बांकुड़ा के जयरामबाटी में आज मां शारदा की 173वीं जयंती बड़े धूमधाम से मनाई जा रही है। मातृ मंदिर में सुबह से ही पूजा-पाठ, भक्ति संगीत और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है। इस पवित्र दिन पर मां शारदा की जन्मस्थली में देश-विदेश से हजारों भक्त और श्रद्धालु पहुंचे हैं।
22 दिसंबर 1853 को बांकुड़ा के जयरामबाटी में मां शारदा का जन्म हुआ था। कम उम्र में ही कामारपुकुर के रामकृष्ण देव से उनका विवाह हो गया था, लेकिन उनके जीवन का एक बड़ा हिस्सा जयरामबाटी में ही बीता। जयरामबाटी में मातृ मंदिर की स्थापना के बाद से ही मां शारदा की जयंती बड़े धूमधाम से मनाने की परंपरा शुरू हुई। इस साल तिथि के अनुसार आज मातृ मंदिर में मां शारदा की 173वीं जयंती का आयोजन किया गया।
तैयारियां और शुरुआती कार्यक्रम
मां शारदा की जयंती के अवसर पर कल रात से ही मातृ मंदिर में विभिन्न सांस्कृतिक और भक्ति कार्यक्रम शुरू हो गए थे। आज सुबह मंगल आरती और विशेष पूजा के साथ जन्मोत्सव की शुरुआत हुई। सुबह के समय मातृ मंदिर के महाराज, श्रद्धालुओं और स्थानीय निवासियों ने मिलकर प्रभात फेरी निकाली। यह सुसज्जित शोभायात्रा मातृ मंदिर से शुरू होकर पूरे जयरामबाटी गांव की परिक्रमा करके वापस मातृ मंदिर में समाप्त हुई।
दिनभर चलने वाले कार्यक्रम
प्रभात फेरी के बाद पूरे दिन वेद पाठ, स्तुति गान, भक्ति संगीत, मातृ संगीत, विशेष पूजा और भोग निवेदन के कार्यक्रम आयोजित किए गए। मंदिर परिसर में भक्तिमय माहौल रहा और हर कोई मां शारदा की आराधना में लीन दिखा। शाम के समय विभिन्न भक्ति और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया है, जिसकी व्यवस्था मातृ मंदिर प्रशासन ने की है।
मां शारदा मेला का विशेष आकर्षण
मां शारदा की जयंती के अवसर पर पिछले साल से स्थानीय लोगों की पहल पर जयरामबाटी गांव में मां शारदा मेला शुरू किया गया है। इस मेले में स्थानीय कारीगरों और व्यापारियों ने अपनी दुकानें लगाई हैं। मां की जयंती पर देश-विदेश से आए भक्त और श्रद्धालु मातृ मंदिर में पूजा-पाठ और विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होने के साथ-साथ मेला परिसर में भी घूम रहे हैं।
भक्तों की भारी भीड़
जयरामबाटी स्थित मातृ मंदिर में इस साल भी भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी है। देश के विभिन्न राज्यों के साथ-साथ विदेशों से भी श्रद्धालु मां शारदा के दर्शन और आशीर्वाद लेने पहुंचे हैं। मंदिर प्रशासन ने भक्तों की सुविधा के लिए विशेष व्यवस्था की है। पानी, भोजन और ठहरने की उचित व्यवस्था की गई है।
भक्तों का अनुभव
मेला में आई एक भक्त छन्दा प्रधान ने कहा कि मां शारदा की जयंती पर यहां आना बहुत ही पुण्य का काम है। यहां का माहौल बहुत ही शांत और भक्तिमय है। मां के दर्शन से मन को बहुत शांति मिलती है। एक अन्य भक्त मंजू पाल ने बताया कि हर साल वह मां शारदा की जयंती पर जयरामबाटी आती हैं। यहां की व्यवस्था बहुत अच्छी है और मंदिर प्रशासन भक्तों का पूरा ध्यान रखता है।
मातृ मंदिर के महाराज का संदेश
मातृ मंदिर के महाराज स्वामी पररूपानंद ने कहा कि मां शारदा की जयंती हम सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। मां ने अपने जीवन से हमें प्रेम, करुणा और सेवा का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि इस पवित्र दिन पर हमें मां के आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लेना चाहिए। उन्होंने सभी भक्तों और श्रद्धालुओं को मां शारदा की जयंती की शुभकामनाएं दीं।
मां शारदा का जीवन और संदेश
मां शारदा देवी रामकृष्ण परमहंस की धर्मपत्नी थीं। उन्होंने अपने जीवन से महिला शक्ति और आध्यात्मिकता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया। सादगी, सेवा भाव और आध्यात्मिक ज्ञान उनके जीवन की विशेषता थी। उन्होंने समाज में महिलाओं की स्थिति को ऊंचा उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
जयरामबाटी का महत्व
जयरामबाटी सिर्फ एक गांव नहीं, बल्कि एक तीर्थस्थल है। यह वह पवित्र भूमि है जहां मां शारदा का जन्म हुआ और उन्होंने अपना बचपन बिताया। आज यह स्थान लाखों भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बन गया है। साल भर यहां श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन जयंती के अवसर पर यहां विशेष रौनक रहती है।
सुरक्षा व्यवस्था
भारी भीड़ को देखते हुए स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने विशेष सुरक्षा व्यवस्था की है। मातृ मंदिर परिसर और आसपास के इलाके में पुलिस बल तैनात किया गया है। यातायात प्रबंधन के लिए भी विशेष इंतजाम किए गए हैं ताकि भक्तों को किसी तरह की परेशानी न हो।
समापन कार्यक्रम
शाम को होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में स्थानीय कलाकारों के साथ-साथ प्रसिद्ध भक्ति गायक भी अपनी प्रस्तुति देंगे। मां शारदा की जीवनी पर आधारित नाटक और भक्ति गीतों की प्रस्तुति होगी। रात में महा आरती के साथ जयंती समारोह का समापन होगा।
जयरामबाटी में मां शारदा की 173वीं जयंती का यह भव्य आयोजन भक्ति और आध्यात्मिकता का संगम है। यह आयोजन न सिर्फ मां शारदा की स्मृति को ताजा करता है, बल्कि उनके जीवन से मिलने वाली प्रेरणा को भी जीवंत रखता है।