अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अपनी सख्त आव्रजन नीति को लेकर बड़ा फैसला लिया है। उन्होंने तीसरी दुनिया के देशों से अमेरिका में माइग्रेशन पर पूरी तरह से रोक लगाने की घोषणा की है। यह फैसला उस घटना के बाद आया है जब वॉशिंगटन में एक अफगानी नागरिक ने दो नेशनल गार्ड्स को गोली मार दी थी। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट के माध्यम से इस फैसले की जानकारी दी।
ट्रंप ने अपनी पोस्ट में लिखा कि सभी तीसरी दुनिया के देशों से माइग्रेशन पर तुरंत रोक लगा देनी चाहिए ताकि अमेरिकी सिस्टम को ठीक करने का मौका मिल सके। इस घोषणा के बाद पूरी दुनिया में चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर तीसरी दुनिया के देश कौन से हैं और क्या भारत भी इस सूची में शामिल है।
तीसरी दुनिया का मतलब क्या है
तीसरी दुनिया शब्द का इस्तेमाल आज से कई दशक पहले शुरू हुआ था। यह शब्द कोल्ड वॉर यानी शीत युद्ध के समय से जुड़ा हुआ है। उस दौर में पूरी दुनिया तीन हिस्सों में बंटी हुई थी। पहली दुनिया में अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देश शामिल थे। दूसरी दुनिया में सोवियत संघ के नेतृत्व वाले साम्यवादी देश थे। और तीसरी दुनिया में वे देश आते थे जो इन दोनों गुटों में से किसी में भी शामिल नहीं थे।
तीसरी दुनिया के देश आमतौर पर वे माने जाते थे जो आर्थिक रूप से पिछड़े हुए थे। इन देशों में विकास की रफ्तार धीमी थी और ये तकनीकी रूप से भी पीछे थे। हालांकि आज के समय में यह शब्द काफी पुराना हो चुका है, लेकिन ट्रंप ने इसका इस्तेमाल करके एक बार फिर इसे चर्चा में ला दिया है।
पहली और दूसरी दुनिया में कौन से देश
पहली दुनिया में उत्तरी अमेरिका के देश, पश्चिमी यूरोप के देश, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, स्विटजरलैंड, स्वीडन, स्पेन, आयरलैंड और फिनलैंड जैसे विकसित देश शामिल थे। ये सभी देश आर्थिक और सैन्य रूप से मजबूत थे और लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले थे।
दूसरी दुनिया में सोवियत संघ, पूर्वी यूरोप के देश, पोलैंड, पूर्वी जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया, बाल्कन के देश और चीन के साथ-साथ एशिया के कम्यूनिस्ट देश जैसे मंगोलिया, उत्तरी कोरिया, विएतनाम, लाओस और कंबोडिया शामिल थे। ये सभी देश साम्यवादी विचारधारा को मानते थे।
तीसरी दुनिया में शामिल देश
तीसरी दुनिया में मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के वे देश शामिल थे जो आर्थिक रूप से कमजोर थे। इन देशों में कृषि पर निर्भरता ज्यादा थी और औद्योगिक विकास बहुत कम था। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी कमजोर थी। इन देशों ने शीत युद्ध के दौरान किसी भी गुट में शामिल न होकर गुटनिरपेक्ष रहने का फैसला किया था।
ट्रंप के आदेश में शामिल देश
ट्रंप प्रशासन ने जिन देशों पर यह प्रतिबंध लगाया है, उनमें अफगानिस्तान, म्यांमार, बुरुंडी, चाड, कांगो गणराज्य, क्यूबा, इक्वेटोरियल गिनी, इरिट्रिया, हैती, ईरान, लाओस, लीबिया, सिएरा लियोन, सोमालिया, सूडान, टोगो, तुर्कमेनिस्तान, वेनेजुएला और यमन शामिल हैं। इन देशों को ट्रंप ने पहले भी जून महीने में अपनी यात्रा प्रतिबंध सूची में रखा था।
क्या भारत भी इस सूची में है
अच्छी खबर यह है कि भारत का नाम इस प्रतिबंधित देशों की सूची में नहीं है। भारत को तीसरी दुनिया का देश नहीं माना गया है। वर्तमान समय में भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और तेजी से विकास कर रहा है। भारत और अमेरिका के बीच मजबूत राजनयिक और व्यापारिक संबंध हैं।
नई नीति के मुख्य बिंदु
ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि वह उन सभी देशों से आए प्रवासियों के ग्रीन कार्ड की फिर से जांच करेगा जो चिंताजनक स्थिति वाले हैं। यह नीति तुरंत प्रभाव से लागू हो गई है। यह 27 नवंबर 2025 या उसके बाद दायर किए गए सभी आवेदनों पर लागू होगी।
अमेरिकी नागरिकता एवं आव्रजन सेवा के निदेशक जोसेफ एडलो ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा कि अमेरिका और अमेरिकी जनता की सुरक्षा सबसे पहले है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी लोग पिछली सरकार की लापरवाही भरी पुनर्वास नीतियों की कीमत नहीं चुकाएंगे।
वॉशिंगटन की घटना
यह फैसला वॉशिंगटन में हुई उस घटना के तुरंत बाद आया है जिसमें एक अफगानी नागरिक ने दो नेशनल गार्ड्स को गोली मार दी थी। इस घटना ने अमेरिकी सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए थे। ट्रंप ने इस घटना को आधार बनाकर अपनी सख्त आव्रजन नीति को लागू करने का फैसला किया।
दुनिया भर में प्रतिक्रिया
ट्रंप के इस फैसले पर दुनिया भर में मिली-जुली प्रतिक्रिया आ रही है। कुछ लोग इसे सुरक्षा की दृष्टि से सही मान रहे हैं तो कुछ इसे भेदभावपूर्ण बता रहे हैं। मानवाधिकार संगठनों ने इस फैसले की आलोचना की है। उनका कहना है कि यह फैसला कई निर्दोष लोगों के जीवन को प्रभावित करेगा।
भविष्य में क्या होगा
यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप की यह नीति कितने समय तक लागू रहती है और इसका क्या असर होता है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह नीति अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर सकती है क्योंकि कई उद्योगों में प्रवासी मजदूरों की अहम भूमिका है। साथ ही यह फैसला अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी असर डाल सकता है।