डर को अपने राजनीतिक अस्त्र के रूप में भुना रही है। उनके अनुसार, TMC नेताओं के बयानों का उद्देश्य आयोग पर दबाव बनाना और गलत मतदाताओं की लिस्टिंग को बचाना है। उन्होंने दावा किया कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और पार्टी महासचिव अभिषेक बनर्जी द्वारा भी पहले चुनाव आयोग को लेकर अतिरेकपूर्ण बयान दिए जा चुके हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पार्टी परेशान है।
TMC की पक्षधरता के आरोप
पिछले कुछ महीनों से TMC लगातार चुनाव आयोग पर हमलावर रही है। पार्टी ने आयोग पर भाजपा के हित में कार्य करने के आरोप लगाए हैं और विशेष गहन संशोधन अभियान को भय का माहौल बनाने वाला कदम बताया है। TMC के अनुसार, मतदाता सूची से नाम काटने के डर में कई लोगों ने आत्महत्या तक कर ली, जिसका दोष आयोग पर डाला जाना चाहिए। हालांकि, राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि आत्महत्या जैसे संवेदनशील मुद्दों को चुनावी राजनीति में खींचना खतरनाक चलन है, क्योंकि इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पवित्रता प्रभावित हो सकती है।
व्यक्तिगत हमले की नई परंपरा
राजनीतिक जगत में आरोप-प्रत्यारोप सामान्य बात है, लेकिन किसी संवैधानिक पदाधिकारी पर इस तरह से व्यक्तिगत हमला कम देखने को मिलता है। यह पहला मौका है जब राज्य के किसी वरिष्ठ मंत्री ने मुख्य चुनाव आयुक्त पर सीधे तौर पर रिश्तेदारों को लाभ देने के आरोप लगाए। इससे न केवल राजनीतिक अशांति बढ़ी है, बल्कि चुनाव आयोग की निष्पक्षता और उसकी गरिमा को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। लोकतंत्र की रक्षा हेतु आवश्यक है कि राजनीतिक दल स्वस्थ आलोचना करें, लेकिन उससे भी अधिक जरूरी है कि संस्थाओं के सम्मान और स्वायत्तता को बनाए रखा जाए।
लोकतंत्र में विश्वसनीयता की चुनौती
चुनाव आयोग की विश्वसनीयता भारत जैसे विशाल लोकतंत्र की बुनियाद है। यदि जनता के बीच यह धारणा बनने लगे कि आयोग निष्पक्ष नहीं है, तो चुनावी प्रक्रिया पर अविश्वास बढ़ सकता है। सरकार, विपक्ष और चुनावी संस्थाओं को परस्पर सम्मान के साथ कार्य करना चाहिए। व्यक्तिगत लाभ के आरोप भले ही राजनीतिक बयानबाजी का हिस्सा हों, परंतु ऐसे आरोपों को यदि प्रमाण मिल जाए, तो यह लोकतंत्र की सबसे मजबूत स्तंभों में से एक को हिला सकता है। इसलिए इस मामले पर स्पष्ट जांच और पारदर्शिता की मांग भी अब जोर पकड़ रही है।
यह समाचार IANS एजेंसी के इनपुट के आधार पर प्रकाशित किया गया है।