नई दिल्ली।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने वैश्विक तनाव और संघर्षों के इस दौर में महात्मा गांधी के शांति संदेश को और अधिक प्रासंगिक बताया। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में गांधीजी के आदर्शों का अनुसरण करना केवल अनुकूल नहीं, बल्कि आवश्यक हो गया है।
गुटेरेस ने यह संदेश गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन द्वारा दो अक्टूबर को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के अवसर पर आयोजित एक विशेष स्मृति समारोह में दिया।
गांधी का संदेश केवल आदर्श नहीं, जीवन का हिस्सा था
महासचिव ने कहा, “महात्मा गांधी ने केवल शांति, सत्य और अहिंसा की बात नहीं की, बल्कि इन्हें अपने जीवन में भी अपनाया। उनका जीवन और विरासत आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। बढ़ते तनाव, विभाजन और हिंसा के इस दौर में उनका संदेश और भी महत्वपूर्ण हो गया है।”
उन्होंने बताया कि गांधीजी की सोच हमें यह सिखाती है कि विवादों को बातचीत और समझ के माध्यम से हल करना चाहिए, न कि हिंसा या संघर्ष के जरिए। गुटेरेस ने सभी देशों से अपील की कि वे अपने मतभेदों को शांति से सुलझाएं और कूटनीतिक प्रयासों को बढ़ावा दें।
शांति की नींव पर खतरा
UN महासचिव ने वैश्विक परिदृश्य की चिंता जताते हुए कहा कि आज हिंसा संवाद की जगह ले रही है, नागरिक संघर्ष का खामियाजा भुगत रहे हैं, अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन हो रहा है और मानवाधिकारों को लगातार चुनौती दी जा रही है। उन्होंने चेताया कि शांति की नींव खतरे में है और इसे सुरक्षित रखने के लिए गांधी के मार्ग का अनुसरण आवश्यक है।
अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस का महत्व
उन्होंने इस अवसर पर कहा कि अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस महात्मा गांधी के विचारों और उनके संघर्ष को याद करने का मौका है। गुटेरेस ने यह भी जोड़ा कि आज के समय में, जब दुनिया में तनाव, विभाजन और हिंसा बढ़ रही है, गांधी का संदेश नए सिरे से प्रासंगिक बन गया है।
वैश्विक समुदाय के लिए संदेश
एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि विश्व समुदाय को मतभेदों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने और कूटनीति के माध्यम से संवाद बढ़ाने की दिशा में काम करना होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि गांधी का जीवन और उनके विचार केवल भारत या एशिया तक सीमित नहीं हैं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि गांधी का मार्ग हमें यह सिखाता है कि “शांति और अहिंसा केवल शब्द नहीं, बल्कि जीवन का हिस्सा बनकर ही समाज और राष्ट्र को स्थिर और समृद्ध बना सकती है।”