बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के विरुद्ध आरोपों में मृत्युदण्ड

Hasina
Sheikh Hasina Death Sentence: बांग्लादेश न्यायाधिकरण ने मानवता के खिलाफ अपराधों में सुनाया फैसला (File Photo)
बड़े फैसले में, बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराधों में दोषी ठहराते हुए मृत्युदण्ड की सज़ा दी है। इसके साथ ही राजनीतिक तनाव, सुरक्षा अलर्ट और भारत‑बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण की बहस तेज हो गई है।
नवम्बर 17, 2025

बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT‑BD) ने शेख हसीना पर मानवता के खिलाफ गंभीर अपराधों का दोष सिद्ध करते हुए उन्हें मृत्युदण्ड की सज़ा सुनाई है। यह फैसला सोमवार को 453 पन्नों की विस्तृत और विश्लेषणात्मक रिर्पोट के बाद आया है, जिससे देशभर में राजनीतिक भूचाल मचा हुआ है।

ह्रदयस्था पृष्ठभूमि

यह मुकदमा जुलाई–अगस्त 2024 के छात्र‑नेतृत आंदोलन और विद्रोह से जुड़ा है। उस समय देश में विशाल प्रदर्शन हुए थे, और विरोध जताने वाले छात्रों के ऊपर सुरक्षा बलों द्वारा कठोर कार्रवाई की गई थी। न्यायाधिकरण का आरोप है कि हसीना ने इस आंदोलन को भड़काया, हिंसा के आदेश दिए, और हेलीकॉप्टर, ड्रोन व जानलेवा हथियारों के उपयोग का निर्देश जारी किया।

न्यायाधीशों की तीन-सदस्यीय बेंच — जिसमें जस्टिस गोलम मोर्तुजा माजुमदार प्रमुख हैं — ने निर्णय सुनाते समय कहा कि हसीना ने छात्रों को “राजाकारों के पोते” जैसा अपमानजनक संबोधन दिया था, जो हिंसा को भड़काने वाला बयान था। उन्होंने यह भी कहा कि हसीना ने दक्षिण ढाका नगर निगम के महापौर के साथ अपनी बातचीत में पुलिस को जीवनघाती विकल्पों का इस्तेमाल करने का आदेश दिया था।

न्यायाधिकरण रिपोर्ट के अनुसार, अभियोजन पक्ष ने पूरा मामला 8,747 पन्नों की चार्जशीट के साथ प्रस्तुत किया था। गवाहों की गिनती 54 थी, और उनमें ट्रिब्यूनल में गवाही देने वाले पूर्व पुलिस प्रमुख चौधरी अब्दुल्ला अल‑ममुन शामिल थे।

देश में सुरक्षा और तनाव

निर्णय की घोषणा से पहले ढाका और अन्य हिस्सों में सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी। ट्रिब्यूनल के आस-पास बहु-स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था बनाई गई। इसके पहले, छात्रों के समर्थक समूहों द्वारा विरोध और बंद का आह्वान किया गया था।

कुछ सूत्रों ने बताया कि ढाका में गुरिल्ला धमाके और आगजनी की घटनाएं भी हुई थीं, और पुलिस को “गोले मारने तक” का आदेश दिया गया था। यह सजा सुनाए जाने के बाद राजनीतिक अस्थिरता की आशंका और बढ़ चुकी है।

हसीना का रुख

शेख हसीना, जो फिलहाल भारत में निर्वासित जीवन जी रही हैं, ने इस फैसले को “पूर्वनिर्धारित” और “राजनीतिक प्रेरित” करार दिया है।  उन्होंने कहा कि ट्रिब्यूनल का गठन और उसका नेतृत्व निष्पक्ष नहीं है, जिससे निष्पक्ष न्याय की संभावना कम हो गई है।

हसीना ने अपने समर्थकों को एक ऑडियो संदेश भी भेजा था, जिसमें उन्होंने कहा:
“अल्लाह ने मुझे जीवन दिया है, वही मुझे वापस लेने वाला है,” और साथ ही सभी कार्यकर्ताओं से शांति बनाए रखने का आग्रह किया।

अंतरराष्ट्रीय और मानवीय प्रतिक्रिया

इस फैसले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता को जन्म दिया है। मानवाधिकार समूहों ने ट्रिब्यूनल की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं, वहीं हसीना के समर्थकों ने इसे राजनीतिक दमन का तरीका माना है।

संयुक्त राष्ट्र समेत अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा रिपोर्ट में बताया गया था कि छात्र आंदोलन के दौरान बांग्लादेश में सुरक्षा बलों की भूमिका बहुत अधिक हिंसात्मक थी और लगभग 1,400 लोगों की मौत हुई थी।

आगे की चुनौतियाँ

अब सवाल यह उठता है कि भारत, जहाँ हसीना वर्तमान में हैं, क्या उन्हें बांग्लादेश को प्रत्यर्पित करेगा या नहीं। भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि है, लेकिन राजनीतिक आधार पर मामले जटिल हो सकते हैं।

इस घटना ने बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति में नई दरारें खड़ी कर दी हैं। आने वाले समय में यह देखना होगा कि जनता किस ओर झुकती है — न्याय की मांग या राजनीतिक प्रतिशोधन के आरोपों के पक्ष में।

अतिरिक्त चार पैराग्राफ (हर एक का शीर्षक)

हसीना और कमाल के सह-आरोपित

इस मुकदमे में शेख हसीना के साथ असदुज्जमां खान कमाल और पूर्व पुलिस महानिरीक्षक चौधरी अब्दुल्ला अल‑ममुन भी आरोपी थे। न्यायाधिकरण ने पाया कि तीनों ने मिलकर हिंसा भड़काने और उसके निष्पादन में मिली‑जुली भूमिका निभाई। कमाल भी हसीना की तरह मृत्यु­दण्ड की सज़ा पाया है, जबकि अल‑ममुन, जिन्होंने गवाह के रूप में सहयोग किया, को मौत की सज़ा नहीं दी गई है।

चौधरी अल‑ममुन का गवाही‑रोल

ममुन ने ट्रिब्यूनल में गवाही दी और उन्होंने स्वीकार किया कि वे राज्य के साक्षी (state witness) बन गए हैं। उनकी गवाही ने अभियोजन पक्ष के दावों को काफी मजबूती दी। इसके कारण न्यायालय ने उन्हें मृत्युदण्ड से मुक्त रखा, जबकि सह-आरोपियों को यह सबसे गंभीर सज़ा मिली।

भारत में राजनीतिक और कूटनीतिक दुविधा

हसीना फिलहाल भारत में हैं और वहां उन्हें सुरक्षा प्राप्त है। प्रत्यर्पण की मांग उठ सकती है, लेकिन भारत के लिए यह फैसला राजनीतिक और कूटनीतिक लिहाज से बेहद संवेदनशील होगा। अगर भारत उन्हें प्रत्यर्पित करता है, तो उसे मानवाधिकार चिंताओं और राजनीतिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है।

भविष्य की संभावनाएँ और अशांति

यह फैसला बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक विभाजन को और बढ़ा सकता है। समर्थकों में गुस्सा और विरोध की भावना फैली हुई है, जबकि विरोधी इसे न्याय की प्रक्रिया के हिस्से के रूप में देख रहे हैं। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस तरह का फैसला एक निर्णायक मोड़ हो सकता है और बांग्लादेश की लोकतांत्रिक संस्थाओं की आज़माइश में नया अध्याय जोड़ सकता है।

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