अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अचानक गरमाहट दिखाई दे रही है। US President Donald Trump ने शनिवार को Bagram Airbase को लेकर तालिबान को सख्त चेतावनी दी — “If Afghanistan doesn’t give Bagram Airbase back… BAD THINGS ARE GOING TO HAPPEN!” — यह संदेश उन्होंने अपने Truth Social प्लेटफॉर्म पर पोस्ट करके और बाद में रिपोर्टर्स से कहते हुए दोहराया।
यह बयान उस समय आया है जब Mr. Trump हाल ही में UK state visit पर थे और वहीं एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने बताया था कि वे Bagram की वापसी के लिए कार्य कर रहे हैं और इसकी रणनीति पर बातचीत चल रही है। उनके शब्दों में — “We’re trying to get it back… we want it back soon, right away.” — वे सार्वजनिक तौर पर यह भी कह चुके हैं कि अगर वापसी नहीं हुई तो आगे क्या कदम होंगे, यह जनता को बताया जाएगा।
Bagram का ऐतिहासिक और रणनीतिक महत्व बहुत बड़ा है। यह एयरबेस अफगानिस्तान का सबसे बड़ा सैन्य हब रहा है और 2001 के बाद से US-led operations का केंद्र रहा। 2021 में अमेरिकी और NATO फोर्सेज़ के हटने के बाद यह बेस तालिबान के नियंत्रण में आ गया था — और तभी से इसकी वापसी को लेकर अमेरिकी हल्के-फुल्के बयान समय-समय पर आते रहे हैं। रणनीतिक वजहों में इसकी भौगोलिक निकटता, क्षेत्रीय पहुँच और लॉजिस्टिक क्षमताएँ शामिल हैं।
लेकिन इस तरह की सार्वजनिक चेतावनी के अंतरराष्ट्रीय निहितार्थ गंभीर हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि Bagram की जबरन वापसी या फिर US मैनपावर के साथ वहां लौटना regional stability के लिए चुनौतियाँ पैदा कर सकता है और यह US-China rivalry को और तीखा कर सकता है — खासकर जब Trump ने China के नज़दीकी प्रभाव का हवाला भी दिया है। किसी सैन्य अभियान की कीमत और जटिलताएँ इतनी कम नहीं होतीं; रणनीतिक, कूटनीतिक और मानवीय पहलुओं का बड़ा बोझ होता है।
तालिबान ने फिलहाल साफ़ कर दिया है कि वे Bagram की वापसी पर सहमत नहीं हैं और किसी भी तरह के विदेशी सैन्य अभियान का विरोध कर रहे हैं। अफगान अधिकारियों ने कहा है कि वे बिना स्पष्ट तौर पर बातचीत और शर्तों के किसी भी प्रकार का ठहराव स्वीकार नहीं करेंगे। इतनी संवेदनशील स्थिति में शब्दों का असर तेज़ और अनिश्चित दोनों हो सकता है — इसलिए डिप्लोमेसी, सैन्य निर्णय और क्षेत्रीय साझेदारियों में संतुलन बनाना अब और भी ज़रूरी हो गया है।
हमारे सामने दो रास्ते हैं: पहला, कूटनीतिक समाधान — जिसमें बातचीत, सहमति और क्षेत्रीय सुरक्षा व्यवस्था शामिल हो; दूसरा, जबरन सैन्य विकल्प — जिसका अर्थ हो सकता है बड़े पैमाने पर फ़ोर्सेज़ की तैनाती और व्यापक संकटकाल। किसी भी कदम के नतीजे सिर्फ़ अफगानिस्तान तक सीमित नहीं रहेंगे — वे पाकिस्तान, चीन, रूस और मध्य-पूर्व के सियासी समीकरणों में भी प्रभाव डालेंगे। इसीलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगाहें अब उस किसी भी अगले कदम पर टिकी होंगी जो Washington से आएगा।
निष्कर्षतः, Trump का बयान केवल एक कड़ा संदेश नहीं — बल्कि एक संकेत है कि अमेरिका अपने प्रासंगिक रणनीतिक संसाधनों और geopolitical posture पर फिर से सक्रिय रूप से सोचना चाह रहा है। Bagram का मसला अगर कूटनीतिक मार्ग से सुलझ गया तो अच्छा है, वरना इसकी कीमत नापने में अंतरराष्ट्रीय राजनीति को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। आने वाले दिनों में इस पर आने वाली आधिकारिक प्रतिक्रियाएँ और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ यह तय करेंगी कि यह बयान कितनी दूर तक बढ़ता है।