बांग्लादेश में शेख हसीना पर न्यायाधिकरण का ऐतिहासिक निर्णय
छात्र आंदोलन से उभरते राजनीतिक तूफ़ान की शुरुआत
बांग्लादेश में वर्ष 2024 के मध्य में आरम्भ हुए छात्र आंदोलन ने अचानक ही राष्ट्रीय राजनीति की दिशा बदल दी। सरकारी नौकरी में आरक्षित कोटे, विशेष रूप से मुक्ति योद्धाओं के वंशजों के लिए एक-तिहाई पद निर्धारित रहने के विरुद्ध छात्रों का आक्रोश धीरे-धीरे उग्र रूप लेता गया। छात्रों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना से कोटा व्यवस्था में व्यापक सुधार और उनकी नीतिगत भूमिका पर स्पष्टीकरण की माँग की।
सरकार द्वारा आंदोलन को रोकने हेतु किए गए बलप्रयोग ने स्थिति को और अधिक विस्फोटक बना दिया। जुलाई-अगस्त 2024 तक आंदोलन की आग पूरे देश में फैल चुकी थी और इसके परिणामस्वरूप सैकड़ों छात्र मारे गए जबकि हज़ारों घायल हुए। यही वह बिन्दु था जिसने शेख हसीना की 15 वर्ष पुरानी सत्ता को निर्णायक रूप से कमजोर कर दिया।
सत्ता से बेदखली और भारत की ओर पलायन
5 अगस्त 2024 को जैसे ही छात्र आंदोलन अपने चरम पर पहुँचा, शेख हसीना ने पद छोड़ दिया और भारत की ओर प्रस्थान कर गईं। उनके पद छोड़ते ही प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री आवास में घुस पड़े और इसे ‘जन-जीत’ करार देते हुए उत्सव मनाने लगे।
यह घटना बांग्लादेश के राजनीतिक इतिहास में एक बड़े अध्याय के समापन और संक्रमणकाल की शुरुआत का संकेत बनी।
अंतरिम शासन की स्थापना और न्यायिक प्रक्रिया की नींव
छात्र समुदाय ने लोकतांत्रिक संक्रमण की दिशा में आगे बढ़ते हुए अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख चुना। 14 अगस्त 2024 को यूनुस-नेतृत्व वाली अस्थायी सरकार ने घोषणा की कि छात्र आंदोलन के दौरान हुए नरसंहार, हिंसा और मानवाधिकार उल्लंघनों की जाँच अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT-BD) में कराई जाएगी।
अक्टूबर 2024 में न्यायाधिकरण का पुनर्गठन किया गया और 17 अक्टूबर को शेख हसीना तथा अवामी लीग के 45 शीर्ष नेताओं के विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ। यह पहली बार था जब किसी पूर्व प्रधानमंत्री के विरुद्ध इतने गंभीर आरोपों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाँच की प्रक्रिया तेज़ी से आगे बढ़ी।
बांग्लादेश में न्यायिक प्रक्रिया के पुनर्निर्माण की चुनौती
अंतरिम सरकार के गठन के बाद बांग्लादेश में न्यायिक प्रणाली के पुनर्गठन को लेकर बड़ी चुनौती सामने आई। लंबे समय तक एकदलीय प्रभाव में काम कर रही संस्थाओं को पारदर्शिता और स्वतंत्रता के नए मानकों के अनुरूप ढालना अनिवार्य था। इस बदलाव के तहत अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण के ढांचे को पुनर्संगठित किया गया ताकि राजनीतिक दबावों से मुक्त होकर मानवाधिकार उल्लंघनों की निष्पक्ष जाँच की जा सके।
छात्र नेतृत्व के उदय और राजनीतिक जागरण की नई धारा
2024 के आंदोलन ने पहली बार देश के युवा वर्ग को राष्ट्रीय नीति निर्माण की मुख्यधारा में ला दिया। पहले जहाँ छात्र राजनीति अकादमिक परिसर तक सीमित थी, वहीं इस आंदोलन ने उसे लोकतांत्रिक परिवर्तन की केंद्रीय धुरी बना दिया। छात्र संगठनों के सहयोग से बने अंतरिम शासन ने जनता के बीच इस विश्वास को मजबूत किया कि देश की दिशा अब अधिक जिम्मेदार और सहभागी राजनीति की ओर बढ़ रही है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की बढ़ती निगरानी और प्रतिक्रिया
