प्रवासी कामगारों के हक की लड़ाई लड़ने वाले राज्यसभा सांसद और प्रवासी कामगार कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष सामिरुल इस्लाम ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि बांग्ला भाषी लोगों पर हो रहे हमलों के बारे में जब भी संसद में बोलने की कोशिश की गई, हर बार उन्हें रोक दिया गया। उन्होंने नागरिक समाज से अपील करते हुए कहा कि बांग्ला जाति को बचाने के लिए सड़कों पर उतरना होगा।
संसद में आवाज दबाई गई
सामिरुल इस्लाम ने बताया कि जब भी उन्होंने बांग्ला भाषी लोगों पर हो रहे हमलों के बारे में संसद में सवाल उठाना चाहा या इस मुद्दे पर बात करने की कोशिश की, हर बार उनकी आवाज को दबा दिया गया। उन्हें बोलने का मौका ही नहीं दिया गया। प्रवासी कामगारों से जुड़े सवालों के जवाब भी संसद में ठीक से नहीं मिले। यह स्थिति लोकतंत्र में चिंता का विषय है जहां जनप्रतिनिधि को अपनी बात रखने का अधिकार तक नहीं मिल रहा।
तीस लाख प्रवासी कामगारों का पंजीकरण
सामिरुल इस्लाम ने जानकारी देते हुए बताया कि फिलहाल तीस लाख प्रवासी कामगारों का पंजीकरण किया जा चुका है। यह आंकड़ा बताता है कि कितनी बड़ी संख्या में बंगाली लोग रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में जाते हैं। इन सभी प्रवासी कामगारों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है।
राज्य सरकार ने अपना काम किया
विपक्ष द्वारा राज्य सरकार पर प्रवासी कामगारों के लिए कुछ नहीं करने के आरोपों का जवाब देते हुए सामिरुल इस्लाम ने कहा कि किसी भी राज्य ने प्रवासी कामगारों के लिए इतना काम नहीं किया है जितना पश्चिम बंगाल सरकार ने किया है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि राज्य सरकार ने अपनी तरफ से जो भी हो सकता था, सब किया है। असली जिम्मेदारी तो केंद्र सरकार की है क्योंकि प्रवासी कामगारों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा केंद्र का विषय है।
बांग्ला भाषा बोलने पर बांग्लादेशी कहा जा रहा
सबसे गंभीर बात जो सामिरुल इस्लाम ने उठाई वह यह थी कि ओडिशा और असम जैसे राज्यों में बांग्ला भाषी लोगों पर हमले बढ़ रहे हैं। अगर कोई व्यक्ति बांग्ला भाषा में बात करता है तो उसे बांग्लादेशी कहा जा रहा है। उन्होंने तीखा सवाल उठाते हुए कहा कि अगर बांग्ला बोलने से कोई बांग्लादेशी हो जाता है तो क्या हिंदी या उर्दू बोलने से कोई पाकिस्तानी हो जाता है? यह सवाल भाषा के आधार पर हो रहे भेदभाव पर करारा प्रहार है।
बांग्ली जाति पर हमला
सामिरुल इस्लाम ने चिंता जताई कि बांग्ली जाति पर लगातार हमले हो रहे हैं। भाषा के आधार पर लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। यह सिर्फ प्रवासी कामगारों का मुद्दा नहीं रह गया है बल्कि पूरी बांग्ली जाति की पहचान और सम्मान का सवाल बन गया है। ओडिशा और असम में बांग्ला भाषी लोगों के साथ जो व्यवहार हो रहा है वह बेहद चिंताजनक है।
नागरिक समाज और जन संगठनों से अपील
सामिरुल इस्लाम ने नागरिक समाज और जन संगठनों से अपील की कि वे इस मुद्दे पर सड़कों पर उतरें। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि जन संगठन इस मुद्दे पर आगे आएंगे और आंदोलन करेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि जाति को बचाने के लिए नागरिक समाज को आगे आना होगा। यह लड़ाई सिर्फ सरकार की नहीं बल्कि पूरे समाज की है।
कानूनी सहायता के लिए नई व्यवस्था
प्रवासी कामगारों की मदद के लिए सामिरुल इस्लाम ने बताया कि एक कानूनी सेल बनाया जा रहा है। यह सेल उन प्रवासी कामगारों को कानूनी सहायता देगी जो दूसरे राज्यों में परेशानी में हैं। उन्होंने यह भी बताया कि शारीरिक रूप से हाजिरी देने के मुद्दे पर कानूनी रास्ता अपनाने की योजना है क्योंकि कई बार प्रवासी कामगारों को शारीरिक रूप से हाजिर होने के लिए कहा जाता है जिसमें बहुत खर्च होता है।
हेल्पलाइन नंबर की जानकारी
सामिरुल इस्लाम ने प्रवासी कामगारों को संदेश देते हुए कहा कि अगर किसी को भी कोई समस्या हो तो राज्य सरकार की तरफ से प्रवासी कामगारों के लिए बनाए गए हेल्पलाइन नंबर पर संपर्क करें। यह हेल्पलाइन प्रवासी कामगारों की हर तरह की मदद के लिए उपलब्ध है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि राज्य सरकार प्रवासी कामगारों के साथ खड़ी है।
केंद्र सरकार की जिम्मेदारी
सामिरुल इस्लाम ने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि प्रवासी कामगारों की सुरक्षा की मुख्य जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है। राज्य सरकार अपने स्तर पर जो कुछ कर सकती है वह कर रही है लेकिन संवैधानिक तौर पर यह जिम्मेदारी केंद्र की है कि वह सभी राज्यों में प्रवासी कामगारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। भाषा के आधार पर भेदभाव रोकने के लिए केंद्र को सख्त कदम उठाने चाहिए।
भाषा आधारित भेदभाव की गंभीरता
यह मुद्दा सिर्फ प्रवासी कामगारों तक सीमित नहीं है। यह भारत की भाषाई विविधता और संस्कृति पर सवाल खड़ा करता है। संविधान ने हर भाषा को सम्मान दिया है और किसी भी व्यक्ति को अपनी मातृभाषा बोलने का अधिकार है। बांग्ला भाषा बोलने के कारण किसी को बांग्लादेशी कहना न सिर्फ गलत है बल्कि संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ भी है।
आगे की राह
सामिरुल इस्लाम की यह प्रेस कॉन्फ्रेंस प्रवासी कामगारों और बांग्ला भाषी लोगों के सामने आ रही चुनौतियों को सामने लाती है। यह जरूरी है कि इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान दिया जाए। नागरिक समाज, जन संगठन और सरकार सभी को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी व्यक्ति के साथ उसकी भाषा के आधार पर भेदभाव न हो। प्रवासी कामगारों के अधिकार सुरक्षित रहें और वे सम्मान के साथ अपना जीवन जी सकें।