Osman Hadi: बांग्लादेश इन दिनों एक बार फिर इतिहास के ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां हर फैसला देश की दिशा और दशा तय करेगा। युवा और प्रभावशाली नेता उस्मान हादी की हत्या के बाद पूरे देश में जो हालात बने हैं, वे केवल कानून-व्यवस्था की चुनौती नहीं, बल्कि अंतरिम सरकार की विश्वसनीयता की भी परीक्षा हैं। सिंगापुर से ढाका लाया गया हादी का पार्थिव शरीर मानो अपने साथ आक्रोश, शोक और असंतोष की लहर भी ले आया है।
हादी केवल एक राजनीतिक कार्यकर्ता नहीं थे, बल्कि जुलाई में हुए सरकार विरोधी आंदोलनों का चेहरा बन चुके थे। ऐसे में उनकी हत्या को आम जनता ने केवल एक व्यक्ति की मौत नहीं, बल्कि अपने राजनीतिक सपनों पर हमले के रूप में देखा है।
उस्मान हादी की मौत और देश में फैला उबाल
छह दिन तक जीवन और मृत्यु से संघर्ष करने के बाद सिंगापुर के अस्पताल में उस्मान हादी की मौत ने बांग्लादेश को झकझोर दिया। जैसे ही मुख्य सलाहकार मोहम्मद युनूस ने राष्ट्र के नाम संबोधन में इसकी पुष्टि की, देश के कई हिस्सों में हिंसा भड़क उठी। ढाका से लेकर चट्टगांव तक आगजनी, पथराव और तोड़फोड़ की घटनाएं सामने आईं।
कड़ी सुरक्षा में ढाका पहुंचा पार्थिव शरीर
शुक्रवार शाम बांग्लादेश एयरलाइंस की उड़ान से हादी का शव हजरत शाहजलाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पहुंचा। पूरे रास्ते सेना, सशस्त्र बल बटालियन और पुलिस की भारी तैनाती रही। हवाई अड्डे से शाहबाग तक सड़क के दोनों ओर खड़े समर्थक यह साफ संकेत दे रहे थे कि हादी की लोकप्रियता और उसके साथ जुड़ा भावनात्मक उबाल सरकार के लिए आसान चुनौती नहीं है।
शनिवार को राजकीय शोक और अंतिम विदाई
अंतरिम सरकार ने शनिवार को एक दिन के राजकीय शोक की घोषणा की। संसद के साउथ प्लाजा में जनाजे की नमाज और राष्ट्रीय कवि काजी नजरुल इस्लाम की कब्र के पास दफनाने का फैसला, हादी को एक राजनीतिक प्रतीक के रूप में स्थापित करता है। हालांकि पार्टी ने सार्वजनिक दर्शन की अनुमति न देकर भीड़ को नियंत्रित करने का प्रयास किया है।
हिंसा की आग और सांस्कृतिक संस्थानों पर हमले
हादी की मौत के बाद राजधानी ढाका में वामपंथी विचारधारा से जुड़े सांस्कृतिक संगठन उदिची शिल्पीगोष्ठी के कार्यालय में आग लगा दी गई। दमकल कर्मियों ने आग पर काबू पा लिया, लेकिन यह घटना बताती है कि असंतोष अब वैचारिक टकराव में बदल चुका है।
प्रदर्शनकारियों ने प्रमुख समाचार पत्रों ‘प्रोथोम आलो’ और ‘डेली स्टार’ के कार्यालयों पर हमला किया। 32 धानमंडी, जो बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम का ऐतिहासिक केंद्र रहा है, एक बार फिर हिंसा का गवाह बना। यह केवल इमारतों पर हमला नहीं, बल्कि देश की स्मृति और संस्थाओं पर आक्रोश का प्रतीक है।
भारत विरोधी स्वर और कूटनीतिक चिंता
चट्टगांव में भारतीय सहायक उच्चायुक्त के आवास पर पथराव और ढाका में भारत विरोधी नारे, हालात को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी संवेदनशील बना रहे हैं। कुछ संगठनों ने आरोप लगाया कि हादी के हत्यारे भारत भाग गए, और भारतीय उच्चायोग बंद करने की मांग तक कर डाली। यह बयानबाजी बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति को विदेश नीति से जोड़ने की खतरनाक कोशिश के रूप में देखी जा रही है।
अल्पसंख्यकों पर बढ़ता खतरा
मैमनसिंह में ईशनिंदा के आरोप में एक हिंदू युवक की पीट-पीट कर हत्या और शव को जलाने की घटना ने हालात को और भयावह बना दिया है। यह घटना बताती है कि राजनीतिक अस्थिरता का सबसे पहला और सबसे गहरा असर समाज के कमजोर वर्गों पर पड़ता है।
अंतरिम सरकार के सामने सबसे कठिन इम्तिहान
मुख्य सलाहकार मोहम्मद युनूस ने दोषियों को सख्त सजा देने और संयम बनाए रखने की अपील की है। लेकिन सवाल यह है कि क्या केवल अपीलें हालात को काबू में ला सकती हैं? बीएनपी सहित कई दलों ने सरकार से कड़ा रुख अपनाने की मांग की है।