10 नवंबर, 2025 को दिल्ली के लाल किले के समीप हुए आत्मघाती कार धमाके ने न सिर्फ राजधानी को हिला दिया, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में गहरे सवाल खड़े कर दिए। अब इस हमले को लेकर एक बड़ा राजनीतिक और कूटनीतिक मोड़ आ गया है। पाकिस्तान के पूर्व पीओके (पाकिस्तान-कब्ज़ा किए गए जम्मू-कश्मीर) प्रधानमंत्री चौधरी अनवरुल हक ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि इस हमले में उनकी तरफ से “सीधी भूमिका” थी। उनकी यह बयानबाज़ी यह संकेत देती है कि यह केवल आतंकी घटना नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रतिशोध और कूटनीति का हिस्सा है।
हमले का राजनीतिक और रणनीतिक मापदंड
चौधरी अनवरुल हक ने पीओके की विधानसभा में कहा कि उन्होंने पहले भी चेतावनी दी थी — “अगर बलूचिस्तान इतना तकलीफदेह बना रहा, तो हम भारत को लाल किला से कश्मीर तक मारेंगे।” उन्होंने गर्व के साथ कहा कि “हमने किया … हमारे बहादुर लोगों ने किया।”
यह बयान न सिर्फ आतंकवाद की स्वीकारोक्ति है, बल्कि एक खुलेआम राजनीति और शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक भी बन गया है। भारत-पाकिस्तान संबंधों की नाजुकता को देखते हुए, यह कदम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा झटका हो सकता है।
जांच की प्रगति और संगठनात्मक जाल
इस धमाके की जांच अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की बागडोर में है। एजेंसी ने एक विशेष टीम बनाई है, जिसमें वरिष्ठ पुलिस अधिकारी शामिल हैं, ताकि हमले की गहराइयों तक पहुंचा जा सके।
जांच में सामने आया है कि यह हमला जैश-ए-मोहम्मद (JeM) नामक आतंकी संगठन की मॉड्यूल से जुड़ा हुआ था। अभियुक्तों की सूची में डॉक्टर ‘मॉड्यूल’ के नाम से एक अत्यंत चौंकाने वाला घटक है — उनमें डॉक्टर उमर नबी और डॉ. मुज़म्मिल शामिल हैं।
अत्याधुनिक हथियारों की खोज
NIA की जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि इस मॉड्यूल ने सिर्फ आत्मघाती हमले की तैयारी नहीं की थी, बल्कि अत्याधुनिक हथियारों पर भी काम कर रहा था। छोटे रॉकेट बनाना और ड्रोन के इस्तेमाल की योजना भी बनाई जा रही थी, जो हमलों को और अधिक विनाशकारी बना सकते थे।
यह तकनीकी क्षमता इस बात का संकेत देती है कि यह आतंकवादी रक्षा-रणनीति सिर्फ पारंपरिक बम हमले तक सीमित नहीं थी, बल्कि भविष्य में और बड़े पैमाने पर तबाही की क्षमता रखती थी।
प्रतिशोध का सिद्धांत — ऑपरेशन सिंदूर दोषारोपण
स्रोतों के अनुसार, इस हमले को एक “प्रतिकार हमला” माना जा रहा है। इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स यह सुझाव देती हैं कि JeM ने इस हमले को “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत अंजाम देने का निर्णय लिया था — यह प्रतिक्रिया पाकिस्तान की उस नाराजगी का प्रतीक है, जो पिछले दिनों भारत की ओर से उसके ठिकानों पर सैन्य कार्रवाई के कारण पैदा हुई थी।
चौधरी अनवरुल हक की चेतावनी और बाद में हुई स्वीकारोक्ति इस दृष्टिकोण को बल देती है कि यह हमला सिर्फ आतंकवाद नहीं बल्कि सामरिक प्रतिद्वंद्विता का हिस्सा है।
दवा पेशेवरों की भूमिका और उनकी कट्टरता
जांचकर्ताओं का कहना है कि इस मॉड्यूल में शामिल अधिकांश लोग डॉक्टर या चिकित्सा क्षेत्र से थे। यह “सफेद कॉलर” आतंकवाद की एक दुर्लभ और खतरनाक मिसाल है, क्योंकि सामान्यत: आतंकवादी गतिविधियों में उच्च शैक्षणिक या पेशेवर पृष्ठभूमि वाले लोग इतना सक्रिय नहीं पाए जाते।
डॉ. उमर नबी को ऐसे शख्स के रूप में पहचान की गई है, जिसने आत्मघाती हमला किया, जबकि उनके सहयोगी डॉ. मुज़म्मिल की गिरफ्तारी के बाद विस्फोटक सामग्री बरामद हुई।
राजनीतिक और कूटनीतिक विवर्तन
पाकिस्तान की इस खुली बात के बाद, भारत की प्रतिक्रिया निश्चित ही तीखी होगी। यह कबूलोत्ता न सिर्फ आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप है, बल्कि यह एक अंतरराष्ट्रीय कानून और राज्य-संचालित हिंसा की गंभीर चुनौती भी है।
इसी बीच, भारत ने पहले ही पाकिस्तान की इन दावों को खारिज किया है। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि वह पाकिस्तान द्वारा लगाए गए आरोपों को निराधार मानता है और यह एक “ध्रुवीकरण नीति” हो सकती है, ताकि पाकिस्तान की आंतरिक अस्थिरता और विभाजन को कवर किया जाए।
आगे की चुनौतियाँ और असर
यह घटना न केवल भारत-पाकिस्तान रिश्तों में तनाव बढ़ा सकती है, बल्कि आतंकवाद के नए मॉडल को उजागर करती है — जो डॉक्टरों की भूमिका, आधुनिक हथियारों जैसे ड्रोन और रॉकेट्स, और राजनीति व प्रतिशोध का मिश्रण है।
NIA को अब न सिर्फ अपराधी को पकड़ना है, बल्कि यह पहचानना होगा कि ऐसी मॉड्यूल किन नेटवर्कों से जुड़ी हैं, और भविष्य में इस तरह की घटनाओं को कैसे रोका जाए।
दूसरी ओर, कूटनीतिक स्तर पर, भारत-पाकिस्तान द्विपक्षीय बातचीत और सुरक्षा तंत्र और अधिक सतर्क और गहराई वाला स्वर लेंगे। साथ ही, इस घटना से अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा समुदाय को भी यह संदेश जाता है कि आतंकवाद का चेहरा अब और भी जटिल हो चुका है।
यह समाचार IANS एजेंसी के इनपुट के आधार पर प्रकाशित किया गया है।