घटनाओं के तेज़ी से बदलते क्रम ने वैश्विक समुदाय का भी ध्यान बांग्लादेश की ओर आकर्षित किया। मानवाधिकार संगठनों, संयुक्त राष्ट्र और कई देशों ने लगातार न्यायिक प्रक्रिया पर नज़र रखी। उनके दबाव और रुचि के चलते यह सुनिश्चित हुआ कि जाँच और मुकदमे की प्रक्रिया अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप चले। इससे न्यायाधिकरण की विश्वसनीयता और फैसले की स्वीकार्यता को और बल मिला।
मृत्यु दण्ड के निर्णय का क्षेत्रीय राजनीति पर प्रभाव
शेख हसीना को दी गई सज़ा ने दक्षिण एशिया की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। कई विशेषज्ञ इसे सत्ता के दुरुपयोग और असहमति के दमन के विरुद्ध कठोर संदेश के रूप में देखते हैं। वहीं कुछ का मानना है कि यह फैसला क्षेत्रीय स्थिरता, भारत-बांग्लादेश संबंधों और भविष्य की सरकारों की नीतियों पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है। इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जनता और संस्थाएँ अब जवाबदेही की मजबूत अपेक्षा रखती हैं।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट और आरोपों का विस्तार
फरवरी 2025 में संयुक्त राष्ट्र की तथ्य-जाँच समिति ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया कि छात्र आंदोलन के दौरान लगभग 1,400 लोग मारे गए थे। यह आँकड़ा विश्व समुदाय के लिए भी अत्यंत गंभीर था और इसने न्यायाधिकरण की प्रक्रिया को और अधिक तीव्र बना दिया।
1 जून 2025 को मुकदमे की औपचारिक शुरुआत हुई। हसीना पर निहत्थे नागरिकों के विरुद्ध योजनाबद्ध और संगठित हिंसा के पाँच प्रमुख आरोप लगाए गए।
न्यायाधिकरण की विशेष कार्यवाही और निरंतर निर्णय
19 जून 2025 को पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश ए.वाई. मोशीउज्ज़मान को शेख हसीना की ओर से अमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया।
2 जुलाई को उन्हें अदालत की अवमानना के आरोप में छह माह की सज़ा भी सुनाई गई।
10 जुलाई 2025 को हसीना, पूर्व गृह मंत्री असदुज्ज़मान खान कमाल और पूर्व पुलिस प्रमुख चौधरी अब्दुल्लाह अल-मामून पर मानवता के विरुद्ध अपराधों के पाँच आरोपों में औपचारिक अभियोग सिद्ध किया गया।
3 अगस्त से मुकदमे की प्रत्यक्ष सुनवाई आरम्भ हुई और 23 अक्टूबर को सुनवाई पूर्ण हुई।
इसके बाद 13 नवंबर को न्यायाधिकरण ने 17 नवंबर को निर्णय घोषित करने की तिथि निर्धारित की।
अंतिम निर्णय: मृत्यु दण्ड और राजनीतिक इतिहास की निर्णायक रेखा
17 नवंबर 2025 को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री कमाल को मानवता के विरुद्ध अपराधों के लिए दोषी ठहराते हुए मृत्यु दण्ड सुनाया। जबकि पूर्व पुलिस प्रमुख मामून, जो राज्य गवाह बन गए थे, को पाँच वर्ष का कारावास दिया गया।
इस फ़ैसले ने न केवल बांग्लादेश की राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला, बल्कि यह दक्षिण एशियाई क्षेत्र में लोकतांत्रिक जवाबदेही और मानवाधिकार संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक उदाहरण भी बन गया।
यद्यपि हसीना इस निर्णय के दौरान भारत में निर्वासन में हैं, किंतु उनके विरुद्ध इस अभियोग ने बांग्लादेश के राजनीतिक इतिहास को बिल्कुल नई दिशा दी है।